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Friday 25 February 2022

मंगल चंडिका स्तोत्रं और लाभ(Mangal Chandika Stotra and Benefits)

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मंगल चंडिका स्तोत्रं और लाभ(Mangal Chandika Stotra and Benefits):-महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती तीनों रूप सयुंक्त होकर एक रूप बनते हैं, उसे मंगल चंडिका रूप कहते हैं। नवदुर्गा का एक नाम चामुंडा या दुर्गा माँ या चंडिका हैं। चंडिका देवी को सृष्टि मंडल की परम् शक्ति माता भुवनेश्वरी के रूप में धर्मग्रन्थों में बताया गया हैं, जो कि सबसे उच्च पद पर आसीन होकर समस्त लोकों का पालन-पोषण करती हैं और धर्म व नीति के विरुद्ध आचरण करने का उग्र एवं विकराल रूप को धारण करके संहार करती हैं। अपने प्रिय भक्तों की रक्षा के लिए सदा तैयार रहती हैं और तीनों लोक में सिंह पर सवार होकर भ्रमण करती हैं। समस्त तीनों लोकों में पूजनीय हैं। अपने भक्तों पर अपनी कृपा दृष्टि की बारिश करते हुए उनको आशीर्वाद प्रदान करती हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के आधार पर वर्णित हैं।


।।अथ श्री मंगल चंडिका स्तोत्रम्।।


ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये मङ्गलचण्डिके।

ऐं क्रूं फट् स्वाहेत्येवं चाप्येकविन्शाक्षरो मनुः।।


पूज्यः कल्पतरुश्चैव भक्तांना सर्वकामदः।

दशलक्षजपेनैव मन्त्रसिद्धिर्भवेन्नृणाम्।।


मन्त्रसिद्धिर्भवेद् यस्य स विष्णुः सर्वकामद।

ध्यानं च श्रूयतां ब्रह्मन् वेदोक्तं सर्व सम्मतम्।।


देवीं षोडशवर्षीयां शश्वत्सुस्थिरयौवनाम्।

सर्वरूपगुणाढ्यां च कोमलाङ्गीं मनोहराम्।।


श्वेतचम्पकवर्णाभां चन्द्रकोटिसमप्रभाम्।

वन्हिशुद्धांशुकाधानां रत्नभूषणभूषिताम्।।


बिभ्रतीं कबरीभारं मल्लिकामाल्यभूषिताम्।

बिम्बोष्टिं सुदतीं शुद्धां शरत्पद्मनिभाननाम्।।


ईषद्धास्यप्रसन्नास्यं सुनीलोल्पललोचनाम्।

जगद्धात्रीं च दात्रीं च सर्वेभ्यः सर्वसंपदाम्।।


संसारसागरे घोरे पोतरूपां वरां भजे।

देव्याश्च ध्यानमित्येवं स्तवनं श्रूयतां मुने।।

प्रयतः संकटग्रस्तो येन तुष्टाव शंकरः।।


शंकर उवाच:-भगवान शंकरजी ने कहा हैं-कि आप सभी अपने को एक जगह पर केंद्रित करते हुए ध्यान किया हैं, उसी तरह से मन में किसी भी तरह के बुरे विकारों को निकालते हुए श्रद्धाभाव से मङ्गलचण्डिका की स्तुति करने के भाव को भी ध्यानपूर्वक सुनिए-

रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि मङ्गलचण्डिके।

हारिके विपदां राशेर्हर्षमङ्गलकारिके।।


हर्षमङ्गलदक्षे च हर्षमङ्गलचण्डिके।

शुभे मङ्गलदक्षे च शुभ मङ्गलचण्डिके।।


मङ्गले मङ्गलार्हे च सर्व मङ्गलमङ्गले।

सतां मन्गलदे देवि सर्वेषां मन्गलालये।।


पूज्या मङ्गलवारे च मङ्गलाभीष्टदैवते।

पूज्ये मङ्गलभूपस्य मनुवंशस्य संततम्।।


मङ्गलाधिष्टातृदेवि मङ्गलानां च मङ्गले।

संसार मङ्गलाधारे मोक्षमङ्गलदायिनि।।


सारे च मङ्गलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम्।

प्रतिमङ्गलवारे च पूज्ये च मङ्गलप्रदे।।


फलश्रुति:-जो मंगल चंडिका स्तोत्रं के वांचन से या सुनने पर जो फल प्राप्त होते हैं, उसे ही फलश्रुति कहते हैं।

स्तोत्रेणानेन शम्भुश्च स्तुत्वा मङ्गलचण्डिकाम्।

प्रतिमङ्गलवारे च पूजां कृत्वा गतः शिवः।।

देव्याश्च मङ्गलस्तोत्रं यः श्रुणोति समाहितः।

तन्मङ्गलं भवेच्छश्वन्न भवेत् तदमङ्गलम्।।

अर्थात:-हे मङ्गलचण्डिका देवि! आपके मङ्गलचण्डिका स्तोत्रं का वांचन भगवान शिवजी ने करते हुए आपके गुणों की प्रशंसा की थी। भगवान शिवजी आपकी प्रत्येक मंगलवार को पूजन करते चले जाते हैं।

