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Wednesday 16 June 2021

मंगला गौरी व्रत विधि कथा (Mangla Gauri vrat vidhi katha)

                


मंगला गौरी व्रत उद्यापन विधि, कथा और महत्व (Mangla Gauri vrat udyaapan vidhi, katha and importance):-श्रावण के महीने में आने वाले सब मंगलवार को मंगला गौरी का व्रत करना चाहिए। इस व्रत में माता गौरी जी का पूजा-अर्चना करने का शास्त्र मत बताया गया है। यह व्रत मंगलवार को करने से इस व्रत को मंगला गौरी व्रत कहते है। 

मंगला गौरी व्रत विधि:-मंगला गौरी व्रत मुख्यतया औरतों के द्वारा ही किया जाता है।

◆इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर अपनी दैनिकचर्या से निवृत होकर उस दिन सिर धोकर स्नानादि करना चाहिए उसके बादमें स्वच्छ वस्त्रों को धारण करना चाहिए।

◆फिर अपने घर में जहां पर पूजा करनी होती है उस स्थान को साफ-सुथरा करके उस  पूजा की जगह पर एक लकड़ी का बाजोट या किसी भी वस्तु का उपयोग करते हुए एक चौकी बनानी चाहिए उस चौकी पर साफ व नवीन एक सफेद और एक लाल रंग का वस्त्र बिछाना  चाहिए। 

◆श्रावण के महीने में सब मंगलवार को मंगला गौरी का व्रत करना चाहिये। उस दिन सिर धोकर एक पाटे पर सफेद और लाल कपड़ा बिछाना चाहिए।

◆पाटे पर पूजा की सभी सामग्री रखकर थोड़ा चावल, एक पूजा की सुपारी पर मौली लपेटकर गणपतिजी के साथ रख देवें।सफेद कपड़े पर चावल को कुड़ी करके नौ ग्रह बना लेवें।

◆बाद में पाटे से थोड़ा नीचे गेहूँ रखकर एक आटा को चोमुखें दिये के नाल को सोलह-सोलह तार की चार कतार लें।

◆सोलह की धूप बना लेवें।

◆सब औरतें बैठकर पहले गणेशजी को पानी, पंचामृत, मौली, जनेऊ, चन्दन, बेलपत्र, रोली,फल, पंचमेवा, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, अबीर, गुलाल आदि से पूजा करके कलश की पूजा कर उसमें एक सुपारी, छाड़-छड़ेला, थोड़ी मिट्टी, सवा रुपया डाल देवें।

◆ऊपर आम का पांच पत्ता लगा कर एक सिकोरा में थोड़ा-सा चावल डालकर कलश पर रखें। 

◆इस पर लाल कपड़ा बांध देवें और गणेशजी की पूरी विधि-विधान से पूजा करें, नौ ग्रह की एवं सोलह मातृका की भी पूजा करनी चाहिए। 

◆पूजा कराने वाले पंडितजी को भी टीका लगाकर, मौली बांधकर मां गौरी की पूजा करनी चाहिए।

◆केला का खम्भ और फूल से सुन्दर मण्डप सजाकर, अपने श्रद्धा अनुसार सोने की या कोई दूसरी धातु की देवी की मूर्ति विराजमान करें। 

मूर्ति के पास ही सिल्ला-लोड़ी की भी पूजा करें और श्रद्धानुसार सोलह सुहागन महिला को भोजन करावें। इसके बाद प्रातःकाल गौरी माता का धूम-धाम से नदी, कुआं या तालाब पर विसर्जन करें।


उद्यापन विधि:-श्रावण मास में जितने भी मंगलवार आये, उन दिनों यह व्रत करके मंगला गौरी का व्रत करना चाहिए। यह व्रत विवाह के बाद पांच वर्षों तक करना चाहिए। विवाह के बाद प्रथम श्रावण पीहर में तथा अन्य चार वर्षों में पति के घर में यह व्रत किया जाता हैं। चार वर्ष श्रावण मास के सोलह या बीस मंगलवारों का व्रत करने के बाद इस व्रत का उद्यापन करना चाहिए। क्योंकि बिना उद्यापन के यह व्रत निष्फल होता हैं। दूसरे दिन यथा सम्भव हवन करवायें और सोलह सह पत्नीक ब्राह्मणों को भोजन करा कर सुहाग पिटारी व दक्षिणा देवें। अपने सासुजी को सोलह लड्डुओं का वायना निकालकर चरण स्पर्श करके उन्हें देवें। 

मंगला-गौरी व्रत कथा:-कुण्डिनपुर में धर्मपाल नामक एक धनी सेठ रहता था। उसकी पत्नी सती, साध्वी एवं पतिव्रता थी। परन्तु उनके कोई पुत्र नहीं था। सब प्रकार के सुखों से समृद्ध होते हुए भी वे दम्पत्ति बड़े दुःखी रहा करते थे। उनके यहां एक जटा-रुद्राक्षमालाधारी भिक्षु प्रतिदिन आया करता था। सेठानी ने सोचा कि भिक्षु को कुछ धन आदि दे दें। सम्भव हैं कि इसी पुण्य से मुझे पुत्र प्राप्त हो जाए। ऐसा विचार कर पति की सहमति से सेठानी ने भिक्षु की झोली में छिपाकर सोना डाल दिया। परन्तु इसका परिणाम उल्टा ही हुआ। भिक्षु अपरिग्रहवृति (एकत्रित नहीं करना) थे। उन्होंने अपना व्रत भंग हो जाने पर सेठ-सेठानी को सन्तान हीनता का श्राप दे डाला। फिर बहुत अनुनय-विनय करने से उन्हें मंगला गौरी की कृपा से एक अल्पायु पुत्र प्राप्त हुआ। उसे गणेश ने सोलहवें वर्ष में सर्पदंश का श्राप दे दिया था। परन्तु उस बालक का विवाह ऐसी कन्या से हुआ, जिसकी माता मंगला गौरी का व्रत किया था। उस व्रत के प्रभाव से उत्पन्न कन्या विधवा नहीं हो सकती थी। अतः वह बालक शतायु हो गया। न तो उसे सांप ही डस सका और न ही यमदूत सोलहवें वर्ष में उसके प्राण ले जा सके। इसलिए ये व्रत प्रत्येक नवविवाहिता को करना चाहिए। काशी में इस व्रत को विशेष समारोह के साथ किया जाता हैं।


मंगला गौरी व्रत का महत्व:-मंगला गौरी का व्रत करने से वैधव्य से छुटकारा मिल जाता हैं।

मंगला गौरी के व्रत के प्रभाव से किये गए बुरे पापों से मुक्ति मिल जाती है।

व्रती को सभी तरह के सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती हैं।

।।जय मंगला गौरी।






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