Breaking

Monday 16 November 2020

पंचमहापुरुषयोग







पंचमहापुरुषयोग-: फलित ज्योतिष के अंतर्गत पंचमहापुरुष योग सर्वाधिक महत्वपूर्ण योग हैं। 


पंचमहापुरुषयोग का अर्थ-:जो योग पाँच महापुरूष योगों(रूचक,भद्र,हंस,मालव्य एवं शश योग) के समूह से बनता हैं, उसे पंचमहापुरुषयोग कहते हैं।


ये पाँच योग 'पंचतारा ग्रह' मंगल,गुरु, शुक्र एवं शनि द्वारा बनता है, इस योग में उत्पन्न जातक महापुरुष होता है, इस कारण इस योग समूह को पंच महापुरुष योग कहते हैं।

  

 पंचमहापुरुषयोग एवं निर्माता ग्रह


 महापुरूषयोगनिर्माता ग्रह
रूचकमंगल
भद्रबुध
हंसगुरु
मालव्यशुक्र
शशशनि


1.रूचक महापुरूषयोग-:में रूचक का अर्थ है' रुचिकर' या 'सुखद'।रूचक एक माला या हार की तरह स्वर्णाभूषण हैं।


रूचक महापुरूषयोग का अर्थ-:यदि जन्मकुंडली में मंगल,केन्द्रभावों में स्वयं की राशि,उच्चराशि या मूलत्रिकोण राशि में स्थित हो ,तो रूचक महापुरूषयोग बनता हैं।


रूचक महापुरूषयोग का निर्माण-:जन्मकुंडली में मगंल ग्रह की निम्नांकित स्थिति से होता हैं:


1. मंगल में षड्बल बलवान हो।


2. जन्म कुंडली के लग्न से केंद्रभावों(1,4,7,10) में मंगल स्थित हो।


3. जन्म कुंडली के केंद्र भावों में मंगल अपनी राशि में (मेष, वृश्चिक राशि), उच्च राशि( मकर राशि) अथवा मूलत्रिकोण राशि  (मेष राशि) स्थित हो, तो योग का निर्माण होता है।


4. सूर्य अथवा चंद्रमा से मंगल की युक्ति नहीं होनी चाहिए ।यदि युक्ति होती हैं ,तो जातक को इस योग का पूर्ण फल ना मिलकर ,कुछ शुभ फल प्राप्त ही होता है।


5. जन्म कुंडली में सूर्य एवं चंद्रमा दोनों के बलवान होने पर ही इस महापुरुषयोग का पूर्ण फल मिलता है। यदि कमजोर हो, तो पूर्ण फल प्राप्त नहीं मिलता है।


रूचक महापुरूषयोग का फल-:निम्नाकिंत हैं:


●शरीर की रचना-:जातक लम्बा,कम भार,गाना लंबे मुख वाला,शरीर का मध्य भाग चौकोर,मांसल एवं लालिमायुक्त शरीर की छवि वाला, सुंदर भौंहों एवं नीले केशों, लालिमा लिए हुए श्याम वर्ण वाला,कमज़ोर घुटने एवं जाँघों वाला होता हैं।


●शरीर पर निशान-: हथेली एवं पैरों में खट्वांग (शय्या का अंग),वीणा, वृषभ, धनुष, भाला, चंद्र, त्रिशूल जैसे निशान होते हैं।


●स्वभाव-: जातक बहादुर और प्रधानमंत्री,चोरों के गिरोह का स्वामी,मेहनती ,शत्रु को हरण करने वाला, साहसिक कार्यों को सिद्ध करने वाला, गुरु, ब्राह्मण एवं देवताओं की भक्ति करने वाला भक्त, मंत्र एवं अभिचार कर्म (विद्वेषण उच्चाटन वशीकरण मोहन और मारण) में पारंगत एवं अग्नि से मृत्यु होती हैं।


●कार्य क्षेत्र-:  जातक सेना, पुलिस प्रशासन चिकित्सा एवं तकनीकी क्षेत्र आदि से रोजगार आजीविका प्राप्त करता है।


2.भद्र महापुरूषयोग-:में भद्र का अर्थ है' भला' 'भाग्यवान','सर्वोत्तम','प्रिय','श्रेष्ठ', 'कृपालु' आदि होता है। भद्र महापुरूषयोग का अर्थ-:यदि जन्मकुंडली में बुध,केन्द्रभावों में स्वयं की राशि,उच्चराशि या मूलत्रिकोण राशि में स्थित हो ,तो भद्र महापुरूषयोग बनता हैं।


