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Saturday 30 July 2022

गणेश या कलंक चतुर्थी को चंद्र दर्शन दोष क्यों?

(Why Chandra Darshan Defects Ganesha or Kalank Chaturthi

             



गणेश या कलंक चतुर्थी को चंद्र दर्शन दोष क्यों?(Why Chandra Darshan Defects Ganesha or Kalank Chaturthi):-भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि को सिद्धि विनायक चतुर्थी के नाम से जानी जाती हैं। चतुर्थी तिथि के दिन गणेश जी जन्म तिथि मानी जाती हैं, इस तिथि के दिन ही चन्द्रमा को शाप गणेशजी के द्वारा मिला था। जब गणेशजी की तोंद को निकला हुआ देखा तो चन्द्रमा ने गणेशजी की हंसी उड़ाई थी, जिसके फलस्वरूप गणेशजी ने चन्द्रमा को शाप दिया कि तुम एकदम रोशनी हीन हो जाओगे और तुमको आज से तुम्हें जो कोई भी देखेगा उसे पाप और मिथ्या कलंक लगेगा। इसलिए इस चतुर्थी तिथि को कलंक चतुर्थी तिथि भी कहते हैं। इस तरह चन्द्रमा को अपनी सुंदरता पर घमंड का फल मिला था। उसके बाद चन्द्रमा ने कठोर तपस्या गणेशजी की तब जाकर गणेशजी खुश होकर चन्द्रमा को वरदान दिया कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को ही यह तुम्हारे दर्शन करने पर दोष रहेगा, यदि कोई इस तिथि को दर्शन कर लेने पर जो भी मेरी पूजा करेगा वह इस दोष से मुक्त हो जायेगा।




भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन करने योग्य कार्य:-निम्नलिखित करने योग्य कार्य हैं-


◆भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन मनुष्य को प्रातःकाल जल्दी उठना चाहिए।


◆भगवान गणेशजी के नाम से संकल्प लेना चाहिए।


◆इस दिन मनुष्य को भगवान गणपति जी के लिए उपवास करना चाहिए।


◆इस दिन मनुष्य को गणेशजी की विधिवत पूजा करनी चाहिए।


◆उसके बाद ही अपने उपवास को छोड़ना चाहिए।


◆इस दिन जो उपवास गणेशजी के नाम पर किया जाता है उस उपवास से गणेशजी खुश होकर व्रत करने वाले व्रती पर अपनी अनुकृपा कर देते हैं।


◆इस दिन जो मनुष्य सपने सामर्थ्य के अनुसार दान देते है और गरीबो की मदद करते है तो इस दिन जो भी दान और दूसरों के प्रति किये गए कार्य से गणपति खुश होते है।


◆इस व्रत के प्रभाव स्वरूप मनुष्य को गणेशजी की कृपा से सौ गुणा प्राप्त होती है।



भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चन्द्र दर्शन निषेध:-इस दिन चन्द्र दर्शन करने से किसी भी तरह से बचने की कोशिश करते हुए चन्द्रमा के दर्शन को नहीं करना चाहिए। इस दिन चन्द्रमा के जो भी दर्शन करते है उनको झूठा कलंक को भोगना पड़ता हैं। इस विषय में हिन्दू धर्म शास्त्रों में बताई गई है कि मिथ्या कलंक श्रीकृष्णजी भगवान को भी भोगना पड़ा था।



गणेश चतुर्थी को चन्द्र दर्शन दोष से बचाव:-जिस तरह चन्द्रमा अपनी देह को सुंदर और आकर्षक मानकर अपने आप को सबसे सुंदर मानता है, जो भी इस भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को दर्शन करता है, तो उसको मिथ्या कलंक को भोगना पड़ता है। 


◆यदि किसी को किसी भी कारण से चन्द्रमा के दर्शन हो जाते है, तो उनको यह मंत्र का पाठ करना चाहिए, जो इस तरह है:


सिंह प्रसेनमवधीत्सिहो जाम्बवता हतः।


सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तक।।


इस मंत्र का पाठ करने से भी चन्द्रदर्शन के अशुभ प्रभाव एवं झूठे कलंक के दोष से मुक्ति मिलती है और


◆ साथ ही निम्नलिखित कथा जो श्रीकृष्णजी को भी चन्द्र दर्शन के कारण भोगनी पड़ी थी, उस कथा को भी सुनना चाहिए। जिससे चन्द्र दर्शन करने के मिथ्या कलंक से बचा जा सके।


भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चन्द्रदर्शन विषय की पौराणिक कहानी:-बहुत पहले समय में द्वापरयुग का समय था। उस युग में एक सत्राजित् नाम का यदुवंशी निवास करता था। वह भगवान सूर्य देव की नियमित आराधना करता है और सूर्य भगवान में प्रति उसकी पूर्ण आस्था थी। उसकी भक्ति से खुश होकर भगवान सूर्य देव ने उसे स्यमन्तक नाम की मणि दी। जो सूर्य देव की तरह ही प्रकाशवान एवं क्रांतिमान थी। वह मणि प्रतिदिन आठ भार अर्थात् (आठ भार का मतलब है कि मणि के समान आठ भार) सोना देती थी तथा उसके प्रभाव से सम्पूर्ण राष्ट्र में रोग, अनावृष्टि, सर्प, अग्नि, चोर और दुर्भिक्ष आदि का डर नहीं रहता था। एक दिन सत्राजित् उस मणि को धारण करके राजा उग्रसेन की सभा में आया।


उस समय मणि की क्रांति से वह दूसरे सूर्य की तरह ही प्रतीत दिखाई दे रहा था। भगवान श्रीकृष्णजी की इच्छा थी कि यदि यह ध्वय रत्न राजा उग्रसेन के पास होता तो सारे राष्ट्र का कल्याण होता, उधर सत्राजित् को मालूम हो गया कि श्रीकृष्णजी मेरी मणि ले लेना चाहते हैं। अतः उसने वह मणि अपने भाई प्रसेन को दे दी। एक दिन प्रसेन उस मणि को गले में बांधकर घोड़े में पर सवार होकर आखेट के लिए गया और वहां एक सिंह के द्वारा मारा गया। प्रसेन के न लौटने पर यादवों में काना-फूसी होने लगी कि श्रीकृष्णजी ने मणि को पाने के लिए प्रसेन को मार कर मणि प्राप्त कर ली होगी। उधर वन में मुहँ में मणि दबाये हुए सिंह को ऋक्षराज जाम्बवान ने देखा तो उसे मारकर स्वयं मणि ले ली और उसे ले जाकर बच्चे को खेलने के लिए दे दी।



इधर द्वारिका में काना-फूसी के शब्द श्रीकृष्णजी के कानों तक पहुँचे। वे राजा उग्रसेन से परामर्श कर कुछ साथियों को लेकर प्रसेन के घोड़ो के खुरों के चिन्हों को देखकर वन में पहुँचे। वहां उन्होनें घोड़े और प्रसेन को मृत पड़ा पाया और उनके पास सिंह के चिन्ह देखें। उन चिन्हों का अनुसरण करते हुए आगे जाने पर उन्हें सिंह को भी मृत पड़ा पाया। वहां ऋक्षराज जाम्बवान के पैरों के निशान देखते हुए वे लोग जाम्बवान की गुफा पहुँचे। श्रीकृष्ण भगवान ने कहा कि यह तो स्पष्ट हो चुका हैं कि प्रसेन सेन घोड़े सहित सिंह द्वारा मारा गया है। परन्तु सिंह से भी बलवान कोई हैं जो इस गुफा में रहता हैं। मैं इस गुफा में से स्यमन्तक मणि लाने की कोशिश करता हूँ। यह कहकर श्याम गुफा में घुस गए। वहां उनका ऋक्षराज जाम्बवान से इक्कीस दिनों तक घोर संग्राम युद्ध हुआ।



अन्त में जाम्बवान ने भगवान को पहचान कर उनसे प्रार्थना करते हुए कहा-हे प्रभु! आप ही मेरे स्वामी श्री राम हैं। नाथ! मैं अर्ध्यस्वरूप अपनी इस कन्या जाम्बवती और यह मणि स्यमन्तक आपको देता हूँ। कृपया ग्रहण कर मुझे कृतार्थ करें तथा मेरे अज्ञान को क्षमा करें। जाम्बवान से पुणित हो श्री कृष्ण स्यमन्तक मणि लेकर जाम्बवती के साथ द्वारका आये। कृष्ण के साथ जो यादवगण गए थे वो तो बारह दिन बाद ही वापिस आ गए थे और श्री कृष्ण ने इक्कीस दिन गुफा में युद्ध किया था। तब यह विश्वास हो गया था कि श्री कृष्ण गुफा में मारे गए। किन्तु श्री कृष्ण को आया देखकर द्वारका में प्रसन्नता की लहर दौड़ गयी। श्री कृष्ण ने जब यादवों से भरी सभा में वह मणि सत्राजित् को दे दी तो सत्राजित् ने भी प्रायश्चित स्वरूप अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह श्री कृष्ण के साथ कर दिया। इस मणि का आख्यान जो पढ़ता हैं या सुनता हैं, उसे भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी के चन्द्रदर्शन के दोष से मुक्ति मिल जाती हैं।

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