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Tuesday 15 August 2023

August 15, 2023

नपुंसक योग की जानकारी कुंडली से कैसे जानें(How to know the information of Impotent Yoga from the kundali)

नपुंसक योग की जानकारी कुंडली से कैसे जानें(How to know the information of Impotent Yoga from the kundali):-प्रत्येक स्त्री-पुरुष जब विवाह के बंधन में बंध जाते हैं, तब उनको अपने जीवनसाथी को शारीरिक सुख से खुश करने की चाहत रहती हैं और वे एक-दूसरे को पूर्ण रूप से शारीरिक सुख देना चाहते हैं। कोई भी आदमी या औरत जब शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं, तब उनमें एक-दूसरे के प्रति हीन भावना घर कर जाती हैं और उनका दाम्पत्य जीवन नरक के समान हो जाता हैं और आये दिन गृह-क्लेश और तलाक तक कि नौबत तक आ जाती हैं। लेकिन आदमी या औरत की जन्मकुण्डली का उचित विश्लेषण करवाकर शादी से पूर्व करवाकर जाना जा सकता हैं, किस में कमी हैं। इसलिए ज्योतिष शास्त्र में वर्णित योगों के द्वारा नपुंसकता के कारणों जाना जा सकता हैं। जिससे शादी होने पर पति-पत्नी को शारीरिक सुख की पूर्ण प्राप्ति हो सके। आईए जानते हैं, जन्मकुंडली से बनने वाले नपुंसक योग के कारणों के बारे में?  


How to know the information of Impotent Yoga from the kundali




नपुंसकता का अर्थ :-आदमी और लड़कों में वीर्य धातु का नष्ट होना होता है, जिससे वह औरत या लड़की के साथ सहवास क्रिया नहीं कर पाता है व औरत या लड़की को सहवास क्रिया से संतुष्ट नहीं कर सकता है, उस बीमारी को नपुंसकता कहते है।



मनोवैज्ञानिक नपुंसकता:-आदमी या लड़को में चिंता या आशंका के कारण  यौनक्रिया को सफलतापूर्वक पुुरा न कर पाते है, तो उस तरह की नपुंसकता को मनोवैज्ञानिक नपुंसकता कहते है। जो आदमी या लड़के इरेक्शन प्राप्त करने को लेकर चिंतित होते है वह इस मामले में कभी भी सुकून से नहीं रह सकता और शायद इरेक्शन हासिल भी नहीं कर पाते है।



मनोवैज्ञानिक नपुंसकता के कारण:-आदमी या लड़कों के द्वारा अधिक दारू पीने, शरीर में वसा के अधिक इकट्ठा होने मोटापा का होना, बहुत गुस्सा करने से, मन के अंदर तनाव का होना, चिंता, अपराध बोध से ग्रस्त होने और अन्य कई तरह के भावनात्मक कारणों की वजह से मनोवैज्ञानिक नपुंसकता  होती है।



शारिरिक नपुंसकता:-आदमी या लड़को में जब उनकी माता के गर्भ में उनका निर्माण होता है, तब उनकी माता गर्भ में किसी तरह का गर्भ निर्माण के समय किसी तरह का शरीर का पूर्ण तरह से विकास नहीं हो पाता है जिससे उन आदमी या लड़कों के शरीर के अंग में कमी रह जाती है और वह युवावस्था में नपुंसकता का शिकार हो जाते है।




शारीरिक नपुंसकता के कारण:-आदमी या लड़कों के शरीर में किसी तरह की चोट लगने, बीमारी, हार्मोन के ठीक नहीं होने से, मधुमेह, उच्च रक्तचाप या नशीली दवाओं की वजह से शारिरिक नपुंसकता हो सकती है।



ज्योतिषीय योग के द्वारा नपुंसकता:-आदमी या लड़कों  में नपुंसकता के दोष को जन्मकुंडली को देखकर जान सकते है, की नपुंसकता जन्मजात है या किसी दूसरे शारिरिक या मानसिक वजह से है। नपुंसकता को जानकर विवाह करवाते है तो उन मानवों का वैवाहिक जीवन खुशहाली से बीतता है। कुछ ज्योतिषीय योग निम्न तरह के है, इन योगों से जान सकते कि अमुक आदमी या लड़के में नपुंसकता गुण है।



◆यदि बुध+शनि का सयोंग सातवें व आठवें घर में होनें पर आदमी या लड़के नपुंसक होता हैं।



◆यदि मंगल या शनि या इन दोनों की दृष्टि आठवें घर में स्थित शुक्र पर हो, तो आदमी या लड़के को धातु या वीर्य सम्बन्धी बीमारी या हस्तमैथून खराब रुचि होती हैं।



◆यदि शनि की दृष्टि आठवें घर में स्थित शुक्र+मंगल के सयोंग पर हो, तो आदमी या लड़के को धातु या वीर्य सम्बन्धी बीमारी या हस्तमैथून और अण्डकोषों से सम्बन्धी बीमारी हो सकती है।



◆यदि शनि की दृष्टि सातवें घर में स्थित शुक्र+मंगल के सयोंग पर हो, तो आदमी या लड़के को मैथुन से मैथुन सम्बन्धी बीमारी हो सकती है।



◆यदि जन्मकुंडली के आठवे घर में शुक्र के साथ शनि या राहु स्थित हो, तो आदमी या लड़कों को वीर्य सम्बन्धी बीमारी और हस्तमैथून की खराब रुचि हो सकती हैं।



◆आठवें घर में बुध हो और पहले घर में शनि के साथ राहु का सयोंग हो, तो आदमी या लड़कों में पुरुषत्व से कमजोर या नपुंसक होता हैं।



◆यदि शनि या राहु या केतु में से कोई एक भी ग्रह शुक्र व चन्द्रमा के साथ में हो, तो आदमी या लड़को में पुरुषत्व से कमजोर या नपुंसक होते है।



◆यदि मंगल या राहु या केतु में से कोई एक भी ग्रह चन्द्रमा व शनि के साथ में हो, तो आदमी या लड़को में पुरुषत्व से कमजोर या नपुंसक होते है।



◆आठवें घर में शनि के साथ में राहु या केतु वृश्चिक या कुम्भ लग्न की कुंडली में हो, तो आदमी या लड़कों में पुरुषत्व से कमजोर या नपुंसक होते है।



◆यदि शुक्र अस्त हो या नीच राशिगत हो और पहले घर में शनि+राहु का सयोंग होनें पर भी आदमी या लड़कों में पुरुषत्व से कमजोर या नपुंसक होते है।



