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Sunday 8 August 2021

शीतला षष्ठी व्रत विधि, कथा एवं महत्व(Sheetla Shashthi Vrat vidhi, katha and importance)

                  



शीतला षष्ठी व्रत विधि, कथा एवं महत्व(Sheetla Shashthi Vrat vidhi, katha and importance):-शीतला षष्ठी व्रत चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है।यह व्रत माता शीतलाजी को खुश करने के लिए किया जाता हैं,जिससे माता शीतला जी की कृपा दृष्टि बनी रहे। यह व्रत मुख्यतया औरतों के द्वारा किया जाता हैं।

शीतला षष्ठी व्रत की पूजन विधि:-शीतला षष्टी का व्रत करते समय गर्म चीजों का परहेज विशेषकर रखना चाहिए।

◆सबसे पहले सूर्य उदय होने पर उठकर अपनी दैनिकचर्या को पूरा करना चाहिए। 

◆उसके बाद स्नानादि से निवृत होकर माता शीतला जी को याद करना चाहिए। 

◆उसके बाद बाजोट पर सफेद कपड़ा बिछाकर उस बाजोट पर माता शीतला जी की मूर्ति या फोटो को स्थापित करना चाहिए।

◆कहीं-कहीं इस दिन कुत्ते को भी टिका लगाकर तथा पकवान खिलाकर पूजा करते हैं।

◆इस दिन व्रत रहने वाली स्त्री गर्म जल से स्नान नहीं करना चाहिए और गर्म भोजन भी नहीं करना चाहिये।इसका महत्त्व बंगाल देश में हैं।

◆शीतला माता की षोडशोपचार पूजा करके पापों की शर्मनार्थ प्रार्थना करनी चाहिए।

◆शीतला देवी को भोग लगाने वाले सभी पदार्थ एक दिन पूर्व ही बनाकर एक दिन का बासी भोग लगाया जाता हैं।

◆इस में रसोई घर की दीवार पर पांचों अंगुली घी में डुबोकर छापा लगाया जाता है। 

◆शीतला माता की कहानी भी सुनकर रात्रि को दीपक जलाते हैं।

◆यदि घर परिवार में शीतला माता के कुण्डारे भरने की प्रथा हो तो एक बड़ा कुण्डारा तथा दस कुण्डारे मंगवाकर छोटे कुण्डारे को बने हुए बासी व्यंजनों से भरकर बड़े कुण्डारों में रख दें।

◆फिर उसकी हल्दी से पूजा कर दें।

◆इसके बाद सभी कुण्डारों को शीतला माता के स्थान पर जाकर चढा दें।

◆जाते और आते समय शीतला माता का गीत भी गाया जाता है।

◆पुत्र जन्म और विवाह के समय जितने कुण्डारे हमेशा भरे जाते हैं, उतने कुण्डारे बढ़ोत्तरी के रूप में और भरने चाहिये।


शीतला षष्ठी व्रत की पौराणिक कथा:-प्राचीन समय में एक वैश्य एक नगर में रहता था।उस वैश्य के सात पुत्र थे। लेकिन विवाहित होते हुये भी सब निःसन्तान थे। एक वृद्धा के उपदेश देने पर सातों पुत्रवधुओं ने शीतला माता जी का व्रत किया तथा पुत्रवती हो गई। 

एक बार वणिक पत्नी ने व्रत की उपेक्षा करते हुए गर्म जल से स्नानकर भोजन किया और दुर्मति बहुओं से भी यह करवाया। उसी रात में वह वणिक पत्नी भया वह स्वप्न में पति को मृतक देखती है। रोती-चिल्लाती पुत्रों तथा बहुओं को देखती हैं तो उनको भी चिरशैय्या पर यथावत मरणासन्न पति है। 

उसका रोना बिलखना सुनकर पास पड़ौस के लोग माता शीतला के प्रति किया गया उसका प्रमाण ही बताते हैं। अपने ही हाथ की कुल्हाड़ी अपने देह में लगी देखकर वह पगली सी चीख कर वन में निकल पड़ी। मार्ग में उसे एक वृद्धा मिली, जो उसी की ज्वाला में तड़प रही थी। वह वृद्धा स्वयं शीतला माँ थी। 

उन्होंने वणिक भार्या से दही मांगा। उसने दही ले जाकर भगवती शीतला के सारे शरीर पर लेप कर दिया। जिससे उनके शरीर की ज्वाला शांत हो गयी। एक बार वणिक भार्या ने अपने पूर्वकृत गर्हित कर्मों पर बहुत पश्चाताप किया तथा अपने पति को जलाने की भगवती शीतला से प्रार्थना की। तब शीतला माता ने प्रसन्न होकर उसके पति-पुत्रों को पुनः जीवन दान दिया। वैसे ही सबको पुनः जीवन प्रदान करें।

शीतला षष्ठी व्रत का महत्व:-यह व्रत चैत्र कृष्ण षष्ठी को किया जाता हैं।

◆इस व्रत को करने से माता शीतला की कृपा प्राप्त होती है, जिससे चेचक आदी बीमारी से मुक्ति मिलती है।

◆इस व्रत को औरतों अपने पुत्र की उम्र की बढ़ोतरी के लिए करती है।

 ◆शीतला षष्ठी व्रत करने से जिन औरतों के सन्तान नहीं होती है, उन औरतों की सन्तान कामना फलवर्ती होती हैं।

◆इस व्रत को करने से शारीरिक ताप से मुक्ति मिलकर शरीर को शीतलता की प्राप्ति होती हैं।

।।शीतला माता का गीत।।

मेरी माता को चिनिये चौबारो, दुधपूत देनी को चिनिये चौबारो।

कौन ने मैया ईट थपाई, और कौन ने घोरौ है गारौ।

श्री गजेंद्र ने मैया ईटें थपाई, नरेशजी घोरौ है गारौ।

मेरी माता को चिनिये चौबारो, दुधपूत देनी को चिनिये चौबारो।।

नोट:-श्री गजेंद्र व नरेशजी के स्थान पर अपने परिवार के सदस्यों का नाम लेवें।

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