भद्र महापुरूषयोग का निर्माण-:जन्मकुंडली में बुध ग्रह की निम्नांकित स्थिति से होता हैं:


1.बुध बली हो अर्थात षड्बल में बुध बलवान हो।


2. जन्म कुंडली के लग्न से केंद्रभावों(1,4,7,10) में बुध स्थित हो।


3. जन्म कुंडली के केंद्र भावों में बुध अपनी राशि में (मिथुन, कन्या राशि), उच्च राशि( कन्या राशि) अथवा मूलत्रिकोण राशि  (कन्या राशि) स्थित हो, तो योग का निर्माण होता है।


4. सूर्य अथवा चंद्रमा से मंगल की युक्ति नहीं होनी चाहिए ।यदि युक्ति होती हैं ,तो जातक को इस योग का पूर्ण फल ना मिलकर ,कुछ शुभ फल प्राप्त ही होता है।


5. जन्म कुंडली में सूर्य एवं चंद्रमा दोनों के बलवान होने पर ही इस महापुरुषयोग का पूर्ण फल मिलता है। यदि कमजोर हो, तो पूर्ण फल प्राप्त नहीं मिलता है।


भद्र महापुरूषयोग का फल-:निम्नाकिंत हैं:


●शरीर की रचना-:  जातक सुंदर शरीर, मस्तक, त्वचा, पेट एवं नाक  वाला, पुष्ट, गोल एवं लंबी भुजाओं वाला, कोमल शरीर वाला, घनी दाढ़ी,चौड़ी एवं भरी छाती, बलवान, शेर के समान मुख वाला,पृष्ट जाँघों, कमल के आंतरिक भाग की कांति के समान हाथ-पैरों वाला,समान एवं मिली हुई भौंहें वाला होता हैं।


 जातक के शरीर की गंध जल से सिंचित भूमि की गंध, गन्धपत्र,केसर, हाथी की मद अथवा अगर के समान गंध होती हैं।उसके एक-एक रोमकूप से उत्पन्न बाल काले घुँघराले होता। हैं।


●शरीर पर निशान-:जातक के मस्तक पर शंख का निशान,हथेली एवं पैरों में हल,मूसल,गदा,तलवार, शंख,चक्र,हाथी,मगर, कमल,रथ,ध्वज,पुष्प जैसे निशान होते हैं।


●स्वभाव-: जातक सत्त्वंगुण की अधिकता वाला, स्थिर बुद्धि वाला, क्षमाशील,धर्मशील,उपकार को मानने वाला, हाथी के समान चलने वाला, अधिक शास्त्रों का ज्ञाता,, अधिक कलाओं को जानने वाला, धैर्य से युक्त और योगी होता है ।उसके ऐश्वर्य को दूसरे लोग भी उपयोग करते हैं। अपने लोगों के लिए वह क्षमारहित एवं स्वतंत्र बुद्धि वाला होता है।


 भद्र पुरुष अपने पराक्रम एवं शौर्य से अर्जित राज्य को  भोगकर तीर्थ स्थान पर प्राणों को छोड़कर स्वर्ग जाता है।


●कार्य क्षेत्र-:  भद्र पुरुष श्रेष्ठ प्रबंधक,उद्यमी,उद्योगपति, वित्त विषयों का जानकार,चिन्तक,लेखक, कवि, प्रशासक, प्रकाशक इत्यादि होता हैं।


 3.हंस महापुरूषयोग-:में 'हंस' का शाब्दिक अर्थ 'हंस' एक पक्षी है, जो ब्रह्मा का वाहन हैं। जो मोती खाता है, वह दूध एवं पानी को अलग कर देता हैं।


संस्कृत में अन्य अर्थ-:जैसे 'ईश्वर', 'ब्रह्म','आत्मा', 'सूर्य','शिव','विष्णु' आदि हैं।


हंस महापुरूषयोग का अर्थ-:यदि जन्मकुंडली गुरु बली होकर केन्द्रभावों में स्वयं की राशि,उच्चराशि या मूलत्रिकोण राशि में स्थित हो ,तो हंस महापुरूषयोग बनता हैं।


 हंस महापुरूषयोग का निर्माण-:जन्मकुंडली में  ग्रह की निम्नांकित स्थिति से होता हैं:


