मानव जीवन पर नक्षत्र का प्रभाव(Effect of constellation on human life):-नभमण्डल को बारह राशियों में बांटा गया है। जो चमकते हुए तारों के समूह को सत्ताईस भागों में बांटा है, वे सत्ताईस नक्षत्र है। सभी के नाम को निश्चित किया है।
ऋषियों-मुनियों ने ग्रहों के साथ नक्षत्रों के भी खोज की और मानव जीवन पर नक्षत्रों के प्रभाव का गहरा अध्ययन करके इसे ज्योतिष विज्ञान के रूप में पेश किया है। मानव जीवन पर नभ मण्डल के नक्षत्रों का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है क्योंकि जन्मपत्रिका नभ मण्डल का ही चित्र हैं।
सत्ताईस नक्षत्रों के मालिक नौ ग्रह को माना है। सवा दो नक्षत्र एक राशि में होते हैं। सत्ताईस नक्षत्रों को बारह राशियों में बांटा गया है इस प्रकार एक राशि में नौ अक्षर बताए गए हैं। एक नक्षत्र में चार चरण या चार अक्षर होते हैं सवा दो नक्षत्र बीतने पर राशि बदल जाती हैं। सभी ग्रहों के राशिं बदलने का अलग-अलग होता है। चन्द्रमा सवा दो दिन में सबसे पहले राशि को बदलता है जन्म के समय चन्द्रमा जिस राशि में जिस नक्षत्र पर होता हैं, वही जातक की जन्मराशि होती हैं। वह नक्षत्र ही जन्म नक्षत्र कहलाता है।
नक्षत्र के चार चरण में से जिस चरण पर जन्म होता है, चरण के अक्षर के अनुसार वह जन्माक्षर माना जाता है। उस अक्षर पर ही जन्म का नाम रखा जाता है। जन्म नक्षत्र के मालिक ग्रह की दशा ही जातक के जन्म समय की प्रथम महादशा कहलाती है।
नक्षत्र जन्म कुंडली का महत्वपूर्ण अंग है जन्म के समय नाम से जन्माक्षर से जन्म राशि का पता लग जाता है। जन्म नक्षत्र से जातक के जन्म की पहली महादशा ज्ञात हो जाती है। चंद्रमा के सवा दो दिन में राशि परिवर्तन से पहला प्रभाव जातक के मानसिक पक्ष पर पड़ता है। इस प्रकार से जातक की मन की स्थिति, सोच, विचार, व्यवहार, खुशी, चिंता में प्रतिदिन अंतर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, क्योंकि चंद्रमा जातक के मन एवं मस्तिष्क का संचालन करता है।
ज्योतिष विज्ञान में सताईस नक्षत्रों द्वारा मानव के भाग्यफल के अतिरिक्त उसकी मानसिकता, चारित्रिक गुण-दोषों एवं कार्यशैली की अभिव्यक्ति के लिए
1.नक्षत्र का चरण।
2.नक्षत्र का स्वामी ग्रह ।
3.अधिकृत अंग।
4.राशि।
5.राशि के नक्षत्र का चरण।
6.महादशा का सूक्ष्मतम अध्ययन अनिवार्य होने के कारण प्रत्येक नक्षत्र के अपने गुण दोष होते हैं। उस नक्षत्र में जन्म लेने पर वह गुण दोष जातक में जन्म से ही आ जाते हैं।
युवावस्था तक पूर्ण विकसित होने पर उनका जातक में पूर्ण प्रभाव दिखाई देने लगता है। शारीरिक पक्ष के साथ ही मानसिक पक्ष पर भी जन्म नक्षत्र और उसके चरण का प्रभाव पड़ता है।
सताईस नक्षत्र मानव शरीर के सताईस अंगों के स्वामी माने गए हैं, गोचर में जब पापी और अशुभ ग्रह किसी नक्षत्र पर आते हैं, तो नक्षत्र से संबंधित अंग बीमारी से ग्रस्त और पीड़ित हो जाता है। जब उसी अंग पर शुभ एवं मित्र घर आते हैं, तो वही अंग स्वस्थ एवं पृष्ट हो जाता है।
इस प्रकार नक्षत्र मानव के शारीरिक एवं मानसिक पक्ष पर अपना प्रभाव रखते हैं। ज्योतिष-विज्ञान में नक्षत्र मानव शरीर की इकाई के समान है। जन्म लग्न के नक्षत्र का भी जातक के शरीर एवं मन पक्ष पर प्रभाव पड़ता है। मिथुन लग्न में मृगशिरा नक्षत्र (मंगल स्वामी) में जन्मे जातक पर मंगल के गुणों का प्रभाव अधिक होगा।
गोचर फलादेश में भी ग्रह गोचर के अध्ययन के साथ ग्रह की राशि और नक्षत्र भी देखा जाता है। शत्रु नक्षत्र पर या मित्र नक्षत्र पर ग्रह गोचर फल का क्या प्रभाव है। इससे गोचर फल ज्ञात हो जाता है।
नक्षत्रों के आधार:-पर ही संवतसर, षड्ऋतु, महीना, पक्ष, सप्ताह, दिवस, तिथि आदि की गणना की जाती है।
सताईस नक्षत्रों:-को तीन भागों में बाँटा सात्विक, राजसिक और तामसिक आदि हैं। तीनों वर्गों में जन्में जातकों के शारीरिक एवं मानसिक पक्ष पर नक्षत्र के स्वामी ग्रह का प्रभाव पड़ने से भिन्नता पाई जाती है।
