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Sunday 13 March 2022

ऋणहर्ता गणपति स्तोत्रं व मंत्र विधि अर्थ सहित और महत्त्व(Rinharta Ganapati Stotra and Mantra Vidhi with Meaning and Importance)

Rinharta Ganapati Stotra and Mantra Vidhi with Meaning and Importance



ऋणहर्ता गणपति स्तोत्रं व मंत्र विधि अर्थ सहित और महत्त्व(Rinharta Ganapati Stotra and Mantra Vidhi with Meaning and Importance):-सृष्टि में मनुष्य की तीन श्रेणी धन से सम्बंधित हैं जैसे-पहली श्रेणी में धनवान एवं सम्पन्न वर्ग, दूसरी श्रेणी में मध्यम वर्ग के मनुष्य जो अपना जीवन इधर-उधर से धन के द्वारा चलाते हैं और तीसरे श्रेणी में गरीब वर्ग के मनुष्य आते हैं, जो कि अपना जीवन को चलाने हेतु दूसरों के आगे हाथ फैलाकर तंगी से जीवन को जीते हैं। मनुष्य को अपने जीवन को चलाने के लिए कोई नहीं कोई भी व्यवसाय करना पड़ता हैं, इसके साथ सामाजिक जीवन में जैसे-सन्तान की परवरिश, पढ़ाई, विवाह और अन्य कई तरह के कार्य  जैसे-बीमारी, वाहन खरीदने के लिए, कभी दुर्घटना से, आकस्मिक मुसीबतों से बचाव के लिए और निवास स्थान को बनाने हेतु आदि बहुत सारे कार्य करने होते हैं। इन सबकी पूर्ति करने के लिए उसको अपनी आजीविका पर निर्भर रहना होता हैं, मनुष्य की आवश्यकता अधिक होती हैं और आमदनी बहुत आवश्यकता की तुलना में बहुत ही कम होती हैं। कभी-कभी तो एक खर्च का काम पूरा नहीं हुआ और दूसरे काम का खर्चा आ जाता हैं, कभी धंधे में नुकसान होना, अपने रिश्तेदारों की सहायता करने हेतु, धन की चोरी होने पर, कभी कोर्ट-कचहरी में किसी की जमानत करवाने के लिए और किसी तरह की व्याधि के होने से अपनी आवक से अधिक खर्च हो जाता हैं, इन सबकी पूर्ति करने के लिए दूसरों के आगे हाथ फैलाने पड़ते हैं और उसे दूसरे मनुष्य से उधार लेना पड़ता हैं। इस तरह से मनुष्य के ऊपर कर्ज हर समय सवार रहता हैं और वह इस कर्ज में डूबता जाता हैं, जिससे उसके जीवन में क्लेश, मानसिक अशांति और दूसरों के द्वारा गलत शब्दों के वार को सहना पड़ता हैं। मनुष्य निराशा के जीवन को जीते हुए इस कर्ज रूपी बीमारी का अंत करने के लिए अपने जीवन की ईहलीला को समाप्त करने तक कि वह सोच लेता हैं और कभी-कभी तो अपनी ईहलीला को समाप्त कर लेता हैं। इन तरह कर्ज रूपी बीमारी से मुक्ति हेतु ऋषि-मुनियों ने अपनी साधना शक्ति से अनेक तरह की साधनाएं को निर्मित किया हैं, उन साधनाओं में इतनी शक्ति होती हैं, की मनुष्य के ऊपर हुए कर्ज या ऋण से कैसे मुक्ति पावे और उन साधनाओं को करके ऋण से मुक्ति मिल जाती हैं। उन साधनाओं में एक साधना शक्ति ऋणहर्ता गणपति स्तोत्रं है, जो कि भगवान गणेशजी के गुणगान को करने पर ऋण से मुक्ति मिल जाती हैं, क्योंकि भगवान गणेशजी का गुणगान करते हैं, वे मनुष्य गणेशजी की अनुकृपा रूपी आनन्द को पाते हैं। 