◆यदि बुध एवं शनि का सयोंग किसी भी घर में हो और शुक्र अस्त होकर साथ में हो, तो आदमी या लड़कों को पुरुषत्व की कमी या नपुंसकता बीमारी होती हैं।



◆आठवें घर में पापग्रह बैठे हो और उन पर पापग्रहों की दृष्टी होने पर भी आदमी या लड़कों में पुरुषत्व से कमजोर या नपुंसकता या गुप्त बीमारी हो सकती हैं।



◆आठवें घर और आठवें घर के स्वामी पर पापग्रह और शनि के द्वारा देखा जाये सिंह या कन्या लग्न की कुंडली में हो, तो आदमी या लड़कों में पुरुषत्व से कमजोर या नपुंसक होते है।


◆यदि गुरु छठवें घर में स्थित हो वृषभ या सिंह लग्न की कुण्डली में तो आदमी या लड़को को कोई गुप्तांग बीमारी हो सकती हैं।


Sunday 18 June 2023

June 18, 2023

श्री राम रक्षा स्तोत्र का क्या महत्व हैं?(What is the importance of Shri Ram Raksha Stotra?)

श्री राम रक्षा स्तोत्र का क्या महत्व हैं?(What is the importance of Shri Ram Raksha Stotra?):-सभी परेशानियों का रामबाण इलाज श्री राम रक्षा स्तोत्र में है समस्याओं का अचूक इलाज। जहाँ भगवान श्री राम का नाम आ जाए ऐसा होना भी संभव हैं। लंका चढ़ाई के लिए बनाए गए सेतु पुल में पत्थर तैरने लगे थे, उन पत्थरों में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का ही नाम था। संस्कृत साहित्य में किसी भी देवी-देवता की स्तुति के लिए लिखे गये काव्य को स्तोत्र कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि राम रक्षा स्तोत्रम का जाप विधि अनुसार करने से मनुष्य की सारी परेशानियाँ, विपदाएं दूर हो जाती हैं। भगवान राम के नाम में ही इतनी शक्ति है कि व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होने लगते हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आदर्श सदैव हमारे लिए प्रेरणास्रोत का कार्य करते हैं। इसलिए जो व्यक्ति राम रक्षा स्तोत्र को जपता है तो उसके अंदर अच्छे गुणों का विकास होता है। वह व्यक्ति हमेशा ही सच्चे मार्ग पर चलता है तथा अपने सिद्धांतों पर कायम रहते हुए बुराइयों को पराजित करता है। उसका व्यक्तित्व समाज के लिए प्रेरणा का कार्य करता है। अड़तीस श्लोकों का यह स्तोत्र बेहद ही शक्तिशाली हैं। कहा जाता है कि जो व्यक्ति श्रीराम के दिखाए गए मार्ग पर चलता है। उसे दैवीय शक्ति की आवश्यकता होती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि राम का मार्ग बेहद कठिन है। आज के युग में इस पर चलना आसान नहीं है। इसलिए राम रक्षा स्तोत्र से व्यक्ति को इस मार्ग पर चलने की शक्ति मिलती हैं।

 


 

What is the importance of Shri Ram Raksha Stotra?




 


श्री राम रक्षा स्तोत्र की रचना:-राम रक्षा स्तोत्र की रचना बुध कौशिक (वाल्मीकि) ऋषि ने की थी। परंतु पौराणिक कथा के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि महादेव शंकर स्वयं बुध कौशिक के स्वप्न में आए थे और उन्होंने ही ऋषि को श्री राम रक्षा स्तोत्र सुनाया था। जब सवेरा हुआ तो बुध कौशिक ने इस स्तोत्र को लिखा लिया। यह स्तोत्र देववाणी संस्कृत में हैं। आवश्यक नहीं है कि यह स्तोत्र केवल संकट के समय पढ़ा जाए। शुभ फल और भगवान श्री राम का आशीर्वाद पाने के लिए इसे सामान्य परिस्थिति में भी जपा जा सकता है। इसके उच्चारण से निकली शब्द ध्वनि वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा संचालित करती हैं।




श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का विनियोग:-किसी भी स्तोत्रं का वांचन करने से पूर्व उस स्तोत्रं के देवी-देवताओं को मन में धारित करते हुए उन पर पूर्णरूप से आस्था एवं श्रद्धाभाव रखते हुए स्तोत्रं के पाठ का संकल्प करना चाहिए।


श्रीगणेशायनमः विनियोग:-


अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः।


श्रीसीतारामचंद्रोदेवता अनुष्टुप् छन्दः


सीता शक्तिः श्रीमद्हनुमान् कीलकम्


श्रीसीतारामचंद्र प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।।


अर्थात्:-प्रथम पूज्य गणेशजी को हाथ जोड़कर नमन करते हुए, श्रीरामरक्षा स्तोत्रम् श्लोकों में मंत्रों की रचना बुधकौशिक ऋषिवर ने की थी, सीता एवं रामचंद्र देवता के रूप में हैं, जिसमें अनुष्टुप छंद हैं एवं सीता शक्ति के रूप में हैं, जिसमें हनुमानजी कीलक हैं, जो कोई श्रीरामरक्षा स्तोत्रम् के श्लोकों में वर्णित मंत्रों के द्वारा इनके देवता को याद करते हुए श्रीरामचन्द्रजी की प्रसन्नता के लिए वांचन का संकल्प करता हैं।



अथ ध्यानम्:-श्रीरामरक्षा स्तोत्रम् का पाठ करने से पहले भगवान् श्रीरामजी का ध्यान करना चाहिए, जिससे मन में किसी तरह की गलत भावना जागृत नहीं हो सकें और मन एक जगह पर स्थिर रहे। 


ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं।


पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्।।


वामांकारुढ़सीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं।


नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलं रामचंद्रम्।।


              ।।इति ध्यानम्।।


चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्।


एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्।।1।।


ध्यात्वा निलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्।


जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम्।।2।।


सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्त चरान्तकम्।


स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्।।3।।


रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्।


शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः।।4।।


कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुती।


घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रत्रिवत्सलः।।5।।


जिह्वा विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवंदितः।


स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः।।6।।


करौ सीतपतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित्।


मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः।।7।।


सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः।


ऊरू रघुत्तमः पातु रक्षः कुलविनाशकृत्।।8।।


जानुनी सेतुकृत्पातु जंघे दशमुखान्तकः।


पादौ बिभीषणश्रीदः पातु रामोSखिलं वपुः।।9।।


एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्।


स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्।।10।।


पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्मचारिणः।


न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः।।11।।


रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्।


नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति।12।।


जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्।


यः कण्ठे धारयेत्तस्य  करस्थाः सर्वसिद्धयः।।13।।


वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्।


अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमंगलम्।14।।


आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः।


तथा लिखितवान् प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः।।15।।


आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम्।


अभिरामस्त्रिलोकनां रामः श्रीमान् स नः प्रभु।।16।।


तारणौ रूपसंपन्नो सुकुमारौ महाबलौ।


पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ।17।।


फलमूलाशीनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ।


पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ।।18।।


शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्।


रक्षः कुलनिहन्तारौ त्रायेतान नो रघूत्तमो।19।।


आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षयाशुगनिषंग सङ्गिनौ।


रक्षणाम मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम्।।20।।


संनद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा।


गच्छन्मनोरथोSस्माकं रामः पातु सलक्ष्मणः।।21।।


रामो दाशरथिः शूरो लक्ष्मणानुचरो बली।


काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघुत्तमः।।22।।


वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरूषोत्तमः।


जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेय पराक्रमः।।23।।


इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्विताः।


अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्रोति न संशयः।।24।।


रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पितवाससम्।


स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्ण ते संसारिण़ नरः।।25।।


रामं लक्ष्मणं पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम्।


काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्


राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम्।


वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्।।26।।


रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे।


रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः।।27।।


श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम।


श्रीराम राम भरताग्रज राम राम।


श्रीराम राम रणकर्कश राम राम।


श्रीराम राम शरणं भव राम राम।।28।।


श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि।


श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि।


श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये।।29।।


माता रामो मत्पिता रामचंद्रः।


स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः।


सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर्।


नान्यं जाने नैव जाने न जाने।।30।।


दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा।


पुरतो मारूतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम्।।31।।


लोकासभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।


कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये।।32।।


मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।


वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये।।33।।


कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्।


आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्।।34।।


आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्।


लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्।।35।।


भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम्।


तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्।।36।।


रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रमेशं भजे।


रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मे नमः।


रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम्।


रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर।।37।।


राम रामेति रामेति रमे रमे मनोरमे।


सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने।।38।।



।।इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम्।।



अर्थात्:-इस प्रकार बुध कौशिक द्वारा रचित श्रीराम रक्षा स्तोत्रं संपूर्णम् होता हैं।



                ।।श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु।।




श्रीराम रक्षा स्तोत्र की कैसे सिद्ध करें?(How to prove Shri Ram Raksha Stotra?):-यदि कोई भी इंसान श्रीराम रक्षा स्तोत्र के श्लोकों का वांचन करते हुए उससे अभीष्ट कार्य सिद्धि की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित विधि को अपनाना चाहिए।


सफलता पाने के लिए करें राम रक्षा स्तोत्र से जुड़ा यह टोटका:-


◆सरसों के दाने एक कटोरी में डाल लें।


◆कटोरी के नीचे कोई ऊनी वस्त्र या आसन होना चाहिए।


◆राम रक्षा मन्त्र को 11 बार पढ़े।


◆इस दौरान आपको अपनी उँगलियों से सरसों के दानों को कटोरी में घुमाते रहना है।


◆इस समय भगवान श्री राम की प्रतिमा या फोटो आपके आगे होनी चाहिए जिसे देखते हुए आपको मन्त्र पढ़ना है।


◆ग्यारह बार के जाप से सरसों सिद्ध हो जायेगी।


◆आप उस सरसो के दानों को शुद्ध और सुरक्षित पूजा स्थान पर रख लें।


◆जब आवश्यकता पड़े तो कुछ दाने लेकर आजमायें।


◆यदि किसी कोर्ट-कचहरी में कानूनी वाद-विवाद या मुकदमा हो तो उस दिन सरसों के दाने साथ लेकर जाएँ और वहां डाल दें जहाँ विरोधी बैठता है या उसके सम्मुख फेंक दें। ऐसा करने से उस केस का फैसला आपके हक में आएगा। कोर्ट के बाहर भी फैसला हो सकता है।


◆वहीं यदि आप खेल या प्रतियोगिता या साक्षात्कार में प्रतिभाग करने जा रहे हैं तो शुद्ध सरसों को साथ ले जाएँ और अपनी जेब में रखें। ऐसा करने से आप जिस किसी भी उद्देश्य से घर से बाहर निकले हैं आपका वह उद्देश्य पूर्ण होगा।


◆यात्रा में साथ ले जाएँ आपका कार्य सफल होगा।


◆राम रक्षा स्तोत्र से पानी सिद्ध करके रोगी को पिलाया जा सकता है। रोगी को इसमें लाभ मिलेगा।



श्री राम रक्षा स्तोत्र (Ram Raksha Stotra) को विधि-विधान:-के अनुसार वांचन करना चाहिए। हमारे धार्मिक शास्त्रों में प्रत्येक कर्मकांड को संपन्न करने के लिए विधि-नियम बताए गए हैं। कई बार ऐसा देखा गया है कि हम नित्य पूजा-पाठ करते हैं, अपने इष्ट देवी-देवताओं का स्मरण करते हैं किंतु उसका फल हमें प्राप्त नहीं होता है। ऐसा इसलिए होता है कि हम नियमों की अनदेखी कर पूजा पाठ या फिर ईश्वर की स्तुति करने लगते हैं। राम रक्षा स्तोत्र को भी विधि अनुसार जपना चाहिए। तभी साधक को उसका वास्तविक फल प्राप्त होता है।



श्री राम रक्षा स्तोत्र की जप विधि:-राम रक्षा स्तोत्र के माध्यम से जातकों को विविध क्षेत्रों में सफलता मिलती है। हालाँकि कार्य के अनुरूप ही इसकी विधि में भी परिवर्तन देखने को मिलता है।


■श्री राम रक्षा स्तोत्र का ग्यारह बार जरूर वांचन करना चाहिए, जो मनुष्य ग्यारह बार इस स्तोत्र का वांचन कर लेते हैं, तो इस स्तोत्र का असर पूरे दिन रहता हैं। 


◆जो मनुष्य श्री राम रक्षा स्तोत्र का वांचन लगातार पैंतालिस दिनों तक नियमित करते हैं, तो इस स्तोत्र का असर दोगुना हो जाता हैं।


◆श्री राम रक्षा स्तोत्र का वांचन नवरात्रि के नौ दिनों में जरूर करना चाहिए। 



◆श्री राम रक्षा स्तोत्र का वांचन करने से पहले देह को पवित्र करके और मन में बुरे विकारों को नहीं आने देना चाहिए और पूरे विश्वास और आस्था के साथ भगवान श्रीराम को अपने मन मंदिर मरण बैठाकर वांचन करना चाहिए। 



