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Wednesday 30 March 2022

बुद्धि स्तोत्र और फायदे (Buddhi Stotra and benefits)

Buddhi Stotra and benefits




बुद्धि स्तोत्र और फायदे(Buddhi Stotra and benefits):-मनुष्य को अपने जीवन में सामाजिक, बौद्धिक और भौतिक जगत में किसी भी विषय या वस्तु की जानकारी को प्राप्त करने के लिए ज्ञान व बुद्धि की जरूरत होती हैं। इस तरह मनुष्य के जीवन में ज्ञान की आवश्यकता को देखकर ऋषिवर याज्ञवल्क्य ने अपनी साधना के द्वारा बुद्धि स्तोत्र की रचना की थी। जिससे मनुष्य की बुद्धि में तीक्ष्णता आ जावे और कम बुद्धि वाले होशियार बन जावें। इसलिए मनुष्य को नियमित रूप से अपनी स्मरण शक्ति को बढ़ाने व किसी विषय में उचित जानकारी को पाने हेतु माता सरस्वती की वंदना करनी चाहिए। बुद्धि स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए। इस स्तोत्र में ऋषिवर ने अपनी मधुर वाणी से बताया हैं, की सत्ताईस श्लोकों में माता सरस्वती के गुणों व स्वरूप का वर्णन किया हैं।


  