ऋण हरण श्री गणेश मन्त्र प्रयोग:-ऋण हरण श्री गणेश मन्त्र का नियमित रूप से या किसी मन में धारित इच्छा के अनुसार वांचन करने पर समृद्धि को प्रदान करने वाला प्रयोग होता हैं या जब इस मंत्र को रोजाना वांचन करना चाहते हो तब वांचन कर्ता या साधना करने वाले तपस्वी या योगी को निश्चित किये हुए पट को धारण करते हुए करना चाहिए।


ऋणहर्ता गणपति साधना पूजा सामग्री:-कुमकुम, अबीर, गुलाल, धूपबत्ती, केशर, अक्षत, दूर्वा दीपक, तेल, फूल, नैवेद्य, फल, अगरबत्ती, गणपति ऋण मुक्ति यंत्र और पीले धागे में पिरोई हुई स्फटिक माला आदि उपयोग में ली जाती हैं।


ऋणहर्ता गणपति साधना पूजा विधि:-भगवान गणेशजी के प्रति जो मनुष्य विश्वास व भक्तिभाव रखते हुए साधना को शुरू करना चाहिए। ऋणहर्ता गणपति साधना विधि इस तरह हैं-


◆यदि अपने उत्सव के रूप में किसी विशिष्ट धार्मिक कृत्य करने के समय या दिन इस मंत्र का अभ्यास वश काम में अपने मन की इच्छा पूर्ति के निमित्त करना हो तो मनुष्य को पीले रंग के परिधान को पहनना चाहिए।


◆शुक्लपक्ष में पड़ने वाले किसी भी बुधवार को भी कर सकते हैं।


◆मनुष्य को गणेश चतुर्थी के दिन या साधना विधि के दिन जल्दी उठकर दैनिकचर्या को पूर्ण करना चाहिए। 


◆उसके बाद पीले रंग के कपड़ों को पहनकर भगवान गणेश जी को मन ही मन में याद करना चाहिए। 


◆साधना करने की जगह की सफाई करना चाहिए, साधना स्थान एकांत की जगह पर बिना आवाज वाली होनी चाहिए।


◆कुश या ऊनि बिछावन को बिछा कर पूर्व दिशा की तरफ मुहं करके बैठना चाहिए। 


◆उसके बाद में बाजोट लेकर उस पर सफेद कपड़ा बिछाकर एक थाली रखनी चाहिए। 


◆कुमकुम से उस थाली में 'गणेशजी के पुत्र शुभ-लाभ' नाम को लिखकर उस बाजोट पर गणपति का चित्र या मूर्ति को गेहूं की ढेरी पर रखना चाहिए।


◆फिर उस बाजोट पर कुमकुम एवं केशर से रंगे हुए अक्षत की ढ़ेरी पर "गणेश ऋण मुक्ति यंत्र" को रखना चाहिए।


◆इस ढ़ेरी के नजदीक एक घृत से भरे हुए दीपक को रखना चाहिए।


◆फिर यंत्र की स्नान, शुद्धोदक स्नान, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पंचोपचार कर्म से पूजन करना चाहिए।


◆फिर भगवान गणेशजी को मन ही मन में याद करते हुए उनकी इस साधना को पूर्ण करने का संकल्प करते हैं।


◆माला के रूप में:-मनुष्य को मन्त्र के बार-बार उच्चारण करने के लिए भी पीले रंग की माला लेनी चाहिए।


◆यदि स्फटिक से युक्त माला जो कि कच्चे धागे को पीले रंग से रंगी हुई होनी चाहिए।


◆भगवान गणेशजी का विधिपूर्वक पूजन करना चाहिए।


◆फिर 'दूर्वा अंकुर' को विशेष रूप से अर्पण करना चाहिए।


◆यदि हवन करने हेतु:-मनुष्य को 'लाक्षा'एवं 'दूर्वा' के द्वारा हवन को करना चाहिए।


◆ऋणहर्ता गणपति साधना करने से होने वाले कर्ज से मुक्ति मिल जाती हैं। 


ऋणहर्ता गणपति स्तोत्रं के वांचन की विधि:-मनुष्य को इस स्तोत्रं के वांचन को करते समय निम्नलिखित विधि का प्रयोग करते हुए वांचन करना चाहिए-