रामरक्षा स्तोत्र का पाठ कब करना चाहिए?(When should one recite Ram Raksha Stotra?):-मनुष्य को गुरुवार और मंगलवार के दिन श्री राम रक्षा स्तोत्र का वांचन करने से भगवान श्रीराम और हनुमानजी का आशीर्वाद मिल जाता हैं।


श्री राम रक्षा स्तोत्र का लाभ:-श्री राम रक्षा स्तोत्र सभी समस्याओं का रामबाण इलाज है। इस स्तोत्र को जपने से कई तरह के लाभ प्राप्त होते हैं। जैसे-


1.मनुष्य की आयु में बढ़ोतरी:-मनुष्य को अकाल मृत्यु से, चोट, दुर्घटना, बीमारी से रक्षा करते हुए आयु में बढ़ोतरी करता हैं।



2.संततिवान:-जिस दम्पत्ति को शादी करने के बहुत समय तक संतान नहीं होने पर श्रीराम रक्षा स्तोत्र का वांचन करने पर संतान की प्राप्ति होती हैं।

 


3.सभी क्षेत्र में तरक्की हेतु:-जो मनुष्य इस स्तोत्र का रोजाना वांचन करते हैं, उनको जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में तरक्की मिलती हैं। 


4.सभी तरह के सुख एवं रुपये-पैसे की कामना पूर्ति हेतु:-जो मनुष्य अपने जीवन में सभी प्रकार से सुख और रुपये-पैसों की चाहत रखते हैं, उनको स्तोत्र का वांचन करना चाहिए। 



5.शारीरिक कष्टों से राहत:-मनुष्य को अपने जीवन में मिलने वाले शारीरिक कष्टों से राहत हेतु स्तोत्र का वांचन करना चाहिए। 


6.दिलासा हेतु:-मनुष्य को अपने जीवन में प्राप्त होने वाले दुःख और कार्यों में आ रहे विघ्नों में धीरज प्रदान करने में स्तोत्र का अहम भूमिका होती हैं। 


7.अनावश्यक अनिष्ट की शंका से मुक्ति हेतु:-श्रीराम स्तोत्र का वांचन करना चाहिए।


8.बाहरी और ऊपरी बाधाओं से मुक्ति:-जो मनुष्य नियमित रूप से श्रीराम रक्षा स्तोत्र का वांचन करते हैं, उनको यह स्तोत्र एक तरह से सुरक्षित आवरण प्रदान करता हैं। 



9.मंगल ग्रह के बुरे प्रभाव से बचने हेतु:-मनुष्य को मंगलवार के दिन वांचन करना चाहिए, जिससे मंगल ग्रह की अनुकृपा मिल सकें। 



10.बजरंगबली का आशीर्वाद पाने हेतु:-जो मनुष्य श्रीराम रक्षा स्तोत्र का वांचन करते हैं उन पर भगवान श्रीराम के साथ बजरंगबली का आशीर्वाद मिल जाता हैं। 



11.जीवन की सभी विपत्तियों से मुक्ति हेतु:-श्रीराम रक्षा स्तोत्र का वांचन करना चाहिए।










Sunday 21 May 2023

May 21, 2023

श्री सिद्धिविनायक स्तोत्रम् और लाभ

श्री सिद्धिविनायक स्तोत्रम् और लाभ (Sri Siddhivinayak Stotram and benefits):-श्री सिद्धिविनायक स्तोत्रम् में भगवन् गणपति जी के बारे में बताया गया है। सभी देवी-देवताओं में सर्वप्रथम पूजनीय श्री गणपति जी सभी तरह के विघ्नों को हरने वाले है। गणपति जी के इस स्तोत्रम् का जो मनुष्य नियमित रूप से जाप करता है या बांचन करता हैं उस पर श्रीगणेश जी की अनुकृपा बनी रहती है। इस स्तोत्रम् का पाठ करने से मनुष्य को अपने जीवनकाल में आ रही बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है। भगवान गणपति जी बुद्धि के व ज्ञान के देवता है, इसलिए गणपतिजी से बुद्धि व ज्ञान की प्राप्ति के उनसे प्रार्थना करनी चाहिए। भगवन् लम्बोदर जी के इस स्तोत्रम् का जाप करना चाहिए।





