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Tuesday 15 June 2021

श्री हनुमान स्तवन अर्थ सहित (Shree hanuman stavan with meaning)



श्री हनुमान स्तवन अर्थ सहित (Shree hanuman stavan with meaning):भगवान रामजी के परम भक्त श्री हनुमानजी का जन्म प्रभु श्री रामजी की सेवा के लिए हुआ था।भगवान रामजी के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर करने वाले हनुमानजी थे। श्री हनुमानजी भगवान रामजी के अनन्य भक्त और सेवा भावी थे। जिस तरह भगवान रामजी के नाम को सुनकर हनुमानजी दौड़े चले आते है। इसलिए हनुमानजी को खुश करना है, तो श्रीरामजी की आराधना करनी चाहिए जिससे वें अपने भक्तों के सभी कष्टों का संहार कर सके।जिस तरह उन्होंने राक्षसों का अंत किया था। उसी तरह अजर-अमर हनुमानजी कष्टों का हरण करते है। मनुष्य की सभी इच्छाओं को पुरा करते है। उनके अपने प्रेम भाव और श्रद्धा भाव से उनकी आराधना करने से वे खुश होकर आशीर्वाद देते है।


।।अथ श्री हनुमानजी का हनुमान स्तवन।।

प्रनवउँ पवन कुमार खेल बन पावक ज्ञान घन।

जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर।।1।।

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं 

दनुजवनकृशानुं ज्ञानि नामग्रगण्यम्।

सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तंवातजातं नमामि।।2।।

गोष्पदीकृतवारीशं मशकीकृतराक्षसम्।

रामायणमहामालारत्नं बन्देनिलात्मजम्।।3।।

अंजनानन्दम् वीरम् जानकीशोकनाशनम्।

कपीशमक्षहन्तारम् बन्दे लङ्काभयंकरम्।।4।।

उल्लङ्घ्य सिन्धोः सलिलं सलीलम् यः शोकवह्निं जनकात्मजाः।

आदाय तेनैव ददाह लंका नमामि तं प्रांजलिरांजनेयम्।।5।।

मनोजवं मारूततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।

वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये।।6।।

आंजनेयमतिपाटलाननं कांचनाद्रिकमनीयविग्रहम्।

पारिजाततरूमूलवासिनम भावयामि पवमाननन्दनम्।।7।।

यत्र यत्र रगुनाथ कीर्तनं तत्र तत्र कृतमस्तकाञ्जिलाम्।

वाष्पवारगपरिपूर्णलोचनम् मारूतिं नमत राक्षसान्तकम्।।8।।


।। इति श्री हनुमान जी का हनुमान स्तवन।।

।।जय बोलो पवनपुत्र हनुमानजी की जय हो।।

।।जय बोलो सीतारामजी की जय हो।।


श्रीहनुमानजी का हनुमान स्तवन अर्थ सहित:-श्री हनुमान स्तवन में श्रीहनुमानजी को बुलाने के लिए उनकी स्तुति की जाती है। हनुमान स्तवन में श्री हनुमानजी के रूप-रंग, शरीर के विराट रूप, शरीर पर धारण रत्न, वस्त्र ,दैत्य का संहार के बारे, माता सीताजी डर को दूर करना, भगवान रामजी के प्रति अनन्य भक्ति भाव और उनके द्वारा किये गए कार्यों के बारे में जानकारी मिलती है। इसलिए हनुमान स्तवन करने से सभी तरह का ज्ञान और हनुमानजी के दर्शन प्राप्त हो जाते है, इसलिए मनुष्य को नियमित रूप से यदि नियमित रूप से नहीं कर सकते तो मंगलवार या शनिवार को जरूर हनुमान स्तवन का पाठ करना चाहिए जिससे सभी तरह की बाधाओं से मुक्ति मिल सके।


।।श्रीहनुमानजी का हनुमान स्तवन।।

प्रनवउँ पवन कुमार खेल बन पावक ज्ञान घन।

जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर।।

अर्थात:-मैं उन मारुतिनंदन या पवन पुत्र श्रीरामजी के परम प्रिय भक्त श्री हनुमानजी को प्रणाम करता हूँ, जो अधर्म रूप के अटवी में अर्थात दैत्य के समान रूप वाले जंगल में हुताशन के समान ज्ञान से परिपूर्ण हैं। धनुष को धारण किये हुए श्रीरामजी का निवास स्थान हनुमानजी के वक्षःस्थल या उरु रूपी भवन में होता है। 