।।अथ श्री याज्ञवल्क्य विरचितं बुद्धि स्तोत्रं।।


कृपां कुरु जगन्मातर्मामेवं हततेजसम्।

गुरु शापात स्मृति भ्रष्टं विज्ञाहीनं च दुःखितं।।१।।



ज्ञानं देहि स्मृतिं विद्यां शक्तिं शिष्य प्रबोधिनीम।

ग्रन्थ कर्तृव्य शक्तिं च सुशिष्यं सुप्रतिष्ठितम।।२।।



प्रतिभां सतसभायां च विचार क्षमतां शुभाम।

लुप्तं सर्वं दैवयोगात नविभूतं पुनः कुरुः।।३।।



यथांकुरं भस्मनि च करोति देवता पुनः।

ब्रह्मस्वरूपा परमा ज्योतिरुपा सनातनी।।४।।



सर्व विज्ञाधिदेवी या तस्यै वाण्यै नमो नमः।

विसर्ग बिंदु मात्रासु यदधिष्ठान मेव च।।५।।



तदधिष्ठात्री या देवी तस्यै नित्य नमो नमः।

व्याख्या स्वरूपा सा देवी व्याख्याधिष्ठातृ रूपिणी।।६।।



यया विना प्रसंख्यावान संख्यां कर्तुं न शक्यते।

कालसंख्यारूपा या तस्यै दैव्यै नमो नमः।।७।।



भ्रम सिद्धान्तरूपा या तस्यै दैव्यै नमो नमः।

स्मृतिशक्ति ज्ञानशक्ति बुद्धिशक्ति स्वरूपिणी।।८।।



प्रतिभा कल्पनाशक्तिर्या च तस्यै नमो नमः।

सनत्कुमारो ब्रम्हाणं ज्ञानं पप्रच्छ यंत्र वै।।९।।



बभूव मूक वंसोपि सिद्धान्तं कर्तुमक्षमः।

तदा जगाम भगवानात्मा श्रीकृष्ण ईश्वरः।।१०।।



उवाच सचतां स्तौही वाणी मिष्टाम प्रजापते।

स च तुष्टा वतां ब्रम्हा चाज्ञया परमात्मनः।।११।।



चकार तत्प्रसादेन तदा सिद्धांतमुत्तमम।

यदापि अनन्तं पप्रच्छ ज्ञानमेकं वसुंधरा।।१२।।



बभूव मूक वत्सोपि सिद्धान्तं कर्तुमक्षमः।

तदा तान्च तुष्टाव संत्रस्त कश्यपाज्ञया।।१३।।



ततश्चकार सिद्धान्तं निर्मलं भ्रमभंजनम।

व्यासः पुराणसूत्रं च पप्रच्छ वाल्मीकिं यदा।।१४।।



मौनी भूतश्च सस्मार तामेव जगदम्बिकाम।

तदा चकार सिद्धान्तं तद्वरेण मुनिश्वरः।।१५।।



सम्प्राप्य निर्मलं ज्ञानं भ्रमान्ध ध्वंसदीपकं।

पुराण सूत्रं श्रुत्वा च व्यासः कृष्ण क्लोद्भवः।।१६।।



तां शिवां वेद दध्यौ च शतवर्षं च पुष्करे।

तदा त्वतो वरं प्राप्य सतकवीन्द्रो बभूव ह।।१७।।



तदा वेदविभागं च पुराणं च चकार सः।

यदा महेंद्रः पप्रच्छ तत्वज्ञानं सदाशिवम।।१८।।



क्षणं तामेव सनचिन्त्य तस्मै ज्ञानं ददौ विभुः।

पप्रच्छ शब्दशास्त्रं च महेन्द्रश्च बृहस्पतिम।।१९।।



दिव्यं वर्षसहस्त्रं च सा त्वां दध्यौ च पुष्करे।

तदा त्वत्तो वरं प्राप्य दिव्यं वर्ष सहस्त्रकम।।२०।।



उवाच शब्द शास्त्रं च तदर्थं च सुरेश्वरम।

अध्यापिताश्च ये शिष्या यैरधीतं मुनीश्वरैः।।२१।।



ते च तां परी संचित्य प्रवर्तते सुरेश्वरीम।

त्वं संस्तुता पूजिता च मुनीद्रैः मुनिमानवैः।।२२।।



दैत्यं इन्द्रेश्च सुरेश्चापि ब्रम्हविष्णु शिवादिभिः।

जड़ीभूतः सहस्त्रास्यः पंचवक्त्रः चतुर्मुखः।।२३।।



यां स्तौतुं किमहं स्तौमि तामेकास्येन मानवः।

इत्युक्त्वा याज्ञवल्क्यच भक्ति नम्रात्मकंधर।।२४।।




प्राणनाम निराहारो रुरोद च मुहुर्मुहुः।

ज्योतिरुपा महामाया तेन दृष्टापि उवाचतम।।२५।।



सुकवीन्द्रो भवेत्युक्त्वा वैकुण्ठं जगाम हे।

याज्ञवल्क्य कृतं वाणी स्तोत्रं येतस्तु यः पठेत।।२६।।

अर्थात्:-याज्ञवल्क्य ऋषिवर की मधुर वाणी से बनाये गए सरस्वती स्तोत्रं का वांचन करने वाले मनुष्य की वाणी में मिठास, काव्यकार और वैकुंठ लोक की प्राप्ति होती हैं।


सुकवीन्द्रो महावाग्मी बृहस्पतिसमो भवेत्।

महामुर्खश्च दुर्बुद्धिः वर्षमेकं यदा पठेत।

स पण्डितश्च मेधावी सुकवीन्द्रो भवेद ध्रुवम।।२७।।

अर्थात्:-बुद्धि स्तोत्रं के पाठन करने से मनुष्य में काव्य रचना के गुणों का विकास होने लगता हैं, जिससे वे अपनी मधुर वाणी से काव्य की रचना करते हुए बहुत अच्छे कवि बन जाते हैं। वे बृहस्पति देव के समान सभी तरह के ज्ञान को रखने वाले बन जाते हैं, जिन मनुष्य का मस्तिष्क कम विकसित होता हैं और उनमें सोचने-समझने की कमी होती हैं, उन मनुष्य को रोजाना एक वर्ष तक इस स्तोत्र का पाठन करना चाहिए, जिससे वे बहुत ही ज्ञानी, विद्द्वान, चतुर और कविता की रचना करने वाले बन जावें। 


।।इति श्री याज्ञवल्क्य विरचितं बुद्धि स्तोत्रं संपूर्णम्।।


बुद्धि स्तोत्र के लाभ(Benefits of Shree Buddhi Stotra):-मनुष्य को याज्ञवल्क्य ऋषिवर के द्वारा बनाये गए सरस्वती या बुद्धि या प्रज्ञावर्धन स्तोत्रं के वांचन करने पर निम्नलिखित लाभ मिलते हैं-


◆बुद्धि स्तोत्रं के पाठन से मनुष्य की स्मरण शक्ति बढ़ती हैं।



◆मनुष्य को उच्च शिक्षा को पाने के लिए इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए, जिससे उनको उच्च शिक्षा मिल जाती हैं।



◆मनुष्य को सोचने व समझने की शक्ति में बढ़ोतरी के लिए इस स्तोत्र का वांचन करना चाहिए।



◆जीवन के हर जगह पर सफलता के लिए इस स्तोत्रम् का वांचन करें।



◆मनुष्य को कौशल दक्षता को सबको बताने में यह स्तोत्रम् सहायक होता हैं।



◆किसी भी तरह की प्रतियोगिता परीक्षा में अच्छी तरह से सफलता पाने के लिए मनुष्य को हमेशा इस स्तोत्रम् का वांचन करना चाहिए।



◆मनुष्य को अपनी बुद्धि बढ़ाने के लिए इस स्तोत्र का वांचन करना चाहिए, जिससे उनकी बुद्धि में बढ़ोतरी होती हैं।







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