◆सर्वप्रथम ऋणहर्ता गणपति स्तोत्रं के वांचन से पूर्व विनियोग, ऋष्यादिन्यास एवं हृदयादिन्यास, ध्यान एवं नमस्कार करते हुए उनका आवाहन करके गणपति का पूजन करना चाहिए।


◆'पूजन करने के बाद 'कवच पाठ' एवं 'स्तोत्रं' का पाठ करना चाहिए।



श्री ऋणहरणकर्ता गणपति स्तोत्र का विनियोगः-सदाशिव ऋषिवर ने श्री ऋणहरणकर्ता गणपति स्तोत्र मन्त्रों के वांचन से पूर्व गणपतिजी निमित संकल्प के लिए विनियोग बताया हैं।


ऊँ अस्य श्री ऋणहरणकर्ता गणपति स्तोत्र मन्त्रस्य, सदाशिवऋषिः 

अनुष्टुप छन्दः, श्री ऋणहरर्ते गणपति देवता ग्लौं बीजम् गः शक्तिः,

गों कीलकंम् मम सकलऋण नाशने जपे विनियोगः।

अर्थात्:-श्री ऋणहरणकर्ता गणपति स्तोत्र के श्लोकों में मंत्रों की रचना सदाशिव ऋषिवर ने की थी, जिसमें अनुष्टुप छंद हैं एवं  हैं, श्री ऋणहरर्ते गणपति देवता के रूप में हैं, ग्लौं बीजम् एवं गः शक्ति और गों कीलकंम् स्वरूप में देवता हैं।

श्री ऋणहरणकर्ता गणपति स्तोत्र के श्लोकों में वर्णित मंत्रों का जप करते हुए उन सभी देवताओं से सभी तरह के कर्ज से मुक्ति के लिए संकल्प करता हूँ।  


ऋष्यादिन्यास का अर्थ एवं महत्त्व:-ऋष्यादिन्यास में अपने इष्टदेव को अपने शरीर के अंगों जैसे- मस्तक, मुख, हृदय, गुह्या स्थान, पैर, नाभि एव सर्वाङ्गे आदि में स्थापित होने का आग्रह करते हैं और उनको स्थापित होने का कहते हैं, जिससे देह में देवी या देवता का वास हो जाए इस तरह की प्रक्रिया को ऋष्यादिन्यास कहते हैं।

ऊँ सदाशिव ऋषये नमः शिरसि,

अनुष्टुप छन्द से नमः मुखे,

श्रीऋणहर्ते गणेश देवतायै नमः हृदि,

ग्लौं बीजाय नमः गुह्यें,

गं शक्तये नमः पादयोंः,

गों कीलकाय नमः नाभौ मम सकल 

ऋणनाशर्थे जपे विनियोगाय नमः अञ्जलौ सर्वागे।




षडंगन्यास या करन्यास का अर्थ एवं महत्त्व:-जब किसी भी मंत्रों के उच्चारण से पहले हाथों के द्वारा जो आकृति का निर्माण करते हुए बीजाक्षरों और शब्दों को इष्टदेव देवी-देवता के निमित उनको स्थापित करते हुए उनको नमस्कार करना षडंगन्यास या करन्यास कहलाता है। माला को हाथ में लेकर जप करने से हाथ में एवं हथेली षित समस्त अंगुलियों में स्थान दिया जाता हैं, जिससे मंत्रों का उच्चारण करते समय उस देवता के मंत्रों का सही उच्चारण हो पावे।

