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Wednesday 22 September 2021

सरस्वती स्तोत्रं(Saraswati Stotram)

                 


सरस्वती स्तोत्रं(Saraswati Stotram):-विद्या की देवी श्री सरस्वती माता का सरस्वती स्त्रोतं का पाठ करने से स्मरण शक्ति तेज होती है, बार-बार भूलने की आदत ठीक हो जाती है। जिनको पढ़ाई में रुचि नहीं होती हैं, उनको सरस्वती स्तोत्र का पाठ करने पर पढ़ाई के प्रति तीव्र लालसा बढ़ जाती है। सरस्वती स्तोत्रं एक तरह का बुद्धि एवं ज्ञान शक्ति को बढ़ाने हैं। इसलिए नियमित रूप से सरस्वती स्तोत्रं का पाठ करके अपनी बुद्धि एवं ज्ञान शक्ति को बढ़ा सकते हैं।



।।अथ श्री सरस्वती स्तोत्रं।।

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रान्विता

या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।

या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता

सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा।।1।।

आशासु राशीभवदंगवल्लीभासैव दासीकृतदुग्धसिन्धुम।

मन्दस्मितैर्निन्दितशारदेन्दुं वन्देsरविन्दासनसुन्दरि त्वाम।।2।।

शारदा शारदाम्भोजवदना वदनाम्बुजे।

सर्वदा सर्वदास्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात।।3।।

सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृदेवताम।

देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जना:।।4।।

पातु नो निकषग्रावा मतिहेम्न: सरस्वती।

प्राज्ञेतरपरिच्छेदं वचसैव करोति या।।5।।

शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीं

वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम।

हस्ते स्फाटिकमालिकां च दधतीं पद्मासने संस्थितां

वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम।।6।।

वीणाधरे विपुलमंगलदानशीले, 

भक्तार्तिनाशिनि विरिंचिहरीशवन्द्ये।

कीर्तिप्रदेsखिलमनोरथदे महार्हे, 

विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम।।7।।

श्वेताब्जपूर्णविमलासनसंस्थिते हे, 

श्वेताम्बरावृतमनोहरमंजुगात्रे।

उद्यन्मनोज्ञसितपंकजमंजुलास्ये,

विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम।।8।।

मातस्त्वदीयपदपङ्कजभक्तियुक्ता,

ये त्वां भजन्ति निखिलानपरान्विहाय।

ते निर्जरत्वमिह यान्ति कलेवरेण,

भूवह्निवायुगगनाम्बुविनिर्मितेन।।9।।

मोहान्धकारभरिते ह्रदये मदीये,

मात: सदैव कुरु वासमुदारभावे।

स्वीयाखिलावयवनिर्मलसुप्रभाभि:,

शीघ्रं विनाशय मनोगतमन्धकारम।।10।।

ब्रह्मा जगत सृजति पालयतीन्दिरेश:, 

शम्भुर्विनाशयति देवि तव प्रभावै:।

न स्यात्कृपा यदि तव प्रकटप्रभावे,

न स्यु: कथंचिदपि ते निजकार्यदक्षा:।।11।।

लक्ष्मीर्मेधा धरा पुष्टिर्गौरी तुष्टि: प्रभा धृति:।

एताभि: पाहि तनुभिरष्टाभिर्मां सरस्वति।।12।।

सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नम:।

वेदवेदान्तवेदांगविद्यास्थानेभ्य: एव च।।13।।

सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने।

विद्यारुपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोsस्तु ते।।14।।

यदक्षरं पदं भ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत।

तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि।।15।।

।।इति श्री सरस्वती स्तोत्रं।।

।।जय बोलो वीणावादिनी की जय।।

।।जय बोलो सरस्वती माता की जय।।


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