Sri Siddhivinayak Stotram and benefits






।।अथ श्री सिद्धिविनायक स्तोत्रम् ।।


जयोSस्तु ते गणपते देहि मे विपुलां मतिम्।


स्तवनम् ते सदा कर्तुं स्फूर्ति यच्छममानिशम्।।1।।


प्रभुं मङ्गलमूर्तिं त्वां चन्द्रेन्द्रावपि ध्यायतः।


यजतस्त्वां विष्णुशिवौ ध्यायतश्चाव्ययं सदा।।2।।


विनायकं च प्राहुस्त्वां गजास्यं शुभदायकम्।


त्वन्नाम्ना विलयं यान्ति दोषाः कलिमलान्तक।।3।।


त्वत्पदाब्जाङ्कितश्चाहं नमामि चरणौ तव।


देवेशस्त्वं चैकदन्तो मद्विज्ञप्तिं शृणु प्रभो।।4।।


कुरु त्वं मयि वात्सल्यं रक्ष मां सकलानिव।


विघ्नेभ्यो रक्ष मां नित्यं कुरु मे चाखिलाः क्रियाः।।5।।


गौरिसुतस्त्वं गणेशः शॄणु विज्ञापनं मम।


त्वत्पादयोरनन्यार्थी याचे सर्वार्थ रक्षणम्।।6।।


त्वमेव माता च पिता देवस्त्वं च ममाव्ययः।


अनाथनाथस्त्वं देहि विभो मे वाञ्छितं फलम्।।7।।


लम्बोदरस्वम् गजास्यो विभुः सिद्धिविनायकः।


हेरम्बः शिवपुत्रस्त्वं विघ्नेशोऽनाथबान्धवः।।8।।


नागाननो भक्तपालो वरदस्त्वं दयां कुरु।


सिन्दूरवर्णः परशुहस्तस्त्वं विघ्ननाशकः।।9।।


विश्वास्यं मङ्गलाधीशं विघ्नेशं परशूधरम्।


दुरितारिं दीनबन्धूं सर्वेशं त्वां जना जगुः।।10।।


नमामि विघ्नहर्तारं वन्दे श्रीप्रमथाधिपम्।


नमामि एकदन्तं च दीनबन्धू नमाम्यहम्।।11।।


नमनं शम्भुतनयं नमनं करुणालयम्।


नमस्तेऽस्तु गणेशाय स्वामिने च नमोऽस्तु ते।।12।।


नमोऽस्तु देवराजाय वन्दे गौरीसुतं पुनः।


नमामि चरणौ भक्त्या भालचन्द्रगणेशयोः।।13।।


नैवास्त्याशा च मच्चित्ते त्वद्भक्तेस्तवनस्यच।


भवेत्येव तु मच्चित्ते ह्याशा च तव दर्शने।।14।।


अज्ञानश्चैव मूढोऽहं ध्यायामि चरणौ तव।


दर्शनं देहि मे शीघ्रं जगदीश कृपां कुरु।।15।।


बालकश्चाहमल्पज्ञः सर्वेषामसि चेश्वरः।


पालकः सर्वभक्तानां भवसि त्वं गजानन।।16।।


दरिद्रोऽहं भाग्यहीनः मच्चित्तं तेऽस्तु पादयोः।


शरण्यं मामनन्यं ते कृपालो देहि दर्शनम्।।17।।


इदं गणपतेस्तोत्रं यः पठेत्सुसमाहितः।


गणेशकृपया ज्ञानसिध्धिं स लभते धनम्।।18।।


पठेद्यः सिद्धिदं स्तोत्रं देवं सम्पूज्य भक्तिमान्।


कदापि बाध्यते भूतप्रेतादीनां न पीडया।।19।।


पठित्वा स्तौति यः स्तोत्रमिदं सिद्धिविनायकम्।


षण्मासैः सिद्धिमाप्नोति न भवेदनृतं वचः


गणेशचरणौ नत्वा ब्रूते भक्तो दिवाकरः।।20।।



।।इति श्री सिद्धिविनायक स्तोत्रम् अर्थ सहित।।


    ।।जय बोलो श्री गणपति जी की जय।।



श्री सिद्धिविनायक स्तोत्रम् का लाभ:-निम्नलिखित हैं।



◆जीवन में कामयाबी हेतु:-जो व्यक्ति नियमित रूप से स्तोत्रं का वांचन करते हैं, उनको अपने जीवन में सभी तरह की कामयाबी मिल जाती हैं।


◆सभी मन की मुराद हेतु:-मनुष्य के मन में सोची हुई मुराद पूरी हो जाती हैं।



◆रुपये-पैसों हेतु:-मनुष्यों को अपने जीवन काल में किसी के आगे रुपये-पैसों के लिए दूसरों के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता हैं।



◆बुद्धि की प्राप्ति हेतु:-जो मनुष्य बुद्धि से कम अक्लमंद होते हैं, उनको स्तोत्रं के वांचन करने से अक्लमंद हो जाते हैं।


◆बुरी ताकतों से मुक्ति हेतु:-बाहरी जगत् की बुरी ताकतें जैसे-भूत-प्रेत व डाकिनी-शाकिनी आदि के प्रभाव से मुक्ति मिल जाती हैं।



◆भाग्य का साथ पाने हेतु:-जब मनुष्य को अपने जीवन में भाग्य का साथ नहीं मिलता हैं, तो सिद्धिविनायक स्तोत्रं का वांचन शुरू करने पर भाग्य का साथ मिलने लग जाता हैं।



◆सन्तान पाने हेतु:-जिन दम्पतियों को शादी करने के बाद भी संतान की चाहत पूर्ण नहीं होती हैं, उनको सिद्धिविनायक स्तोत्र का वांचन शुरू करना चाहिए, जिससे उनको संतान की प्राप्ति हो सके।


Sunday 9 April 2023

April 09, 2023

जन्मराशि और नामराशि का महत्त्व क्या है?(What is the importance of birth sign and name sign?)

जन्मराशि और नामराशि का महत्त्व क्या है?(What is the importance of birth sign and name sign?):-जब भी किसी बालक का जन्म होता हैं, तब उसके जन्म के समय पर उसका नामकरण संस्कार किया जाता हैं, उस बालक को जो नाम दिया जाता हैं, वह नाम उसके जन्मसमय के आधार पर होता हैं, लेकिन परिवार के सदस्य उस बालक को प्यार से अलग नाम से पुकारते हैं। इस तरह उसको दो नामों से जाना जाता हैं एवं इन दोनों नामों से उसका जीवनकाल चलता रहता हैं। लेकिन जन्मराशि और नामराशि का उपयोग भिन्न-भिन्न जगहों पर ज्योतिष के कार्यों में किया जाता हैं। सभी विषय में जन्मराशि की प्रमुखता नहीं रहती है तो सभी जगह नामराशि की भी प्रमुखता नहीं रहती हैं।



What is the importance of birth sign and name sign?




आर्ष प्रमाणों (शास्त्र प्रमाणों) के आधार पर:-वैवाहिक ग्रह मैत्री, अष्टकूट मिलान एवं गुणांक मिलान जन्म नाम राशि के अनुसार करना उत्तम रहता है। 




इसलिए शास्त्रों के आधार पर:-


"विवाहे सर्वमांगल्येयात्रादौग्रहगोचरे।


जन्मराशे:प्रधानत्वं नाम राशिं न् चिनयेत्।।"



अर्थात्:-विवाहकार्य, सभी मांगलिक कार्यों में (उपनयनादि), यात्रा के संदर्भ में मुहूर्त-यात्रा विशेष मुहूर्त, दिन-मान ग्रह गोचर गणना दिनदशा गोचर पद्धति से वर्तमान में ग्रहों का फलित जानने के लिए जन्म राशि से विचार करना चाहिए, न् की नाम राशि से।


"देशेग्रामेगृहेयुद्धेसेवायांव्यवहारके।


नामराशे: प्रधानत्वंजन्मराशिं न् चिनयेत्।।"


अर्थात्:-देश, ग्रामवास, नगर, घर, युद्ध, सेना, न्यायालय, कोर्ट, रजिस्ट्रीकरण आदि में नाम राशि की ही प्रमुखता रहती हैं। बारे में बताया गया है। 



यथा सूत्र पुनरपि:-बारे में बताया गया है।


काकिण्यां वर्गशुद्धौ च वादे द्युते स्वरोदये।


मंत्रे पूनर्भूवरणे नामं राशे:प्रधानता।।"


अर्थात्:-नाम राशि से विचार करना चाहिए।



षोड्श संस्कारों के:-बारे में बताया गया है।


"कुर्यात्षोडश कर्मांणि,जन्म राशे र्बलान्विते।


सर्वाष्यन्यानि कर्मांणि, नामराशे र्बलान्विते।।"


