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Saturday 19 February 2022

शरद पूर्णिमा क्यों मनाते हैं, जानें पूजा विधि, कथा, उद्यापन विधि और महत्व(Why celebrate Sharad Purnima, know the puja vidhi, katha, Udyapan vidhi and its importance)

                       


शरद पूर्णिमा क्यों मनाते हैं, जानें पूजा विधि, कथा, उद्यापन विधि और महत्व(Why celebrate Sharad Purnima, know the puja vidhi, katha, Udyapan vidhi and its importance):-शरद पूर्णिमा आश्विन शुक्लपक्ष की पूर्णिमा शरद् पूर्णिमा कहलाती हैं। चन्द्रमा रात्रिकाल में सोलह कलाओं से युक्त होकर शरद पूर्णिमा तिथि के समय में अपनी शीतल मन को हरणे वाली किरणों से जगत को रोशन करता हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने इसी तिथि को रासलीला की थी। इसलिए बृज में इस पर्व को विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है, इसे "रासोत्सव" या "कौमुदी महोत्सव" भी कहते हैं। 

इस व्रत में प्रदोष और निशीथ दोनों में होने वाली पूर्णिमा भी जाती हैं। यदि पहले दिन निशीथ-व्यापिनी और दूसरे दिन प्रदोष व्यापिनी न हो तो पहले दिन व्रत करना चाहिए। शरद पूर्णिमा की रात्रि में चन्द्रमा की चांदनी में अमृत निवास रहता हैं। उसकी किरणों से अमृतत्त्व व आरोग्य की प्राप्ति सुलभ होती हैं।



शरद पूर्णिमा व्रत पूजा विधि-विधान:-इस दिन निम्नलिखित विधि व्रत की पूजा विधि करनी चाहिए।

◆प्रातःकाल अपने आराध्य देव को सुंदर वस्त्राभूषण से सुशोभित करना चाहिए।

◆फिर उनका यथा विधि षोडशोपचार पूजन करना चाहिए।

◆अर्धरात्रि के समय गौ दूध से बनी खीर का भगवान को भोग लगाना चाहिए।

◆खीर से भरे पात्र को रात्र में छंत पर खुली चांदनी में रखना चाहिए। इसमें रात्रि के समय चन्द्र की किरणों द्वारा अमृत गिरता हैं। 

◆पूर्ण चन्द्रमा के मध्य आकाश में स्थित होने पर उनका पूजन कर अर्ध्य प्रदान करना चाहिए। 

◆इस दिन कांस्य पात्र में घी भरकर सुवर्ण सहित ब्राह्मण को दान देने से मनुष्य ओजस्वी होता हैं।

◆अपराह्न में हाथियों का नीराजन करने का भी विधान हैं।

◆आश्विन मास की पूर्णिमा "शरद पूर्णिमा" शरद पूर्णिमा के दिन शाम को खीर बनाकर चन्द्रमाजी को भोग लगाना चाहिए और खीर, चपडों, शक्कर आदि थाली में रखकर छत पर रात को रखना चाहिए और रात को बारह बजे के बाद उसे प्रसाद के रूप में काम लेना चाहिए।

शरद पूर्णिमा की रात्रि को चन्द्रमाजी की रोशनी में सूई भी पिरोनी चाहिए, जिससे आंखों की रोशनी तेज होती हैं।


शरद पूर्णिमा की कहानी:-एक साहूकार के दो बेटियां थी। दोनों कार्तिक पूर्णिमा का व्रत करती थी। बड़ी बहिन तो व्रत पूरा करती थी और छोटी बहिन अधूरा व्रत करती थी। तब उन्हें बच्चा होते ही मर जाते, यानी बच्चा जीवित नहीं रहते। एक दिन छोटी बहिन ने पण्डितजी को बुलाकर पूछा कि मेरे बच्चे जीवित नहीं रहते हैं, उनका जन्म होते ही मर जाते हैं। जब पण्डितजी ने कहा-तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती हो, इस कारण तुम्हारे बच्चे जीवित नहीं रहते हैं।

आप व्रत पूरा करोगे तो आपके बच्चे जीवित रहेगें। छोटी बहिन ने अब पूरे विधि-विधान से व्रत पूरे किए, लेकिन फिर भी थोड़े दिन बाद लड़का होकर मर गया। उस मरे हुए बच्चे को उठाकर पलंग पर सुला दिया और चादर से ढ़क दिया। 

फिर बड़ी बहिन को बुलावा भेजा। बड़ी बहिन पलंग पर सोते हुए बच्चे को छूते ही लड़का रोने लगा।

जब छोटी बहिन ने कहा कि यह आपके पुण्य प्रताप से मेरा लड़का जीवित हुआ हैं। हम दोनों का पूर्णिमा का व्रत करती थी। आप तो पूरा व्रत करती थी, लेकिन मैं अधूरा व्रत करती थी। इडके दोष से मेरे बच्चे जीवित नहीं रहते हैं। आपके छूते ही बच्चा जैसे गहरी नींद से उठ गया और वैसे ही रोने लगा। हे पूर्णिमा माता! जैसे छोटी बहिन की गोद भर, वैसे ही सभी की गोद भरना और जो कोई भी पूर्णिमा का व्रत करे तो वह पूरा व्रत करें।

