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Wednesday 28 July 2021

शयन नियम और दिशा(Sleeping rules and direction)




शयन नियम और दिशा(Sleeping rules and direction):-प्राचीन काल के जमाने से मनुष्य को सोने के विशेष बातें को अपने ज्ञान-चक्षु से जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे ऋषि-मुनियों ने निद्रा से सम्बंधित बहुत गहरा अध्ययन किया था। उन्होंने मनुष्य को किस तरह अपने शरीर को स्वस्थ रखना चाहिए उससे सम्बन्धित मनुष्य को क्या-क्या बातों का ध्यान रखना चाहिए   मनुष्य के जीवन में भोजन करने के तरीके के समान ही शयन करने के तरीके और दिशा का बहुत ही महत्व है।सही दिशा की ओर नहीं सोने से उस दिशा का असर मनुष्य के स्वास्थ्य,आर्थिक एवं मानसिकता पर पड़ता है।

आयुवेद शास्त्र में ,धार्मिक धर्म ग्रन्थों, वास्तुशास्त्र और आधुनिक विज्ञान शास्त्र आदि में इस बात को सिद्ध किया है

शयन विधान

प्रत्येक मनुष्य को जल्दी प्रातःकाल के ब्रह्म मुहूर्त में उठाना चाहिए, जिससे ईश्वर की अनुकृपा प्राप्त हो सके।

मनुष्य को शाम के समय अपना भोजन ग्रहण करके सूर्य अस्त के एक प्रहर लगभग तीन घण्टे के बाद में ही अपने शयन की तैयारी करनी चाहिए।

सोने के तरीके या मुद्राऐं:-हमारे धार्मिक शास्त्रों में सोने के तरीके बताए गए वे चार तरह के बताए है जो इस तरह है-

उल्टा सोये भोगी।

सीधा सोये योगी।

दांये सोये रोगी।

बांये सोये निरोगी।

1.उल्टा सोना:-जो मनुष्य उल्टे सोते है वे मनुष्य अपने जीवन में भोग-विलास को ग्रहण करने वाले होते हैं।

2.सीधा सोना:-जो मनुष्य सीधा सोते है वे मनुष्य अपने जीवन में ईश्वर भक्ति और अच्छाई के कार्य करते हुए जीवन को व्यतीत करते है और अपने योग बल से सबकी भलाई की सोच रखने वाले होते है।

3.दायां सोना:-जो मनुष्य दायीं तरफ होकर सोते है वे अपने जीवन में अनेक तरह की बीमारियों से ग्रसित होकर जीवन को बिताने वाले होते है और जीवन भर किसी न किसी तरह की बीमारी जैसे पेट सम्बन्धित, गैस, अपच आदि से ग्रसित होकर रोगी बन जाते हैं।

4.बायां सोना:-जो मनुष्य बायीं तरफ होकर सोते है वे अपने जीवन काल में स्वस्थ रहते है उन पर बिना मतलब की किसी भी तरह की बीमारी हावी नहीं होती हैं।

शास्त्रीय विधान

आयुर्वेद शास्त्र:-आयुर्वेद शास्त्र में बताया गया है कि मनुष्य को 'वामकुक्षि' अर्थात बायीं तरफ होकर ही सोने से लाभ की प्राप्ति होती है और स्वास्थ्य निरोग रहता है।

शरीर विज्ञान के अनुसार:-शरीर विज्ञान के मतों के अनुसार जो मनुष्य उल्टे होकर अर्थात पेट के बल सोते है उनकी नेत्र ज्योति कमजोर हो जाती है और दायीं तरफ होकर अपने शरीर का वजन रखने से उनके रीढ़ की हड्डी अर्थात कशेरुकाओं पर जोर पड़ने से वे कमजोर होकर नुकसान होता है।

सोते व उठते समय मन्त्रों के अनुसार:-मनुष्य को सोते समय गायत्री मंत्र या नवकार मंत्र को कितनी संख्या रखनी चाहिए। धर्म शास्त्रों में बताया गया कि हमारे ऋषि-मुनियों ने सोते समय सात तरह के डर को दूर करने के लिए सात मन्त्र को  संख्या  ("सूतां सात") और उठते समय ("उठता आठ") में आठ कर्मों को दूर करने के लिए आठ मन्त्र की संख्या रखनी चाहिए।