1.गुरु बली हो अर्थात षड्बल में गुरु बलवान हो।


2. जन्म कुंडली के लग्न से केंद्रभावों(1,4,7,10) में गुरु स्थित हो।


3. जन्म कुंडली के केंद्र भावों में गुरु अपनी राशि में (धनु,मीन), उच्च राशि(कर्क राशि) अथवा मूलत्रिकोण राशि  (धनु राशि) में हो, तो योग का निर्माण होता है।


4. सूर्य अथवा चंद्रमा से मंगल की युक्ति नहीं होनी चाहिए ।यदि युक्ति होती हैं ,तो जातक को इस योग का पूर्ण फल ना मिलकर ,कुछ शुभ फल प्राप्त ही होता है।


5. जन्म कुंडली में सूर्य एवं चंद्रमा दोनों के बलवान होने पर ही इस महापुरुषयोग का पूर्ण फल मिलता है। यदि कमजोर हो, तो पूर्ण फल प्राप्त नहीं मिलता है।

हंस महापुरूषयोग का फल-:निम्नाकिंत हैं:

●शरीर की रचना-:  जातक लाल मुख,गौर रंग,लाल एवं पृष्ट गाल,अच्छी नाक,,गोल सिर,शहद सदृश्य आँखों वाला, लाल रंगों वाले नाखून वाला,अच्छे पैर वाला,हंस सदृश्य मिट्ठी बोली वाला,स्वच्छ इन्द्रियों वाला,शुक्र एवं कफ की अधिकता वाला होता हैं।

●शरीर पर निशान-:जातक के हथेली एवं पैरों में माला,अंकुश कलश,कमल,धनुष,शंख,चक्र,खट्वांग(शय्या का अंग) जैसे निशान होते हैं।

●स्वभाव-: जातक जल में अधिक रुचि रखने वाला, विद्वानों में सम्मानित कई क्षेत्र में रहता हुवा वन के सीमान्त प्रदेशों में मृत्यु को प्राप्त करता हैं।

●कार्य क्षेत्र-: हंस पुरूष श्रेष्ठ,प्रवक्ता, व्याख्याता,उपदेशक,परामर्शक,बड़ी संस्थाओ का संचालक,विद्वान, प्रशासक,शैक्षणिक गतिविधियों में संलग्न इत्यादि क्षेत्रों से प्रसिद्धि प्राप्त करता हैं।


    4. मालव्य महापुरूषयोग-:में 'माल्वय'का मतलब है, कि मालवा से सम्बन्धित अभिजात्य वर्ग के पुरुषों के लक्षणोंके आधार पर हुआ है।

 मालव्य महापुरूषयोग का अर्थ-:यदि जन्मकुंडली में शुक्र,केन्द्रभावों में स्वयं की राशि,उच्चराशि या मूलत्रिकोण राशि में स्थित हो ,तो मालव्य महापुरूषयोग बनता हैं।

 मालव्य महापुरूषयोग का निर्माण-:जन्मकुंडली में  ग्रह की निम्नांकित स्थिति से होता हैं:

1. शुक्र बली हो अर्थात शुक्र षड्बल में  बलवान हो।

2. जन्म कुंडली के लग्न से केंद्रभावों(1,4,7,10) में  शुक्र स्थित हो।

3. जन्म कुंडली के केंद्र भावों में  अपनी राशि में (वृषभ,तुला राशि), उच्च राशि(मीन राशि) अथवा मूलत्रिकोण राशि  (तुला राशि) स्थित हो, तो योग का निर्माण होता है।

4. सूर्य अथवा चंद्रमा से मंगल की युक्ति नहीं होनी चाहिए ।यदि युक्ति होती हैं ,तो जातक को इस योग का पूर्ण फल ना मिलकर ,कुछ शुभ फल प्राप्त ही होता है।

5. जन्म कुंडली में सूर्य एवं चंद्रमा दोनों के बलवान होने पर ही इस महापुरुषयोग का पूर्ण फल मिलता है। यदि कमजोर हो, तो पूर्ण फल प्राप्त नहीं मिलता है।

मालव्य महापुरूषयोग का फल-:निम्नाकिंत हैं:

●शरीर की रचना-:  जातक हाथी की सूँड सदृश्य भुजाओं, लम्बे हाथों युक्त, मांसल एवं पूर्ण अंग एवं सन्धि से युक्त, समान एवं  शरीर का बीच का भाग कमजोर एवं सुन्दर,चमकीली आँखे, अच्छे गालों, एक सरीके सफेद दाँत वाला,पतले ओष्ठ वाला होता हैं।