इस तरह से सबसे पहले भगवान शिवजी के द्वारा भगवती सर्वमङ्गला पूजित हुई हैं।

मङ्गलचण्डिका देवि के अनुयायी उपासना करने वाले मङ्गल ग्रह हैं।

मङ्गलचण्डिका देवि की तीसरी बार राजा मङ्गल अनुयायी ने उपासना की थी। 

मङ्गलचण्डिका देवि की चौथी बार कुछ सुन्दरी औरतों के अनुयायी ने उपासना की थी। 

मङ्गलचण्डिका देवि की पाँचवीं बार कल्याण की इच्छा को रखने वाले अनुयायी मनुष्यों ने उपासना की थी।

इस तरह संसार के स्वामी भगवान शिवजी से अच्छी तरह से पूजित होने से मङ्गलचण्डिका प्रत्येक जगत में हमेशा ही पूजित होने लगी।

हे मुनिवरों! फिर इस तरह से पूजित होने के कारण बाद में देवताओं, मुनियों, मनु और मनुष्यों सभी के द्वारा सभी जगह पर सृष्टि मंडल की मूल अधिष्ठाता शक्ति की पूजा करने लगे।

फलश्रुति:-जो मनुष्य अपने मन में बुरे विकारों को त्याग करते हुए एकाग्रचित्त होकर सच्चे मन से एवं श्रद्धाभाव रखते हुए मां भगवती मङ्गलचण्डिका स्तोत्रं में वर्णित श्लोकों के मंत्रों का वांचन करते हैं या किसी दूसरे के द्वारा वांचन को सुनते हैं, तो उन मनुष्य को हमेशा कल्याण ही होता हैं और उनको किसी तरह का अनिष्ट नहीं हो पाता हैं। उन मनुष्य को पुत्र सन्तान एवं पुत्र के पुत्र सन्तान में बढ़ोतरी होती हैं और उन मनुष्य को हमेशा मङ्गल ही दिखाई पड़ने लगता हैं।


     ।।इति श्री ब्रह्मवैवर्त मङ्गलचण्डिका स्तोत्रं संपूर्णम्।।


श्रीमंगल चंडिका स्तोत्रं के वांचन का दिन एवं विधि(Day and method of reciting Shrimangal Chandika Stotram):-ब्रह्मवैवर्त पुराण में श्रीमंगल चंडिका स्तोत्रं के श्लोकों के मंत्रों का विवरण मिलता हैं, जो कि पूर्णरूप से संस्कृत भाषा में वर्णित हैं।

◆मनुष्य को अपनी इष्टदेवी या इष्टदेव को साक्षी मानते हुए अपनी मुराद के पूर्ण होने तक या जीवनभर वांचन का संकल्प लेना चाहिए।


◆मनुष्य को श्रीमंगल चंडिका स्तोत्र का वांचन मंगलवार के दिन से शुरू करना चाहिए।


◆श्रीमंगल चंडिका की पूजा करके ही श्रीमंगल चंडिका स्तोत्र का वांचन करना चाहिए।


◆फिर भगवान शिवजी के शिव पंचाक्षरी की एक माला जप करने से भी फायदा मिलता हैं। 


श्रीमंगल चंडिका स्तोत्रं के वांचन से मिलने वाले लाभ(Benefits of reciting Shrimangal Chandika Stotram):-श्रीमंगल चंडिका स्तोत्रं के वांचन से अनेक तरह के लाभ मिलते हैं, जो इस तरह हैं-

◆मनुष्य के मन की सभी मुराद पूर्ण हो जाती हैं।


◆मनुष्य नियमित रूप से इस स्तोत्रं का वांचन करते हैं, उनके जीवन में कभी रुपयों-पैसों की कमी नहीं होती हैं और बढ़ोतरी होती हैं।


◆मनुष्य के निवास स्थान में रहने वाले मनुष्य के मतभेद एवं झगड़ों से मुक्ति यह स्तोत्र प्रदान करता हैं।


◆जिन मनुष्य के सगाई एवं लग्न में में देरी हो रही होती हैं, उनको इस स्तोत्र का वांचन नियमित रूप से शुरू करना चाहिए, जिससे उनके सगाई एवं लग्न जल्दी हो सके।


मनुष्य को अपने दाम्पत्य जीवन में सुख-शांति के लिए इस स्तोत्रम् का नियमित वांचन करना चाहिए।


◆मनुष्य के जीवन में आने वाली सभी बाधाओं से राहत पाने के लिए मनुष्य को नियमित रूप से इस स्तोत्रम् का वांचन करना चाहिए।


◆मनुष्य को पुत्र सुख एवं पौत्र सुख के लिए इस स्तोत्रम् का वांचन करना चाहिए।



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