1.सात्विक नक्षत्र:-सतोगुणी नक्षत्रों की संख्या छः पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वाभाद्रपद, अश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती।
सात्विक नक्षत्र का फल:-सात्विक नक्षत्र में जन्में जातक सत्य से जुड़कर अच्छे कर्मों के द्वारा परम सत्ता के महासत्य से जुड़ने का निरन्तर प्रयास करते रहते हैं। कर्म का पालन करने वाले कुशलता या विज्ञानिक प्रणाली प्रणाली करना सांसारिक माया के भ्रम में लिप्त न होना, अंतर के सत्य में परम सत्ता को पहचानना, सात्विक गुणयुक्त व्यक्ति के लक्षण है।
जन्म-मरण के बीच भौतिक वस्तुओं का उपभोग,शरीर धर्म का पालन करने के लिए करते हैं,उन पर आश्रित नहीं होते है।
नक्षत्र | स्वामीग्रह | अधिकृत अंग |
---|---|---|
पुनर्वसु | बृहस्पति | नासिका |
विशाखा | बृहस्पति | ह्रदय |
पूर्वाभाद्रपद | बृहस्पति | बांई जांघ |
अश्लेषा | बुध | कान |
जेष्ठा | बुध | आमाशय |
रेवती | बुध | घुटने |
2.राजसिक नक्षत्र:- राजसिक नक्षत्रों की संख्या नौ कृतिका, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, रोहिणी, हस्त, श्रवण, भरणी, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा।
राजसिक नक्षत्रों में जन्मे व्यक्तियों का फल:-राजसिक प्रवृत्ति के व्यक्ति भौतिक सुख साधनों का उपयोग करते हुए भौतिकवादी शैली से जीवन जीने जीते हैं। संसार और जीव जगत को ही सत्य मानते हैं।
अध्यात्म की दुनिया में विश्वास नहीं होता हैं। कला और सौंदर्य को पसंद करने वाले, चित्रकला, संगीत को पसंद करने और वास्तुकला में रुचि रखने वाले होते है। मूर्ति के निर्माण में रुचि रखने वाले और नृत्य कला के पारखी होते हैं। कल्पना जगत में भ्रमण करते हुए कवि एवं साहित्य करने वाले बन जाते हैं उनकी महत्वाकांक्षाएं कभी समाप्त नहीं होती हैं सांसारिक कर्मों रीति-रिवाजों को ही धर्म मानकर परंपरागत विधि से उनका पालन करते रहते हैं।
अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए उनका मन विकार युक्त भी हो जाता है। चालाक, धोखेबाज और असत्य बोलने वाले, मान सम्मान की इच्छा रखने वाले और जीवन भर वस्तुओं का संग्रह करने में खुशी अनुभव करने वाले होते है। शान-शौकत से सही ढंग से जीवन व्यतीत करना पसंद करते हैं।
नक्षत्र | स्वामीग्रह | अधिकृत अंग |
---|---|---|
कृतिका | सूर्य | सिर |
उत्तराफाल्गुनी | सूर्य | बायां हाथ |
उत्तराषाढ़ा | सूर्य | रीढ़ की अस्थि |
रोहिणी | चन्द्रमा | मस्तक |
हस्त | चन्द्रमा | अंगुलियां |
श्रवण | चन्द्रमा | कमर |
भरणी | शुक्र | पांव के तलवे |
पूर्वाफाल्गुनी | शुक्र | दांया हाथ |
पूर्वाषाढ़ा | शुक्र | पीठ |
3.तामसिक नक्षत्र:- तमोगुणी नक्षत्रों की संख्या बारह अश्वनी,मघा, मूल, मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा, पुष्य, अनुराधा, उत्तराभाद्रपद, आद्रा, स्वाति, शतभिषा आदि हैं। इन नक्षत्रों के स्वामी ग्रह क्रूर एवं पापी ग्रह कहलाते हैं।
तामसिक नक्षत्रों के फल:- इन नक्षत्रों में जन्म लेने वाला व्यक्ति तामसिक प्रवृत्ति का होता है जो छल कपट करने में माहिर, अहंकारी, घमंड करने वाला, धन का घमंड करने वाला, हिंसक प्रवृत्ति का बहुत ही क्रोधी और किसी पर उपकार किया को मानने वाला नहीं होता है। बहुत ही स्वार्थी होता है, सत्ता और धन के लोभी होते हैं।
इनकी जन्म कुंडली के पाप एवं प्रबल होने के कारण इन्हें अच्छे कार्य करने से रोकते हैं। पाप ग्रहों के दुष्प्रभाव से रास्ता भटक कर गलत या दुष्कर्म में फंसे रहते हैं।अस्थिर मन की सोच एवं गलत विचारशीलता इनको हिंसा और अपराध के रास्ते पर ले जाते है।
नक्षत्र | स्वामीग्रह | अधिकृत अंग |
---|---|---|
अश्विनी | केतु | पांवो के ऊपर का भाग |
मघा | केतु | होंठ |
मूल | केतु | कोख |
मृगशिरा | मंगल | भौंह |
चित्रा | मंगल | ग्रीवा |
धनिष्ठा | मंगल | गुदा |
पुष्य | शनि | चेहरा |
अनुराधा | शनि | उदर |
उत्तराभाद्रपद | शनि | पिंडली |
आद्रा | राहु | नेत्र |
स्वाति | राहु | वक्षःस्थल |
शतभिषा | राहु | दांई जांघ |
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