●शरीर पर निशान-:जातक के हथेली एवं पैरों में शुभ निशान होते हैं।

●स्वभाव-: जातक अपने पराक्रम से मालव प्रदेशों को जीत कर धन प्राप्त करता हैं। पर्वतों पर निवास करने वालो  लोगों की रक्षा करने वाला श्रेष्ट बुद्धि वाला मुख्य होता हैं। धार्मिक स्थलों पर मृत्यु को प्राप्त होता हैं 

●कार्य क्षेत्र-: मालव्य पुरुष सुन्दर और आकर्षक व्यक्तित्व वाला होता हैं। जातक सभी सुख सुविधाओं से युक्त होता है।जातक बैंकिंग, वित्त,प्रबन्धन,प्रशासन, वस्त्र,श्रृंगार,आभूषण होटल,मनोंरजन,भौतिक सुख-सुविधाओं के संसाधन आदि से सम्बन्धित व्यवसाय करने वाला अथवा इन क्षेत्रों से आजीविका प्राप्त करने वाला होता हैं।

 5.शश महापुरूषयोग-:में 'शश'का शाब्दिक मतलब है 'खरगोश' या 'चन्द्रमा में खरगोश की आकृति का कलंक'

इसके अतिरिक्त शश कामशास्त्र  में 'पुरूष की एक संज्ञा' हैं, जिसके लक्षण जैसे मृदुवचन (मिट्ठी वाणी बोलने) वाला,सुशील,कोमल अंग वाला,सत्य बोलने वाला,अच्छे बालों वाला,सकलगुणनिधान आदि हैं।

 शश महापुरूषयोग का अर्थ-:यदि जन्मकुंडली में शनि केन्द्रभावों में स्वयं की राशि,उच्चराशि या मूलत्रिकोण राशि में स्थित हो ,तो शश महापुरूषयोग बनता हैं।

 शश महापुरूषयोग का निर्माण-:जन्मकुंडली में  ग्रह की निम्नांकित स्थिति से होता हैं:

1.शनि बली हो अर्थात शनि षड्बल में  बलवान हो।

2. जन्म कुंडली के लग्न से केंद्रभावों(1,4,7,10) में शनि  स्थित हो।

3. जन्म कुंडली के केंद्र भावों में शनि अपनी राशि में (मकर,कुम्भ राशि ), उच्च राशि(  तुला राशि) अथवा मूलत्रिकोण राशि में (कुम्भ राशि) स्थित हो, तो इस योग का निर्माण होता है।

4. सूर्य अथवा चंद्रमा से शनि की युक्ति नहीं होनी चाहिए ।यदि युक्ति होती हैं ,तो जातक को इस योग का पूर्ण फल ना मिलकर ,कुछ शुभ फल प्राप्त ही होता है।

5. जन्म कुंडली में सूर्य एवं चंद्रमा दोनों के बलवान होने पर ही इस महापुरुषयोग का पूर्ण फल मिलता है। यदि कमजोर हो, तो पूर्ण फल प्राप्त नहीं मिलता हैं।

शश महापुरूषयोग का फल-:निम्नाकिंत हैं:

●शरीर की रचना-:  जातक के कुछ निकले हुए छोटे दाँतो एवं नख वाला, अच्छी नेत्रों वाला,  तेज चलने वाला,  विद्या में रुचि रखने वाला,धातुओं का व्यापार करने वाला,मांसल मुख-गण्ड वाला,स्थिर गति वाला, अधिक स्थूलता से रहित एवं शरीर का मध्य भाग कमजोर होता है और अच्छी आयु में मृत्यु होती हैं।

●शरीर पर निशान-:जातक के हाथ एवं पैरों में ढाल,शय्या,तलवार ,वीणा, माला और त्रिशूल जैसे निशान होते हैं

●स्वभाव-: शश महापुरुष योग वाला जातक शंकाशील स्वभाव वाला, दूसरों में दोष निकालने वाला,सेना में अच्छे पद वाला,कामक्रीड़ा में रूचि वाला, दूसरी स्त्री में नजर दृष्टि रखने वाला, चंचल मन वाला, बहादुर, माता के बारे में सोचने वाला, वन, पर्वत, नदी एवं किलो किलों आदि में अनुरक्त(रुचि रखने वाला) रहने वाला होता हैं।

  ●कार्य क्षेत्र-:  शश महापुरुष योग वाला जातक कारागार का अध्यक्ष, दंडनायक,माननीय संसाधन विकास अधिकारी, खान एवं खनिज उत्पाद से संबंधित कार्य करने वाला,चिकित्सक इत्यादि होता है।

No comments:

Post a Comment