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Monday 21 June 2021

गणगौर व्रत विधि और कथा(Gangaur vrat vidhi and katha)





गणगौर व्रत विधि और कथा(Gangaur vrat vidhi and katha):-चैत्र के महीने में होली के दूसरे दिन (छारंडी के दिन) कुंवारी कन्यायें एवं महिलाऐं सोलह दिन तक गणगौर की पूजा पूजा करती है।

चैत्र के महीने में इलख्या-बिलख्या की कथा:-सात सहेलिया थी। छः तो अमीर थी व एक गरीब थी। छः लड़किया गणगौर का व्रत करने की सोची और सातवी लड़की को भी कहा कि तुम व्रत करो, हम सभी कर रहे हैं। सातवीं सहेली ने मना कर दिया तो भी वे उनकी बात को मानी नहीं और वे अपनी सहेली के घर जाकर उसकी मां को कहा - ये भी हमारे साथ-साथ व्रत कर लेगी। 

लेकिन सातवीं सहेली की माँ ने कहा - मेरे घर में तो ऐसा कुछ नहीं है। सुबह करे तो शाम को नहीं, शाम को लावै तो सुबह नहीं। लेकिन वे सहेलियां तो मानी भी नहीं और कहा एक-एक दिन करके वह हम सबके यहां व्रत कर लेगी। ऐसे करके इसके पूरे व्रत हो जायेंगे, लेकिन आप इसको मना मत करो। सभी सहेलियां की जिद्द करने पर माँ को बेटी के व्रत करने की बात माननी पड़ी। किसी भी तरह से छः दिन व्रत करने में निकल गये। सातवें दिन सभी सहेलियां एकता करके सातवीं सहेली के घर आई और सहेली व उसकी माँ को कहा - छः दिन तक तुमने सभी सहेलियों के यहां भोजन किया तो कल मैं सब आपके घर व्रत करने के लिये आयेंगे। लेकिन माँ-बेटी टी घबरा गई कि अब क्या होगा ? माँ तो बेटी को खूब खरी-खोटी सुनाने लगा। मैंने तो तुझे पहले ही मना किया था, परन्तु तुमने मेरी बात मानी नहीं और उसको जोर-जोर से मारने लगी। ऐसे में गरीब सहेली जंगल में चली गयी और चिन्ता करते-करते उसको नींद आ गयी। उधर शिवजी और पार्वती जी की सवारी निकल रही थी, तब पार्वतीजी का ध्यान जाने पर शिवजी को कहा-कि ये कौन सो रही है और इसे क्या चाहिये। 

शिवजी भगवान बोले- यहां पर तो बहुत से लोग आते-जाते हैं और सोए रहते हैं मैं किस-किस का ध्यान रखूं। लेकिन पार्वतीजी ने हठ पकड़ ली और कहने लगी कु आपको तो इसका ध्यान रखना ही पड़ेगा। ये तो हमारी शरण में आई हुई हैं। इसको नहीं पूछोगे तो हमारे को धरती पर कौन पूजा करेगा। शिवजी व पार्वतीजी नीचे उतर कर उसको पूछा कि उठ तेरे को क्या चाहिये। वह उठकर देखे तो शिवजी और पार्वतीजी सामने खड़ा है। 

उसने कहा -मैं बहुत ही विपदा में हूँ। मैंने गणगौर के व्रत किये हैं। मेरे घर छः सहेलियां भोजन करने के लिये आयेगी। मेरे घर में तो कुछ भी खाने के लिये नहीं हैं। मैं उनको क्या भोजन कराऊंगी। इस कारण मैं यहां आकर बैठी हूँ। 

तब ईसरजी को दया आने पर कहा- कि तेरे से जितने कंकर-पत्थर उठा सकती हैं उतने इकट्ठा करके घर पर ले जाकर घर के ओबरी में डाल देना और थोड़ा पालना में डाल देना। उसने जंगल से कंकर-पत्थर लाकर पालना और ओबरी में डाल दिया। 