"आपदा-रोग-कष्टेषु विवाहे गृह. पूजने।


जन्मराशे:प्रधानत्वं नाम राशिं न् चिनयेत्।।"


अर्थात्:-मुसीबत के समय, बीमारी के समय, मानसिक दु:ख या परेशानी में एवं विवाह से सम्बन्धित मेलापन, वैवाहिक लग्न निर्धारण में और ग्रह शान्ति के उपाय के समय जन्मराशि से विचार करना चाहिए।



स्त्री-पुरूष राशि मान्यता हेतु विचार विशेष वचन:-इस हेतु शास्त्र वचन मुहूर्त चिन्तामणि अनुसार यह है कि




"स्त्रीणां विधोर्बलमुशन्ति विवाह गर्भ-


सन्स्कारयोरितर कर्मसु भर्तुरेव।"




अर्थात्:-विवाह गर्भाधान पुंसवन-आगरणी-सीमन्त-पुत्र कामना संस्कार में स्त्री की जन्म राशि से चंद्रमा बल गणना का निर्णय करना चाहिए। इसके अलावा अन्य सभी कार्यों में मूल रूपेण पति की जन्म राशि से ही विचार करना चाहिए।


स्पष्ट शास्त्र वचनमेतद।


मुहूर्त शास्त्रीय नियामक से एक सूत्र वचन यह भी है कि यदि जन्म नक्षत्र, राशि आदि मालूम नहीं हो तो नाम राशि से विवाह आदि अन्य कार्यों का और लग्न बल से देख लेना चाहिए।




अतः आवश्यक रूप से जन्म नक्षत्र जन्म राशि एवं जन्म कुंडली से वर-वधु मेलापन करना चाहिए तथा विवाह लग्न निर्धारण में त्रिबल शुद्धि का विचार करने के लिए भी वर-वधु दोनों ही की जन्म राशि को आधार बनाया जाना चाहिए। यदि जन्म नाम ज्ञात ना हो तो क्या करना चाहिए ऐसी स्थिति में शास्त्रों में बताया गया है-


"यथा विवाहघटनं चैव लग्नजं ग्रहजं बलम्।


नामभादविचिन्तयेत् सर्व जन्म न ज्ञायते यदा।।"


अर्थात्:-वैवाहिक कार्यक्रम की योजना जन्मकालिक ग्रह स्थिति के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। जब जन्म राशि नक्षत्रादि ज्ञात नहीं हो तो उपरोक्त विचार नामराशि से मुहूर्त लग्न बलादि का ज्ञान करना चाहिए।




1.जन्म राशि से मेलापन एवं वैवाहिक त्रिबल शुद्धि का विचार केवल कन्या के प्रथम विवाह के संदर्भ में ही करना चाहिए। यदि कन्या का दूसरा विवाह या पुनर्विवाह या नाता, नातरा (पूनर्भूवरण) हो तो जन्म राशि से विचार करने की आवश्यकता नहीं होती है। केवल दोनों के नामों के आधार पर नक्षत्र निर्धारण करके मैत्री देखना चाहिए।




2.जुआ या द्यूत खेलने तथा बुखारादि की स्थिति में नाम राशि से विचार करना चाहिए।




3.जहां कुण्डली मिलान और वैवाहिक लग्न निर्धारण के लिए वर एवं कन्या की जन्म राशि से विचार करना चाहिए।




4.जन्मराशि का जन्मराशि से व नामराशि से नामराशि का मेलापन करना चाहिए।




सूर्य सिद्धांत में नामकरण की विधाओं:-का निम्न प्रकार से किया गया है




1.कृष्ण पक्ष में दिन के समय जन्म होने पर सूर्य जिस नक्षत्र एवं चरण में हो उसके वर्ण के अनुसार  नामकरण करना चाहिए।




2.यदि शुक्ल पक्ष में और रात्रि के समय जन्म होने पर चंद्रमा की राशि नक्षत्र एवं नक्षत्र चरण के अक्षर के अनुसार नामकरण करना चाहिए।




3.जब एक का कृष्ण पक्ष रात्रि में जन्म हुआ दूसरे का शुक्ल पक्ष में दिन के समय जन्म हो तो जन्म कुंडली में सबसे बलवान ग्रह की राशि, नक्षत्र एक नक्षत्र चरण पर उसकी तत्कालीन स्थिति के आधार पर वर्ण के अनुसार नामकरण करना चाहिए।




4.चंद्रमा पृथ्वी के अधिक निकट एवं तेज गति से चलने वाला ग्रह होने से मनुष्य पर चंद्रमा का विशेष प्रभाव पड़ने से परिवर्तन भी जल्दी होता है, इसलिए यह परंपरा बन गई है कि चंद्रमा के नक्षत्र के आधार पर नामकरण किया जाता है।




5.इसके अतिरिक्त विंशोत्तरी महादशा इत्यादि दशाओं का निर्णय भी चंद्रमा के नक्षत्र से ही किया जाता है। अतः स्पष्ट होता है कि अन्य ग्रहों की तुलना में चंद्रमा का प्रभाव मानव पर अधिक पड़ता है। 




वेद में कहा गया है कि:-


"चंद्रमा मनसो अजायत" 


अर्थात्:-परम पुरुष परमात्मा के मन से चंद्रमा उत्पन्न हुआ है अतः चंद्रमा का सम्बन्ध मन से ही हैं। अतः मन के कारण चन्द्रमा के आधार पर नामकरण करना अधिक तार्किकदृष्टि से भी औचित्यपूर्ण है।


मन्तव्यता गोचर गणना विषये:-


"उच्चराशिगतो भानुरूच्च राशिगतो गुरु:।


रिष्फा१२अष्ट८तुर्यगो४अपीष्टो निचारिस्थ शुभोप्यसत्।।"


अर्थात्:-उच्च राशि मेष का सूर्य तथा कर्क राशि का गुरु 4-8-12वी शुभ माने गए हैं तथा सूर्य 4-8-12 का होना भी शुभ राशि रहते 13 अंश बाद शुभ ही मान्य है यथा


"अनिष्ठ स्थानगेषु त्रयोदशदिनं 


त्यक्त्वा शेषस्थं शुभमादिशेत्।।"




अर्थात्:-इसी प्रकार चंद्रमा शुभ व मित्र ग्रह के नवांश तथा बृहस्पति से देखा जावे तो अशुभ होने पर शुभ मान्य है। सूत्र


"शुभांशेगुरुद्द्ष्टोअशुभोपि सन्।"