ऊँ गणेश अंगुष्ठाभ्यां नमः,

ऋण छिन्धि तर्जनीभ्यां नमः

वरेण्यम मध्यामाभ्यां नमः।

हुम अनामिकाभ्यां नमः।

नमः कनिष्ठिकाभ्यां नमः।

फट् करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः।



हृदयादि अंगन्यास का अर्थ एवं महत्त्व:-जब पूजा-अर्चना एवं स्तोत्रं के पाठन से पहले मंत्रों के उच्चारण के द्वारा शरीर के विभिन्न अंगों को शुद्ध करने के उद्देश्य से जो स्पर्श किया जाता हैं, उसे हृदयादि अंगन्यास कहते है। श्री ऋणहरणकर्ता गणपति स्तोत्रं के पाठन से पूर्व गणेशजी के नाम मंत्रों का उच्चारण करते हुए देह के अंगों से छुआ जाता हैं, जिससे गणेशजी का उन अंगों में वास हो जावे और देह निर्मल हो जावे।

ऊँ गणेशहृदयाय नमः।

ऊँ ऋण छिन्धि शिरसे स्वाहा।

वरेण्यम् शिखायै वषट्।

हुम कवचाय हुम्।

नमः नेत्रत्रयाय वौषट्।

फट् अस्त्राय फट्।


ध्यान एवं नमस्कार मंत्र:-श्री ऋणहरणकर्ता गणपति स्तोत्र के मन्त्रों को वांचन से पूर्व गणेशजी का ध्यान व नमस्कार को करते समय निम्नलिखित मंत्र का वांचन करना चाहिए, जो इस तरह हैं- 

  

ऊँ सिन्दूरवर्णं द्विभुजं गणेशं, लम्बोदरं पद्यदले निविष्टम्।

ब्रह्मादि दैवेः परिसेव्यमानं, सिद्धैर्यतं प्रणमामि देवं।।



श्री ऋणहरणकर्ता गणपति स्तोत्र का कवच पाठ:-तांत्रिक साधना को करने से पूर्व किसी भी तरह के विघ्न साधना में नहीं आवे एवं स्वयं की रक्षा हो सके उसे कवच पाठ कहते हैं। श्री ऋणहरणकर्ता गणपति स्तोत्र के मन्त्रों को पाठ से पहले मंत्रों का वांचन करते हैं, उसे पूर्व पीठिता कहा जाता है। इसलिए निम्नलिखित कवच पाठ का वांचन करना चाहिए-


ऊँ आमोदश्च शिरः पातु, प्रमोदश्च शिखोपरि, 

सम्मोदो भ्रूयुगे पातु, भ्रूमध्ये च गणाधीपः।


गणक्रीड़ाश्चक्षुर्युगं, नासायां गणनायकः, 

जिह्वायां सुमुखः पातु, ग्रीवायां दुर्म्मुखः।।


विघ्नेशो हृदये पातु, बाहुयुग्मे सदा मम,

विघ्नकर्त्ता च उदरे, विघ्नहर्त्ता च लिंगके।


गजवक्त्रो कटिदेशे, एकदन्तो नितम्बके,

लम्बोदरः सदा पातु, गुह्यदेशे ममारुणः।।


व्याल यज्ञोपवीती मां, पातु पादयुगे सदा,

जापकः सर्वदा पातु, जानुजंघे गणाधिपः।


हरिद्राः सर्वदा पातु, सर्वांगे गणनायकः।।



ऋणहर्ता गणेश स्तोत्रं पाठ:-भगवान गणेशजी के गुणों का बखान करने के लिए स्तुति परक श्लोक में बंधे हुए ग्रन्थ के मंत्रों का वांचन स्तोत्रं पाठ कहलाता है। जो इस तरह हैं-


सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक्, पूजितः फलसिद्धये।

सदैव पार्वतीपुत्रः, ऋणनाशं करोतु मे।।१।।



त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्श्गर्चितः।

हिरण्य कश्यपादीनां, वधार्थ विष्णुनार्चितः।।२।।



महिषस्य वधे देव्या, गणनाथः प्रपूजितः।

तारकस्य वधात् पूर्वं, कुमारेण प्रपूजितः।।३।।



भास्करेण गणेशस्तु, पूजितश्छवि सिद्धये।

शशिना कान्ति सिद्धयर्थे, पूजितो गणनायकः।

पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजितः।।४।।



फलश्रुति का अर्थ:-जिसमें पूर्ण स्तोत्र के वांचन से एवं सुनने से मिलने वाले लाभ या फायदे के बारे गुणगान होता हैं, उसे फलश्रुति कहते हैं।