माँ बाहर से आकर पूछती- की इतना क्या लेकर आई है। इतना कहकर माँ ओबरी खोलती है तो हीरा-मोती झगमग करता हुआ देखें और बाहर आकर पालना में छोटा-सा कंवर खेलता हुआ देखें। फिर माँ ने बेटी को आवाज देकर कहती हैं कि देख-देख ये क्या हो गया हैं? इतने हीरे-मोती कहां से लाई हैं? जब बेटी माँ को बताती-है कि ईसर-पार्वतीजी जंगल में मिले और मैं कंकर-पत्थर उठाकर घर पर ले आई। यह सभी बातें बेटी माँ को बताती हैं। फिर माँ एक हीरा लेकर बाजार में बेचकर सभी किराणा का सामान खरीद कर लाती है और खूब खाने के अच्छे-अच्छे पकवान बनाती है। पार्वतीजी के आशीर्वाद से उनकी रसोई में छत्तीस सालाना बत्तीस तरह के भोजन हो गये। इधर सभी सहेलियां उनके घर भोजन करने के लिये आई। सातवीं सहेली के ठाठ-बाट देखकर वह दंग रह गई और खूब मौज-मस्ती से भोजन किया। घर जानें में देरी हो जायेगी। उनकी मां ने सोचा कि मेरी बेटियां भूखी-प्यासी बैठी हुई होगी। इसलिये वह थाली में सब्जी व पुड़ी लेकर आती हैं। यहां आकर देखें तो सभी सहेलियां उछल-कूद कर रही थी। सभी की माँ ने पूछा कि कल तक तो मेरे घर में खाने के लिये कुछ नहीं था तो फिर इतना सब कुछ कहां से लाई हो। फिर गरीब सहेली जंगल से लेकर अपनी पूरी कहानी सुनाती हैं। जब एक सहेली की माँ सोचती है कि इतना करने से ऐसा ठाट-बाट हो जाये तो मैं भी ऐसा ही करके देखूं। वह भी अपनी बेटी से कहने लगी कि तुम भी ऐसा ही करो। लेकिन बेटी माँ को बहुत समझाने के बावजूद भी वह नहीं मानती हैं। तब बेटी जंगल में जाती हैं तो उसको भी शिवजी व पार्वतीजी मिलते है। गरीब सहेली को कहा जैसा ही उसको कहते हैं कि कंकर-पत्थर ओबरी में जाकर डाल देना। लेकिन उसके यहां हीरे-मोती की जगह सांप-बिच्छू हो जाते हैं। वह भी सहेली अपनी सारी सहेलियों को भोजन करने के लिये अपने घर बुलाने के लिये जाती हैं तो सहेलियां कहती हैं कि तुमने तो खाना खिला दिया है अब बार-बार क्या हैं? लेकिन सहेली माँ के डर से वह सभी सहेलियों को कहकर तो आ गयी। सभी सहेलियां भोजन करने के लिये सहेली के घर में सांप-बिच्छू को देखकर हाहाकार करने लगी। शैलू की माँ घबरा गई। अब उसके मन पछतावे में यूं ही देखा-देखी करने से उसके घर में तो बहुत ही धन हो गया और खुद के घर में सांप-बिच्छू हो गया। सभी सहेलियां आपस में कहने लगी कि इसने तो धन के लालच में आकर ऐसा किया। फिर माँ-बेटी गरीब सहेली के घर गयी और पांव पकड़कर कहा-कि माँजी मुझे माफ कर दो और इस सांप-बिच्छुओं को यहां से निकाल दो। जब सातवीं सहेली की माँ ने कहा-शिवजी और पार्वतीजी की पूजा-अर्चना करो और उनसे माफी मांगो।

तब दोनों माँ-बेटी शिवजी व पार्वतीजी की पूजा-अर्चना करके उनसे माफी मांगी और कहा -ईसरजी व गणगौर जी मेरे ऊपर टूटे, वैसा किसी के भी ऊपर मत टूटना। माँ-बेटी पर शिवजी व पार्वतीजी प्रसन्न हुए और रिद्धि-सिद्धि कर ध्यान सबका किया। खोटी की खरी अधूरी पूरी जानना।

उजमणा विधि:-छः कुंवारी कन्यायें व एक विवाहित महिला को एवं एक साख्या को आलू की सब्जी, पुड़ी व केर-सांगरी का भोजन करवाना चाहिए।

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