एवमेव 4-8-12 गणना का गुरु भी शुभ होता है यदि गुरु अपनी उच्च राशि-कर्क,स्वगृही-धनु-मीन एवं मित्र राशि तथा किसी भी राशि में अपने नवमांश में रहते 4-8-12 वां बृहस्पति शुभ मान्य। विशेष यह की गुरु अपनी नीच-मकर राशि व शत्रु ग्रह की राशि में हो तो शुभ भी अशुभ मान्य होगा। यथा प्रमाण


"स्वोच्चे स्वभे स्वमैत्रे वा स्वांशे वर्गोत्तमे गुरू:।


रिष्फा १२अष्ट ८ तुर्यगो ४ अपीष्टो


निचारिस्थ: शुभोप्यसन।।"




अष्टकवर्गरेखाष्टक शुद्धि विधान:-गोचर गणना से अशुभ 4-8-12 गणना के सूर्य-चंद्रमा-बृहस्पति आते हों तो रेखाष्टक गणना बल से अशुद्ध गोचर में भी शुभ कार्य संपन्न कर सकते हैं।


यथा शास्त्र वचन:-


"अष्टकवर्गविशुद्धेषु गुरूशीतांशुभानुषु।


व्रतोद्वाहौ च कर्त्तव्यौ गोचरे न कदाचन।।"


ग्रन्थान्तरे अपिराजमार्त्तण्डेतु-


"अष्टवर्गेण ये शुद्धास्ते शुद्धा: सर्वकर्मसु।


सुक्ष्माअष्ठ वर्ग संशुद्धि:स्थूला शुद्धिस्तु गोचरे।।" 




अर्थात्:-लग्न समय पर सूर्य, चंद्रमा, गुरु का अपना-अपना रेखाष्टक बल प्राप्त करें यदि 1 से 3 रेखा ग्रह की आवे तो ग्रह का बल प्राप्त नहीं,नेष्ट समझें।




2.यदि 4 या अधिक 8 तक रेखा बल प्राप्त होने पर 4-8-12 गणना के सूर्य चंद्रमा गुरु गोचर में रहते भी मांगलिक कार्य का विधान शास्त्र सम्मत कहा गया है 




द्वादश 12 चन्द्रमा की शास्त्रीय मान्यता:-


"अभिषेके निषेके च प्राशने व्रत बन्धने तीर्थ


यात्रा विवाहे च चन्द्रो द्वादशग:१२शुभ:।।"



परन्तु:-"सर्वेषु शुभ कर्मेषु चन्द्रो द्वादशग:शुभ:।


नारीणां द्वादशश्च्ंद्र:मृत्यु हानिकरस्तदा।।"



अर्थात्:-स्त्रीयों के लिए बारहवाँ चन्द्रमा वर्जित और पुरुषों के लिए बारहवाँ चन्द्रमा शुभ माना गया है।

Monday 23 January 2023

January 23, 2023

शनि का द्वादश राशियों में क्या प्रभाव होता हैं?(What is the effect of Saturn in twelve zodiac signs?)

शनि का द्वादश राशियों में क्या प्रभाव होता हैं?(What is the effect of Saturn in twelve zodiac signs?):-शनि के द्वादश राशियों में फल शास्त्रों में निम्नानुसार बताए गए हैं।




What is the effect of Saturn in twelve zodiac signs?



1.मेष राशि:-यदि जन्म कुंडली में शनि मेष राशि में स्थित हो, तो जातक मूर्ख, आवारा, क्रूर, जालफरेब करने वाला, झगड़ालू, उल्टे दिमाग वाला और दु:खी होता है। 




2.वृषभ राशि:-यदि जन्म कुंडली में शनि वृषभ राशि में स्थित हो, तो जातक धोखेबाज, सफल, एकांतप्रिय, संयमी और छोटी-छोटी बातों के कारण चिंतित होने वाला होता है। 





3.मिथुन राशि:-यदि जन्म कुंडली में शनि मिथुन राशि में स्थित हो,तो जातक दु:खी, गंदा, कमजोर, कम संतान वाला और संकीर्ण मन वाला होता है।




4.कर्क राशि:-यदि जन्म कुंडली में शनि कर्क राशि में स्थित हो, तो जातक गरीब, हठी, कम संतान वाला, स्वार्थी और मामा से बिछोह वाला होता है। 





5.सिंह राशि:-यदि जन्म कुंडली में शनि सिंह राशि में स्थित हो, तो जातक हठी, कम संतान वाला, अभागा, अच्छा लेखक और ईष्यालु होता है।




6.कन्या राशि:-जन्म कुंडली में शनि कन्या राशि में स्थित हो, तो जातक गरीब, ईष्यालु स्वभाव वाला, झगड़ालू, असभ्य, कमजोर स्वास्थ्य वाला और पुराने विचारों वाला होता है। 





7.तुला राशि:-यदि जन्म कुंडली में शनि तुला राशि में स्थित हो, तो जातक प्रसिद्ध नेता, राजनीति में रुचि रखने वाला, धनवान, सम्मानित, शक्तिशाली, दानशील और परिस्थितियों में रुचि रखने वाला होता है। 





8.वृश्चिक राशि:-यदि जन्म कुंडली में शनि वृश्चिक राशि में स्थित हो, तो जातक उतावला, कठोर हृदय, संकीर्ण विचारों वाला, हिंसक प्रवृत्ति वाला, दु:खी, विष से खतरा, कमजोर स्वास्थ्य वाला, गरीब और बुरी आदतों वाला होता है।





9.धनु राशि:-यदि जन्म कुंडली में शनि धनु राशि में स्थित हो, तो जातक सक्रिय, चतुर, प्रसिद्ध, शांतिप्रिय, दु:खी विवाहित जीवन में जीने वाला और धनवान होता है। 





10.मकर राशि:-यदि जन्म कुंडली में शनि मकर राशि में स्थित हो, तो जातक कुशाग्र बुद्धि वाला, परिश्रमी, अच्छा घरेलू जीवन जीने वाला, विद्वान, सन्देह करने वाला, बदला लेने वाला और दार्शनिक होता है।





11.कुम्भ राशि:-यदि जन्म कुंडली में शनि कुंभ राशि में स्थित हो, तो जातक नीति में दक्ष, योग्य, सुखी, कुशाग्र बुद्धि वाला और शक्तिशाली शत्रु वाला होता है। 





12.मीन राशि:-यदि जन्म कुंडली में शनि मीन राशि में स्थित हो, तो जातक धनवान, प्रसिद्ध, नम्र, सुखी और दूसरों की सहायता करने वाला होता है।