सात भय:-धर्म शास्त्रों में सात तरह के भय इहलोक, परलोक, आदान, अकस्मात, वेदना, मरण और अश्लोक भय बताये है इन सभी तरह के भयों से मुक्ति के लिए सात बार गायत्री मंत्र का जप करके ही मनुष्य को अपने शयन के लिए जाना चाहिए।

दिशाओं के आधार पर शयन के बारे में जानकारी:-मनुष्य को दिशाओं के आधार उन दिशाओं के सम्बन्धित नियमों को ध्यान में रखते हुए दिशाओं के अनुसार दोष और फायदा को जानकारी शयन करना चाहिए-

मनुष्य का सिर पूर्व दिशा की ओर रखने के फल:-मनुष्य का सिर पूर्व दिशा की ओर रखकर सोने पर सही व बढ़िया तरीके से निंद्रा आती है। मनुष्य का मस्तिष्क तरोताजा एवं शरीर स्वस्थ रहता है। जो मनुष्य धार्मिक, आस्थावान एवं आध्यात्मिक फायदा की कामना करने वाले मनुष्यों को हमेशा पूर्व दिशा की ओर सिर करके सोना चाहिए। मनुष्य पूर्व दिशा की सिर रखकर सोने पर विद्या में रुचि बढ़ती है और यादास्त शक्ति की प्राप्ति होती है।


मनुष्य का सिर दक्षिण दिशा की ओर रखने के फल:-दक्षिण दिशा की ओर सिर करके सोने से भी मनुष्य को सही तरीके से अच्छी नींद आती है और आवक में बढ़ोतरी होती है। मनुष्य को रुपये-पैसों की प्राप्ति होती है, रोजगार में बरकत होती है और शरीर एकदम स्वस्थ रहता है। .


मनुष्य का सिर पश्चिम दिशा की ओर रखने के फल:-मनुष्य के द्वारा पश्चिम दिशा की ओर सिर करके शयन करने से मनुष्य के जीवन की उम्र में कमी आती हैं, मनुष्य उम्र से पूर्व ही बूढ़ा दिखाई देने लगता है, बाल सफेद होकर गिरने लगते है जिससे मनुष्य को तनाव पैदा होता है। किसी तरह से मन नहीं लगता है, बहुत ही चिंता करने लगता हैं। 


मनुष्य का सिर उत्तर दिशा की ओर रखने के फल:-उत्तर दिशा की ओर सिर करके शयन करने से मनुष्य के जीवन की उम्र कम होने लगती है, वह उम्र से पूर्व ही कमजोर होकर बूढ़ा दिखाई देने लगता है, जिससे शारीरिक कमजोरी होने लगती है उसे मृत्यु के समान कष्ट को भोगना पड़ता हैं। 

◆मनुष्य को अपने घर में शयन कक्ष में सोते समय पूर्व दिशा की ओर सिर करके ही सोना चाहिए।

◆उत्तर दिशा की ओर सिर रखकर सोने से उम्र कम होकर मनुष्य को तनाव बढ़ता है।

◆पश्चिम दिशा की ओर मुख करके सोने से चिंताएं उत्पन्न होती है।

◆मनुष्य को अपने ससुराल में दक्षिण दिशा की ओर मुहं करके शयन करना चाहिए। यदि इस तरह की दिशा नहीं मिलने पर मनुष्य को पूर्व दिशा में सिर करके सो सकते हैं।

◆यात्रा करते समय यात्रा में पश्चिम दिशा की ओर सिर करके शयन करना बढ़िया रहता है। 

◆यात्रा में उत्तर दिशा की ओर मुहं करके सोने से हानि हो सकती है।


शयन करने से पूर्व सावधानियां:-शयन करने से पूर्व शास्त्रों दिशाओं का ध्यान रखने के साथ-साथ अन्य दूसरे बातों का भी ध्यान रखना चाहिए जो कि निम्नलिखित है-

◆मनुष्य को घर में पूर्व-उत्तर या ईशानकोण में उपासना गृह बनाकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके उपासना करने से जल्दी ही ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है।

◆मनुष्य को दोपहर के बाद पश्चिम दिशा की ओर मुख करके पेशाब करने से शारीरिक, आर्थिक एवं मानसिक हानि उठानी पड़ सकती है।