इदं त्वऋण स्तोत्रं, तीव्र दारिद्रय नाशनम्,

एक बारं पठेन्नित्यं, वर्षमेकं समाहितः।

दारिद्रय दारूणं त्यक्त्वा, कुबेर समतां ब्रजेत्।

फडन्तोअस्यं महामंन्त्रः सार्धपच्चदशाक्षरः।।

अर्थात्:-हे गणेशजी! आपका श्री ऋणहरणकर्ता गणपति स्तोत्र के द्वारा कर्ज व बहुत ही जल्दी से गरीबी को दूर करके धनवान बनाने वाला हैं। जो मनुष्य वर्षभर नियमित रूप से एक बार ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र वांचन करते हैं, तो वे गणेशजी उन मनुष्य के द्वारा की गई पूजा-वंदना को स्वीकार करते हुए समस्त विघ्नों व गरीबी का हरण करके बिना विघ्नों से उस मनुष्य को कुबेर की तरह धनवान बना देते है।

यह महामन्त्र " ऊँ गणेश ऋणं छिन्धि वरेण्यं हुं नमः फट्" साढ़े पन्द्रहरा अक्षरों से बना है और कम से कम से इक्कीस बार वांचन करना चाहिए। इक्कीस हजार 'वांचन' से सभी मन के इच्छित कार्यों को में सफलता का नियमों पूर्वक तांत्रिक प्रयोग होता हैं। साल भर एक समय पर वांचन करने पर गरीबी को दूर करके मनुष्य को धन-सम्पत्ति प्राप्त करते हैं। कृष्णयामल में ऋणहर्ता गणपति साधना की रीति व महत्व को भी बताया गया है, किस तरह से विधिपूर्वक साधना करने से सुख-समृद्धि को प्राप्त करके मनुष्य अपने जीवन-मरण के बंधन से मुक्ति पा सके और अपना उद्धार को पावे।


ऋणहर्ता गणपति स्तोत्रम् का महत्त्व एवं लाभ (Significance and Benefits of Loan Harta Ganpati Stotram):- मनुष्य "ऋणहर्ता गणपति स्तोत्रं" का वांचन हमेशा करने पर निम्नलिखित लाभ मिलते हैं, जो इस तरह हैं- 


◆मनुष्य के जीवन में कर्ज बढ़ने से जीवनकाल में मुसीबत आने लगती हैं, इन मुसिबतों से मुक्ति के लिए मनुष्य को निरन्तर जीवनकाल में स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए।


◆कर्ज बढ़ने सेमनुष्य के मन में बुरी सोच उत्पन्न होने लगती है और वह ख्यालों में डूबा रहकर मन से दुःखी रहता है उस दुःख से छुटकारा पाने में स्तोत्रं मददकारी होता हैं।


◆कर्ज के लगातार बढ़ने से मनुष्य का शरीर बीमारियों से ग्रसित हो जाता हैं, उन बीमारियों से छुटकारा दिलाने में यह स्तोत्रं सहायक होता हैं।


◆मनुष्य को जन्म व मारणः के बंधन से छुटकारा दिलाकर ईश्वर के चरणों में जगह दिलाने में गणपति ऋणहर्ता स्तोत्रं सहायक होता हैं।

◆मनुष्य के जीवनकाल में दूसरों से लिये कर्ज से मुक्ति प्रदान करने वाला यह स्तोत्रं होता हैं।


◆मनुष्य को दरिद्रता से मुक्ति गणपति ऋणहर्ता स्तोत्रं के वांचन से दूर हो जाती हैं।


◆गणपति ऋणहर्ता स्तोत्रं  के वांचन से मनुष्य के सभी कामों में सफलता मिलने लग जाती हैं।


◆गणपति ऋणहर्ता स्तोत्रं के वांचन से किसी भी प्रकार के विघ्न नहीं आते हैं।


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