Tuesday 13 December 2022

December 13, 2022

मानव की सुंदरता-बदसूरती में ग्रहों की भूमिका (The role of planets in the beauty-ugliness of human

मानव की सुंदरता-बदसूरती में ग्रहों की भूमिका(The role of planets in the beauty-ugliness of human):-सुंदरता-बदसूरती मानव को उसके के द्वारा पूर्वजन्म में किये हुए कार्यों के आधार पर अगले जन्म में मिलती हैं। जो मनुष्य अच्छे कर्म करते हैं, उनको अगले जन्म में शरीर की बनावट एवं रूप-रंग अच्छा मिलता हैं। इसलिए सुंदरता प्राणी मात्र को मिला प्रकृति का अनुपम उपहार है। मनुष्य का शरीर पंचतत्वों से मिलकर बनता हैं और इन पंचतत्वों में विलीन हो जाता हैं। पंचतत्वों पृथ्वी, अग्नि, वायु, जल और आकाश से बना शरीर दूसरों को अपनी तरफ खींचने वाला व दूसरों के द्वारा नफरत दोनों का मुख्य स्थान होता है। सभी का जन्मदाता एक ईश्वर है, तो जन्म के बाद रंग, रूप, वाणी, विचार, सबके अलग-अलग होते हैं। 


The role of planets in the beauty-ugliness of human




जातक के जन्म के बाद सारा जिम्मा नवग्रहों का ही होता है। जातक के प्रारब्ध के आधार पर नवग्रह प्रकृति के द्वारा निर्धारित शुभ-अशुभ फल प्रदान करते हैं। इस प्रकार अंतरण को आह्लादित करने वाली सुंदरता पर नवग्रहों का व्यापक प्रभाव पड़ता है।




ज्योतिष शास्त्र के अनुसार:-जातक या जातिका की जन्मकुंडली में शुक्र, चन्द्रमा व बुध का योग होने पर वह सुंदरता की प्रतिमूर्ति बनता है।



नवग्रहों में शुक्र को सुंदरता, चंद्रमा को कांति व सौम्यता, बुध को वाणी की कुशलता व चिरयौवन देने वाला, सूर्य को तेज, मंगल को आकर्षक व लाल रंग या रक्तवर्ण शरीर और गुरु को आकर्षण के साथ सुंदर नाक-नक्श प्रदान करने वाला माना जाता हैं। 




सुंदरता देने में शनि का भी बहुत महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि शनि पतली काया, घने-गहरे काले बाल, बड़ी-बड़ी कजरारी आंखें देने वाला होता है। 



जन्मकुंडली में किसी एक ग्रह का विशेष प्रभाव होने पर जातक के उस ग्रह से संबंधित अंगों पर:-उसका प्रभाव दिखता है।



●यदि शुक्र लग्न में हो, तो जातक बहुत ही सुंदर होता है।



●यदि शुक्र के साथ लग्न में यदि शनि होने पर जातक का शरीर कांतिमय व पतला रहता है।



●यदि शुक्र के साथ सूर्य होने पर जातक के बाल मखमल के समान चमकीले होते हैं।



●यदि शुक्र और सूर्य के साथ यदि बुध हो, तो जातक के बाल घुंघराले होते हैं।



●यदि शुक्र के साथ यदि चंद्रमा व शनि भी  मिल जाए तो जातक का चेहरा ओर भी आकर्षण प्रदान करने वाला होता है, व उसके बालों की सुंदरता ओर भी अधिक आकर्षक होती है।



●यदि चंद्रमा बलवान या वर्गोत्तम हो, तो जातक अपनी मुस्कान से पतझड़ में भी बाहर ला देता है। 




स्त्री जातक के शरीर का सुंदर:-होने के कारण ज्योतिष शास्त्र में निम्नलिखित है:



यदि स्त्री जातक की जन्मकुंडली में शुभ ग्रह के साथ यदि पाप या क्रूर ग्रहों का मेल हो जाए तो विशेष गुण देखने को मिलते हैं।



●अकेला शुभ ग्रह हो, तो मोटापा लाकर उसकी सुंदरता को बिगाड़ देता है 



●स्त्री जातक की जन्मकुंडली में लग्न से द्वितीय व द्वादश भाव में शुभ ग्रह हो, तो उसकी आंखें अलग प्रकार की  एवं गजब होती है।



●यदि द्वितीय भाव और द्वादश भाव में शनि हो, तो स्त्री जातक की आंखें बड़ी-बड़ी गोल होती हैं। ऐसे जातक स्त्री को 'विलोलनेत्रा तरुणी सुशीला' कहा जाता है।



●यदि सूर्य-शुक्र का मेल होने पर पतले मगर भरे-भरे होंठ व आकर्षक चेहरा प्रदान करने वाला होता है।


●यदि सूर्य-शुक्र के साथ गुरु का भी मेल हो, तो जातक की नाक सुंदर होती हैं।



●इसी प्रकार अग्नि तत्व प्रधान राशियों मेष, सिंह और धनु की स्त्री जातक के शरीर का अधोभाग ज्यादा सुंदर होता है



●यदि पाप, क्रूर ग्रह (मंगल, सूर्य, केतु आदि) उपस्थित हो तो उसकी सुंदरता को चार चांद लग जाते हैं।



●नारी की सुंदरता का अभिन्न अंग उरु प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर्क राशि, जबकि कमर या कटी प्रदेश का प्रतिनिधित्व कन्या राशि करती हैं।



●इसमें यदि बुध स्थित हो तो जातक की कमर पतली  इसके साथ ही शनि हो, तो कमर अत्यंत पतली होती हैं। ज्योतिष में शनि को कमजोर शरीर को योगी माना गया है और सुंदरता के लिए कमजोर शरीर वाला व योगी माना गया है और सुंदरता के लिए कृशशरीर होना जरूरी है।



ज्योतिष शास्त्र में शनि को सांवली सूरत का प्रतिनिधित्व ग्रह माना जाता है फिर भी यह जातकों को अतिसुंदर बना देता है। गोरों लोगों से सांवले रंग वाले अधिक आकर्षक और सुंदर होते हैं इस प्रकार शनि के योग के बगैर सुंदरता कोई पैमाना अधूरा माना जाता है और आकर्षक लोगों पर शनि का अधिकार होता है।



◆यदि शनि धनु राशि या मकर राशि में हो तो जातक का जानु प्रदेश (जंघा, घुटनाआदि) एक समान होते है। 



◆जबकि मीन राशि के गुरु के साथ मंगल होने से जातक के पांव कोमल व लाल तथा नाखून आकर्षक होते हैं।