◆दिशा ध्यान दक्षिण दिशा को यमदेव और बुरे देवों की दिशा माना गया है इसलिए मनुष्य को कभी दक्षिण दिशा की तरफ पैर करके नहीं सोना चाहिए क्योंकि यदि ऐसा करेंगे तो यमदेवता व बुरी ताकते अपने ऊपर हावी होगी जिससे हमारे श्रवनेद्रिय तंत्र में हमारे श्रवण तंत्र के माध्यम से बुरे वातावरण और बुरी शक्तियों की वायु प्रवेश करके मस्तिष्क तन्त्र को प्रभावित करेगी जिससे मस्तिष्क तन्त्र में शोणित का संचार सही तरह नहीं होगा और मस्तिष्क तक शोणित उचित मात्रा में नहीं पहुंच पायेगा जिससे मनुष्य को अनेक तरह की व्याधियाँ जैसे यादास्त शक्ति की कमी,अनेक की तरह के भ्रम पैदा होकर भ्रमित करेगे और नेत्र रोग आदि हो सकते है।


◆मनुष्य को मस्तक और पाँव की ओर दीपक को नहीं रखना चाहिए।

मनुष्य को सोते समय यदि शयन कक्ष में दर्पण हो तो उस दर्पण को किसी कपड़े से ढ़ककर रखना चाहिए। बिना ढ़के नहीं सोना चाहिए।

◆यदि शयनकक्ष में ही ईश्वर का पूजा स्थल हो तो उस पूजा स्थल की जगह को ढ़ककर ही सोना चाहिए।

◆दीपक को बायीं तरफ या दायीं तरफ ज्यादा से ज्यादा पांच हाथ दूर होना चाहिए। 

◆शाम के समय में मनुष्य को कभी निद्रा नहीं लेनी चाहिए।

◆शैया पर कभी भी बैठेकर नींद नही लेनी चाहिए, क्योंकि इस तरह बैठकर सोने से रीढ़ की हड्डी पर असर पड़ता है।

◆सोने के बिस्तर पर भोजन को कभी ग्रहण नहीं करना चाहिए क्योकिं अन्नदेवता नाराज होते है, मनुष्य शरीर से बीमार हो सकते है और बीमारी घर कर जाती हैं।

◆मनुष्य को विद्या देवी की पढ़ाई करते समय बिस्तर पर सोते सोते नहीं पढ़ना चाहिए क्योंकि इससे यादास्त शक्ति पर प्रभाव पड़ कर यादास्त शक्ति कम होती है।

◆मनुष्य को सूर्य अस्त के पूर्व नहीं शयन करना चाहिए क्योंकि इस समय दिया-बाती का समय होता है, इसलिए ईश्वर की पूजा के समय पर मनुष्य को नहीं सोना चाहिए।

◆मनुष्य को पूजा-पाठ करने के बाद मस्तिष्क के ललाट पर लगाये गए तिलक को लगाए हुए कभी नहीं सोना चाहिए। क्योंकि ईश्वर की पूजा में लगाये गए तिलक को लगाए हुए सोने से ईश्वर का अपमान समझा जाता है और ईश्वर की अनुकृपा भी कम हो जाती है।

◆मनुष्य को दरवाजे के सामने नहीं सोना चाहिए क्योंकि इस तरह सोने से नकारात्मक ऊर्जा का संचार शरीर के अंदर प्रवेश कर जाता है और शरीर में भारी पन व दुखावा होना शुरू हो जाता है, इसलिए मनुष्य को दरवाजे के सामने नहीं सोना चाहिए।

◆मनुष्य को हृदय पर अपना हाथ रखकर नहीं सोना चाहिए क्योकिं इस तरह सोने से हृदय का रक्त परिसंचरण में रुकावट होती है और शरीर में परेशानी शुरू हो जाती हैं।

◆मनुष्य को ब्रह्म स्थान की जगह पर, छत के पात या बीम के नीचे भी नहीं सोना चाहिए।

◆मनुष्य को पैर के ऊपर दूसरा पैर रखकर भी नहीं सोना चाहिए, इस तरह एक पैर के ऊपर दूसरा पैर रखकर सोने से शरीर के भाग में परेशानी और निद्रा सही तरह नहीं आती है।

◆मनुष्य को सोने के पलँग की चारों पायों को समान ऊंचाई होनी चाहिए शयन बेड ऊँचा भी नहीं होना चाहिए। इस तरह शयन बेड के पायों का ऊँचा होने पर शरीर में रक्त संचरण में बाधा पहुंचती है, केवल बीमारी के हालात में शयन बेड के पायों को ऊँचा रख सकते हैं।








 

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