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानि नामग्रगण्यम्।

सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।

अर्थात:-जिस बल की तुलना नहीं कि जा सके, उस अतुलीय बल या ताकत के निवास वाले, जिनका शरीर हेमकूट नग के समान, अग्नि की तरह समस्त भस्म करने की क्षमता रखने वाले है, जो राक्षस रूपी वन के लिए हुताशन की तरह, सभी तरह प्रखंड ज्ञानियों में आगे रहने वाले, जिनमे सभी तरह के गुणों का अतुलीय भंडार वाले, जो कि सभी वानरों के स्वामी भी है, जो श्रीदशरथनन्दन श्री राम के परम प्रिय भक्त पवनपुत्र श्रीहनुमानजी को नमस्कार करता हूँ।

गोष्पदीकृतवारीशं मशकीकृतराक्षसम्।

रामायणमहामालारत्नं बन्देनिलात्मजम्।।

अर्थात:-जिनमें इतना बल हैं कि जो धेनु के खुर के आकार की तरह विशाल सागर को भी छोटा या संक्षिप्त कर सकते हैं, विशाल दैत्यों के रूप को मच्छर के रूप में बदल सकते है, जिनमें रामायण रूपी महती माला का रत्न भी समावेशित है उन पवनपुत्र श्री हनुमानजी को मैं वंदन करता हूँ।

अंजनानन्दम् वीरम् जानकीशोकनाशनम्।

कपीशमक्षहन्तारम् बन्दे लङ्काभयंकरम्।।

अर्थात:-जो अपनी माता अंजनी को खुश रखने के लिए हर समय प्रयत्नशील रहने वाले और उनको खुश रखते है, जो माता जानकी जी के सभी तरह के शोक को हरण करके उनका निवारण करने वाले होते है, रावण के पुत्र अक्षयकुमार को वध करने वाले होते है, जो रावण की सोने की लंका में चारों तरफ त्राहि-त्राहि मचाकर लंका में निवास करने वाले दैत्य जनों में डर को बिठाने वाले होते है, भयंकर स्वरूप वाले वानरों के स्वामी को मैं वंदन करता हूँ।

उल्लङ्घ्य सिन्धोः सलिलं सलीलम् यः शोकवह्निं जनकात्मजाः।

आदाय तेनैव ददाह लंका नमामि तं प्रांजलिरांजनेयम्।।

अर्थात:-जिन्होंने विशाल जल से भरे सागर को अपनी बुद्धि से और चातुर्यता से जिस तरह कोई खेल खेला जाता है उसी तरह उन्होंने सभी तरह के संकष्टो को हर के सागर को पार किया था और लंका में पहुंचकर माता सीताजी के सभी तरह के संकष्टो के शोक रूपी अग्नि को लेकर उन्होंने लंका का दहन कर दिया और प्रभु श्रीरामजी के पराक्रम के बारे में बता दिया कि उनमें कितना पराक्रम होगा, उन अंजनी पुत्र श्री हनुमानजी को मैं हाथ जोड़ कर नमस्कार करता हूँ।

मनोजवं मारूततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।

वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये।।

अर्थात:-जो मन की तरह ही गति वाले, पवन की तरह वेग वाले, जिन्होंने अपनी सभी इंद्रियों पर विजय को प्राप्त किया है, जो सभी विद्वानों में एवं बुद्धिमानों में सबसे उत्तम है, जो पवन पुत्र है, जो वानरों के समूह के मुख्या हैं, मैं श्री रामजी के दूत की शरण को प्राप्त करता हूँ।

आंजनेयमतिपाटलाननं कांचनाद्रिकमनीयविग्रहम्।

पारिजाततरूमूलवासिनम भावयामि पवमाननन्दनम्।।

अर्थात:-जिनका सुंदर शरीर हेमकूट पर्वत की तरह सुंदर दिखाई देता है, जिनका मुख गुलाब के पुष्प की तरह हैं, जो अपना निवास कल्पवृक्ष की मूल पर करते है, जो माता अंजना के पुत्र है, उन पवन पुत्र श्री हनुमानजी मैं स्मरण करता हूँ।

यत्र यत्र रगुनाथ कीर्तनं तत्र तत्र कृतमस्तकाञ्जिलाम्।

वाष्पवारगपरिपूर्णलोचनम् मारूतिं नमत राक्षसान्तकम्।।

अर्थात:-श्री हनुमानजी जहां कहीं पर भी श्री रामचन्द्र जी का गुणगान, बखान और कीर्तन होता हैं, वहां-वहां पर मस्तक पर हाथों को जोड़े हुए दौड़े-दौड़े चले आने वाले, जो अपने आंनद रूपी आँसू से भरे हुए नेत्रों वाले, जो दैत्यों के लिए काल के समान रहने वाले होते है, उन पवनपुत्र श्रीहनुमानजी को नमस्कार करें।


।। इति श्री हनुमान जी का हनुमान स्तवन।।

।।जय बोलो पवनपुत्र हनुमानजी की जय हो।।

।।जय बोलो सीतारामजी की जय हो।।

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