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Sunday 6 February 2022

श्री चण्डी ध्वज स्तोत्रं(Shri Chandi Dhwaj Stotram)




श्री चण्डी ध्वज स्तोत्रं(Shri Chandi Dhwaj Stotram):-माता चण्डी  ब्रह्म स्वरूप को ग्रहण करते हुए तीनों लोकों का पालन-पोषण करती हैं और तीनों लोक में संतुलन बनाए रखती हैं, जब तीनों लोकों में सतुंलन बिगड़ने लगता हैं, तब विकराल रूप को धारण करके सतुंलन तीनों लोको में बनाती है। जब चुण्ड-मुण्ड दैत्यों के द्वारा तीनों लोकों में अपने दुराचार एवं अत्याचारों के द्वारा त्राहि-त्राहि मचा दी थी, तब माता दुर्गाजी ने नए रूप को धारण किया जो बहुत ही भयानक था, इस रूप को चण्डी या चामुंडा रूप था। जिसको धारण करके दैत्यों चुण्ड-मुण्ड का अंत किया था और संसार में शांति स्थापित की थी। माता दुर्गाजी के नौ रूप में से एक रूप चामुण्डा या चण्डी का होता हैं। इसलिए माता चामुण्डा को खुश करने के लिए श्रीचण्डी ध्वज स्तोत्रम् का वांचन नियमित रूप से करने पर हो जाती हैं और आशीर्वाद दे देती हैं।



अथ श्रीचण्डी ध्वज कवचं स्त्रोतं पाठ:-अथ श्रीचण्डी ध्वज कवचं स्त्रोतं का वांचन नियमित रूप से करना चाहिए, इसके गुणों का वर्णन इस तरह है:


ऊँ श्रीं नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै भूत्त्यै नमो नमः।

परमानन्दरुपिण्यै नित्यायै सततं नमः।।१।।

अर्थात्:-हे जगत प्रतिष्ठित देवि! आप परब्रह्म में समाश्रित होकर तीनों लोक में विचरण करती हो, आप प्रत्यक्ष स्वरूप में तीनों लोक  हैं। मैं आपको नमन करता हूँ।

हे परमानन्दरुपिण्यै! आप ब्रह्म स्वरूप में निरन्तर विचरण करते हुए आनन्द को देने वाली हो। आपको मैं बार-बार नमस्कार करता हो। 


नमस्तेsस्तु महादेवि परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।२।।

अर्थात्:-हे महादेवि! आप ब्रह्म रूप को ग्रहण करते हुए भगवान महादेवजी पत्नी का स्थान प्राप्त हैं। आप ब्रह्म स्वरूप में निरन्तर विचरण करते हुए आनन्द को देने वाली हो। आपको मैं बार-बार नमस्कार करता हो। आप रुपयों-पैसों को देने वाली, सार्वभौम सत्ता को देने वाली एवं राज्य का संचालन करने की शक्ति देने वाली हैं। 


रक्ष मां शरण्ये देवि धन-धान्य-प्रदायिनि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।३।।


नमस्तेsस्तु महाकाली परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।४।।


नमस्तेsस्तु महालक्ष्मी परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।५।।


नमस्तेsस्तु महासरस्वती परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।६।।


नमस्तेsस्तु ब्राह्मी परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।७।।


नमस्तेsस्तु माहेश्वरी देवि परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।८।।


नमस्तेsस्तु च कौमारी परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।९।।


नमस्ते वैष्णवी देवि परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।१०।।


नमस्तेsस्तु च वाराही परब्रह्मस्वरूपिणि। 

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।११।।


नारसिंही नमस्तेsस्तु परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।१२।।


नमो नमस्ते इन्द्राणी परब्रह्मस्वरूपिणि। 

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।१३।।


नमो नमस्ते चामुण्डे परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।१४।।


नमो नमस्ते नन्दायै परब्रह्मस्वरूपिणि। 

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।१५।।


रक्तदन्ते नमस्तेsस्तु परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।१६।।


नमस्तेsस्तु महादुर्गे परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।१७।।


शाकम्भरी नमस्तेsस्तु परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।१८।।


शिवदूति नमस्तेsस्तु परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।१९।।


नमस्ते भ्रामरी देवि परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।२०।।


नमो नवग्रहरुपे परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।२१।।


नवकूट महादेवि परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।२२।।


स्वर्णपूर्णे नमस्तेsस्तु परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।२३।।


श्रीसुन्दरी नमस्तेsस्तु परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।२४।।


नमो भगवति देवि परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।२५।।


दिव्ययोगिनी नमस्ते परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।२६।।


नमस्तेsस्तु महादेवि परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।२७।।


नमो नमस्ते सावित्री परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।२८।।


जयलक्ष्मी नमस्तेsस्तु परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।२९।।


मोक्षलक्ष्मी नमस्तेsस्तु परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।३०।।


चण्डीध्वजमिदं स्तोत्रं सर्वकामफलप्रदम्।

राजते सर्वजन्तछनां वशीकरण साधनम्।।३१।।

अर्थात्:-श्रीचण्डी ध्वज स्तोत्रं के वांचन करने पर सभी कार्यों में कामयाबी मिलती हैं, सभी तरह के जीव-जंतुओं को भी अपनी तरफ आकर्षित करने का माध्यम हैं। 


            ।।इति श्रीचण्डी ध्वज स्तोत्रम् सम्पूर्ण।।

            ।।जय बोलो श्रीचण्डी देवी की जय हो।।


श्रीचण्डी ध्वज स्तोत्रम् का महत्त्व:-श्रीचण्डी ध्वज स्तोत्रम् के वांचन का बहुत महत्व शास्त्रों में बताया हैं, जो इस तरह हैं:


◆समस्त तरह के कार्यों में कामयाबी दिलाने सहायक होता हैं।


◆अपनी तरह सभी को आकर्षित करने में सहायक होने से महत्त्व की जानकारी मिलती हैं।


◆जीवन को परेशानियों को दूर करने में यह स्तोत्रम् सहायक होने से महत्त्व का पता चलता हैं।


◆जलन वाले दुश्मनों से मुक्त करवाने में यह स्तोत्रम् सहायक होने से इस स्तोत्रम् का महत्त्व की जानकारी मिलती हैं।


◆समस्त स्थानों पर विजय दिलवाने वाला श्रीचण्डी ध्वज स्तोत्रम् सहायक होता हैं।







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