शरद पूर्णिमा उद्यापन विधि:-पूर्णिमा का उजमणा पूर्णिमा का व्रत झेलने के बाद ही करें। उजमणा में एक बड़े कटोरे में एक चूनड़ी, चूडों, शक्कर, मेवा, सुहाग का सामान भरकर सासुजी को पैर छूकर देवे। अगर श्रद्धा हो तो ब्राह्मणी को भी भोजन करावें।

सामग्री तीस आदमी एक जोड़ा-जोड़ी के कपड़े व सुहाग छाबड़ा, इकतीस लोटा, इकतीस सुपारी, इकतीस जनेऊ जोड़ा, इकतीस छोटे उपवस्त्र व इच्छानुसार दक्षिणा सहित भेंट देना चाहिए।



धार्मिक पंचांगों के अनुसार महत्व:-आश्विन मास के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा उत्सव के रूप में मनाया जाता हैं। धर्म शास्त्रों में शरद पूर्णिमा को मोह रात्रि एवं शरद पूर्णिमा के व्रत को कोजागर व्रत या कौमुदी व्रत कहते है। माता लक्ष्मीजी शरद पूर्णिमा की रात्रिकाल में घूमने के लिए निकलती हैं, लक्ष्मीजी रात्रिकाल में कौन जाग रहा हैं व कौन नहीं जाग रहा हैं, उनका निरीक्षण करने के लिए निकलती हैं और जो रात्रिकाल में जागते रहने वाले मनुष्य के निवास स्थान में स्थिर रूप से वास करते हुए एवं जागते रहने वाले मनुष्य पर अपनी अनुकृपा करती हैं। इसलिए मनुष्य शरद पूर्णिमा की रात्रिकाल में अधिकांश मनुष्य जागते रहते हैं और माता लक्ष्मीजी की अनुकृपा पाने हेतु इसलिए शरदपूर्णिमा में भगवान विष्णुजी, लक्ष्मीजी और तुलसी माता की पूजा-अर्चना की जाती हैं।


ज्योतिष शास्त्र के अनुसार महत्व:-शरद पूर्णिमा तिथि के दिन मंगलवार का संयोग अनेक वर्षों में होता हैं, जब यह संयोग होता हैं, तब उस रात्रिकाल में चन्द्रमा पूरे वर्ष में अपनी पूर्ण सोलह कलाओं से युक्त होता हैं और अपनी शीतल व मन को हरणे वाली किरणों से जगत में उजाला करते हैं, इसलिए इस तिथि को महापूर्णिमा कहा जाता है। शरद पूर्णिमा के दिन खीर बनाकर रात भर चाँदनी किरणों में उत्तर भारत के मनुष्य के द्वारा रखने की परंपरा हैं, जिससे चन्द्रदेव के द्वारा अपनी अमृततुल्य किरणों से उस खीर में अमृत उत्पन्न हो सके।


शरद पूर्णिमा तिथि के व्रत को करने का महत्व-शरद पूर्णिमा तिथि के व्रत को करने से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं-


1.नेत्रों की दृष्टि बढ़ाने हेतु:-जो मनुष्य शरद पूर्णिमा की रात्रि को चन्द्रमाजी की रोशनी में सुई को धागे में पिरोने का बार-बार प्रयास करना चाहिए, जिससे मनुष्य की आंखों में रोशनी तेज होकर बढ़ जाती हैं।


2.श्वास से तकलीफ से मुक्ति पाने हेतु:-शरद पूर्णिमा की रात्रि श्वास रोग से ग्रसित मनुष्य के लिए जीवन दायक होती हैं।


3.गर्भवती औरत के गर्भ की रक्षा हेतु:-शरद पूर्णिमा की रात्रि में चन्द्रमा की पूर्ण सोलह कलाओं से युक्त किरणों का प्रभाव जब गर्भवती औरत की कुक्षि पर पड़ने से गर्भ में स्थित गर्भ का पूर्ण विकास होकर मजबूत अंग-प्रत्यंगों से युक्त हो जाता है। इस तरह से वर्ष भर में शरद पूर्णिमा की एक रात्रि के प्रभाव से गर्भ के लिए औषधियों की तरह किरणें असर करती हैं।


4.माता लक्ष्मीजी को खुश करके उनकी अनुकृपा पाने हेतु:-शरद पूर्णिमा तिथि के व्रत को करके माता लक्ष्मीजी को खुश किया जा सकता हैं और उनकी अनुकृपा प्राप्त की जा सकती हैं, जिससे मनुष्य को रुपयों-पैसों का सुख मिल जाता हैं और जीवन में खुशहाली भर जाती हैं।


5.मानसिक विकारों से राहत:-मनुष्य पर माता लक्ष्मीजी की अनुकृपा होने से मनुष्य को समस्त तरह से सुख-ऐश्वर्य प्राप्त हो जाता है और मन में उत्पन्न नकारात्मक विचार समाप्त हो जाते हैं।


6.दाम्पत्य जीवन में सुख-शांति:-मनुष्य को दाम्पत्य जीवन में उत्पन्न होने लड़ाई-झगड़े एवं आपसी मतभेद आदि से राहत मिल जाती हैं।


7.समस्त तरह की व्याधियों से राहत:-मनुष्य को शारिरिक व्याधियों से राहत मिलता  हैं।







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