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Wednesday 15 December 2021

हनुमान तांडव स्तोत्र (Hanuman Tandav Stotram)





हनुमान तांडव स्तोत्र (Hanuman Tandav Stotram):-श्री हनुमत्ताण्डवं स्तोत्रम् की लोकेश्वराख्यभट्टेन ने रचना की हैं। इस स्तोत्रम् में दश श्लोकों को बताया है, इन दश श्लोकों से युक्त इस स्तोत्रम् में श्रीहनुमानजी के गुणों का बखान किया गया हैं। जो मनुष्य श्रीहनुमानजी की नियमित रूप से पूजा-अर्चना नहीं कर पाते हैं, उन मनुष्य को हनुमत्ताण्डवं स्तोत्रम् का पाठन करना चाहिए, जिससे जो पूजा-अर्चना का फल मिलता हैं, वही फल इस स्तोत्रम् के पाठ से मिल जावे। इसलिए मनुष्य को नियमित रूप से इस स्तोत्रम् का वांचन करना चाहिए।

 

।।अथ श्री हनुमत तांडव स्तोत्रम्।।


वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम्।

रक्ताङ्गरागशोभाढयं शोणापुच्छं कपीश्वरम्।।

भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं, 

दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम्।

सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं,

समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम्।।१।।



सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं 

वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न।

इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराSधिनाथ 

आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः।।२।।



सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना, 

भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ।

कृतो हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ, 

विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिवं करोत्वरम।।३।।



सुशब्दशास्त्रपारगं, विलोक्य रामचन्द्रमाः, 

कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम्।

प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः 

कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभु।।४।।



प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं,

फणीशमातृगर्वहृद्दृशास्यवासनाशकृत्।

विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्,

सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम्।।५।।



नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं 

गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम्।

सुपुच्छगुच्छतुच्छलङ्कदाहकं सुनायकं 

विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम्।।६।।



रघुत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं 

दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रिकाप्रदर्शकम्।

विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम्

सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम्।।७।।



नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता 

महासहा यता यया द्वयोर्हितं हृभूत्स्वकृत्यतः।

सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां 

निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम्।।८।।



इमं स्तवं कुजेsह्नि यः पठेत्सुचेतसा 

नरः कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः।

प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा न 

शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह।।९।।



नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेsनङ्गवासरे।

लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम्।।१०।।


         ।।इति श्री हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम्।।

     ।।जय बोलो सियावर रामचन्द्रजी की जय हो।।

        ।।जय बोलो पवनपुत्र हनुमानजी की जय।।



हनुमान तांडव स्तोत्रम् का महत्त्व:-भगवान श्रीरामचन्द्रजी के सेवकं श्रीहनुमानजी का हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम् के वर्णित श्लोकों का वांचन मनुष्य को हमेशा करते रहना चाहिए

◆श्रीहनुमानजी को किस तरह अपनी भक्ति से खुश करें। इसलिए मनुष्य को समस्त तरह के दुःखों से अंत पाना हो तो उनको इस स्तोत्रम् का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए। 

 ◆श्रीरामचन्द्रजी एवं श्रीहनुमानजी की अनुकृपा को पाने के लिए नियमित रूप से इस स्तोत्रम् का पाठ करना चाहिए।

◆जन्मकुण्डली एवं ग्रह गोचर में भौम ग्रह, सेंहिकीय एवं शिखी आदि ग्रहों के बुरे पड़ने वाले प्रभावों से मुक्ति प्रदान कर सके और मनुष्य का जीवन सही तरीके से बिना मुसीबतों से चल सके। 

◆जो मनुष्य प्रतिदिन श्री हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम् में वर्णित श्लोकों का वांचन करते हैं, उनको अनावश्यक डर, भूत पिशाच, व्याधियों और अकारण होने दुर्घटना आदि का डर रहता हैं, वह दूर हो जाता हैं। जिससे मनुष्य का जीवन अच्छी तरह चलते हुए समस्त तरह से रक्षा हो जाती हैं।

◆इस स्तोत्र का वांचन करके मनुष्य अपने जीवन में परेशानियों से मुक्ति मिल सके।    



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