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Wednesday 11 May 2022

ग्रहण दोष क्या होता हैं, निवारण पूजा-विधि और उपाय(What is eclipse defect, prevention puja vidhi and remedy)

What is eclipse defect, prevention puja vidhi and remedy



ग्रहण दोष क्या होता हैं, निवारण पूजा-विधि और उपाय (What is eclipse defect, prevention puja vidhi and remedy):-ग्रहण दोष मनुष्य के जीवन को प्रभावित करने में बहुत योगदान करता हैं, जिससे मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन पर अपनी प्रतिच्छाया के द्वारा अंधेरे कर देते हैं। मनुष्य अपने जीवन में उन्नति के मार्ग से  भटक जाता हैं और अवनति के मार्ग की तरफ चल पड़ते हैं। जिस तरह राहु या केतु जब सूर्य या चन्द्रमा को अपनी छाया के द्वारा ग्रसित करके सम्पूर्ण पृथ्वी पर अंधेरा कर देते हैं, उसी तरह मनुष्य के जीवन में अंधेरा हो जाता हैं।



ग्रहण दोष क्या होता हैं?:-जब जन्म लग्न कुण्डली में किसी भी भाव में सूर्य के साथ राहु या केतु या चन्द्रमा के साथ राहु या केतु का मिलन एक साथ एक स्थान पर होता है, तब उन दोनों के मिलने से जो योग बनता उसे ग्रहण योग या ग्रहण दोष कहते हैं। 


इसके अलावा कुछ विद्वान सप्तम या द्वादश भाव में  नीच राशि में स्थित शुक्र(कन्या राशि में) के साथ राहु की युति होंने को भी ग्रहण योग कहते हैं।


ग्रहण योग का जन्म कुण्डली के द्वादश भावों में दुष्प्रभाव:-तरह-तरह से देखने को प्राप्त होता हैं, जो निम्नानुसार हैं:


1.प्रथम भाव:-यदि प्रथम भाव में ग्रहण योग बनने पर जातक या जातिका गुस्सा करने वाला, बीमारी से पीड़ित, रूखा स्वभाव व स्वार्थ वाला होता हैं।


2.द्वितीय भाव:-यदि द्वितीय भाव में ग्रहण योग बनने पर जातक या जातिका धन के लिए चिन्तित, मेहनत का फल कम मिलना व राजकार्यों में धन को खर्च करने वाला होता हैं।



3.तृतीय भाव:-यदि तृतीय भाव में ग्रहण योग बनने पर जातक या जातिका को भाई-बन्धुओं से कलह होने से शान्ति दे नहीं रह पाते हैं।



4.चतुर्थ भाव:-यदि चतुर्थ भाव में ग्रहण योग बनने पर जातक या जातिका को मानसिक परेशानी व मन के अंदर हलचल मची रहती हैं और अपने नजदीक के लोगों के विचारों से मतभेद व खराब भावना झकड़ लेती हैं।


5.पंचम भाव:-यदि पंचम भाव में ग्रहण योग बनने पर जातक या जातिका का बालपन कठोर एवं बुढ़ापा कष्टों से भृढ़ता है। गरीबी, दोस्तों की कमी व घर मे खराब मोहल होता हैं।



6.षष्ठम भाव:-यदि षष्टम भाव में ग्रहण योग बनने पर जातक या जातिका को कई बीमारी विशेष कर ह्रदय में दुखवा, अपनी बात अड़ने वाला, हर जगह पर दुश्मन बनाने वाला, दूसरों की स्त्री पर नजर रखकर उनके साथ सम्बन्ध बनाने वाला और शंका करने वाला होता हैं।


7.सप्तम भाव:-यदि सप्तम भाव में ग्रहण योग बनने पर जातक या जातिका गुस्सा करने वाला, शरीर से कमजोर, दो पत्नी का योग, औचि मन की प्रवृत्ति वाला व जीवनसाथी हमेशा स्वास्थ्य से संघर्षशील रहता हैं।



8.अष्टम भाव:-यदि अष्टम भाव में ग्रहण योग बनने पर जातक या जातिका को कम उम्र का योग, दुर्घटना का डर, बीमारी व बुरे मित्रों के द्वारा पैसा का नष्ट  होता हैं।



9.नवम भाव:-यदि नवम भाव में ग्रहण योग बनने पर जातक या जातिका को पढ़ाई व आजीविका के लिए हमेशा संघर्ष, बिना मतलब कि यात्राएं, कोई भी सहयोग नहीं करते है। भाग्योदय 48 वर्ष के बाद में होता हैं।



10.दशम भाव:-यदि दशम भाव में ग्रहण योग बनने पर जातक या जातिका को माता-पिता के सुख में कमी, बीना संयम एवं धंधा के लिए कोशिश करता रहता हैं।



11.एकादश भाव:-यदि एकादश भाव में ग्रहण योग बनने पर जातक या जातिका अपनी गलत बात पर अड़ने वाला, आय के साधन कोई निश्चित नहीं, ठगने वाला और धोखा खाने वाले होते हैं।



12.द्वादश भाव:-यदि द्वादश भाव में ग्रहण योग बनने पर जातक या जातिका का सघर्षशील व मुसीबतों  से भरा जीवन, दूसरी जाति में विवाह, बिना मतलब के खर्चों की अधिकता, पिता के सुख में कमी व निरन्तर उत्थान-पतन का सामना करना पड़ता हैं।



ग्रहण दोष के निवारण के उपाय:-निम्नलिखित हैं-


"जयंती मंगला काली भद्रकाली कृपालिनी।

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।" 


ग्रहण योग जनित दोषों का निवारण:- ग्रहण काल में किसी भी देवी-देवता की पूजा नहीं होती हैं। जबकि ग्रहण काल में जयंती के अवतार जीण की आराधना करने से ग्रहण योग का निवारण होता हैं।



ग्रहण दोष निवारण की पूजा विधि:-जिन लोगों की जन्मकुंडली में ग्रहण दोष होता है, वे निम्न प्रकार से जीण की आराधना करनी चाहिए।



◆जीण के नाम से संकल्प लेकर शुक्लपक्ष की अष्टमी के 42 उपवास करना चाहिए।



◆यदि ग्रहण दोष 1, 3, 6, 8, 11 व 12 वें भावों में हो, तो शुक्ल पक्ष की एकम से जीण की प्रतिमा के आगे तेल की अखण्ड जोत जलाकर अष्टमी तक हमेशा पूजा-आराधना करनी चाहिए।



◆यदि ग्रहण दोष अन्य भावों 2, 4, 5, 7, 8 व 10 वें भावों में हो, तो शुक्ल पक्ष की एकम से जीण की प्रतिमा के आगे गाय के शुद्ध घी की अखण्ड जोत जलाकर अष्टमी तक हमेशा पूजा-आराधना करनी चाहिए। इस प्रकार से पूजा-आराधना करने से ग्रहण दोष का निवारण हो जायेगा।


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