Breaking

Wednesday 8 September 2021

गणेश चतुर्थी व्रत कथा एवं पूजा विधि(Ganesh Chaturthi Vrat katha & puja vidhi)






गणेश चतुर्थी व्रत कथा एवं पूजा विधि(Ganesh Chaturthi Vrat katha & puja vidhi):-गणेश चतुर्थी भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी तिथि कहा जाता हैं। इस चतुर्थी तिथि के दिन ही हमारे धर्म शास्त्रों में श्री गणेशजी का जन्म बताया गया है। इसलिए इस दिन को गणेश जी के जन्म होने के कारण ही उनकी जयंती के रूप में मनाया जाता हैं। इस पर्व का हिंदुओं के लिए बहुत महत्व माना जाता है। क्योंकि यह पर्व ग्यारह दिवस तक चलता है। इस पर्व पर जो भी मनुष्य श्री गणेश जी प्रतिमा को अपने घर में स्थापित करके उनकी पूजा दश दिवस तक की जाती है। उसके बाद ग्यारहवें दिवस गणेश जी की पूजा करके उनको श्रृंगार आदि करके उनकी प्रतिमा को किसी बहते जल स्थान पर विसर्जित करते है। इस तरह यह पर्व आनन्द एवं सभी तरह की खुशियों का माना जाता है। गली-गली में गणेश भगवान की मूर्ति को मोहल्ले के बीच की जगह पर स्थापित करते है। इस तरह गली-गली और मोहल्ले में स्त्रियों, पुरुष और बच्चे डांडिया नृत्य दस दिन तक करते है। इस तरह दश दिन तक यह पर्व में प्रतियोगिताएं रखकर बच्चों को प्रोत्साहित कर पुरस्कार का भी वितरण किया जाता हैं।



गणेश के जन्म होने की पौराणिक कथा:- एक बार भगवान शंकरजी स्नान के लिए कैलाश पर्वत से भोगवती नामक स्थान पर गए। उसी समय घर पर पार्वती स्नान करते समय अपने मैल का एक पुतला बनाकर उसे सजीव कर दिया। उसी का नाम देवी ने गणेश रखा। गणेश को देवी ने आज्ञा दी कि मैं स्नान कर रही हूँ। जब तक बाहर से कोई अंदर नहीं आ पावे। थोड़े समय के बाद ही शंकरजी आ गए और घर के अंदर जाने लगे। तब द्वार के ऊपर खड़े गणेश ने उनको अन्दर जाने से रोका। इस तरह काफी समझाने पर भी गणेश नहीं माने तो शिवजी ने उनका सिर को अपनी त्रिशूल से काट दिया। टेढ़ी भृकुटी वाले शिव जब अन्दर पहुँचे तो शैलजा ने समझा कि देरी होने के कारण कुपित हो रहे हैं। इसलिए शीघ्र ही दो पात्र में भोजन परोस कर लाई। दो पात्रों को देखकर शिवजी ने पूछा कि यह दूसरा पात्र किसका हैं? पार्वती बोली कि बाहर जो दरवाजे पर पहरा देने वाले मेरे लाड़ले पुत्र गणेश का हैं। यह सुनकर शिवजी ने कहा कि मैंने तो उसकी जीवनलीला समाप्त कर दी। वह मुझे अन्दर ही नहीं आने दे रहा था तो पार्वती बहुत ही दुःखी हुई और प्रिय पुत्र को पुनः जीवन देने के लिए आग्रह किया। पार्वती को प्रसन्न करने के लिए शंकर भगवान ने अपने गणों को कहा जो माँ अपने बच्चे से पुट फेर कर सो रही हो उस बच्चे का सिर ले आओ। तब उन्होंने एक हथिनी को देखा जो अपने नवजात शिशु से पुट फेर कर सो रही थी। तब गण उस बच्चे का सिर काट कर ले आए और उस बालक के धड़ से जोड़ दिया। तब पार्वती ने कहा-इतना कुरूप बच्चा मुझे नहीं चाहिए। तब शंकर भगवान ने कहा की मैं इसे आशीर्वाद देता हूँ कि इस संसार में जिसके भी घर में मांगलिक कार्य एवं विवाह आदि में गणेश की प्रथम पूजा करेंगे, फिर इसके पश्चात कोई दूसरा काम होगा। इसलिए इस मृत्यु लोक में सभी कार्य रिद्धि-सिद्धि सहित पूरे होते हैं। अन्न-धन का भण्डार रहता हैं। यह सुनकर पार्वती ने प्रसन्नतापूर्वक पति-पुत्र को भोजन कराया और स्वयं ने भी भोजन किया। यह घटना भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि को घटित हुई थी। इसलिए इसका नाम गणेश चतुर्थी पड़ा। 



गणेश चतुर्थी का व्रत करने की विधि:-मनुष्य को अपने सभी तरह के विघ्नों से मुक्ति पाने के लिए गणेश जी का व्रत करना चाहिए। इस व्रत की विधि इस तरह है:

◆भाद्रपद महीने की शुक्लपक्ष की चौथ को गणेश चतुर्थी का व्रत करना चाहिए।

◆गणेश चतुर्थी के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर अपनी दैनिकचर्या से निवृत होकर स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र को धारण करना चाहिए।

◆भगवान श्रीगणेश जी की सोने की, चांदी की, तांबे की, मिट्टी या गोबर से मूर्ति बनवाकर या बनाकर मूर्ति को पूजा के रूप में उपयोग में लेना चाहिए।

◆उसके बाद में अपने भवन में पूजाघर की जगह पर भगवान श्रीगणेशजी की मूर्ति को एक स्वच्छ जगह पर स्थापित करना चाहिए।

◆इस व्रत में भगवान गणपति जी की मूर्ति को चांदी के बरक लगाकर उनकी मूर्ति का श्रृंगार करना चाहिए।

◆भगवान गणेश जी, नव ग्रहों, वरुण देव और माता पार्वती जी की स्थापना करके पूजा करनी चाहिए।

◆सामग्री के रूप में दूध, दही, घृत, शक्कर, गंगाजल, पुष्प, दूर्वा, कंकु, मौली, गुड़, मोदक के लड्डू, पंचामृत, फूल की माला, सुपारी, सजावट के लिए बन्दरवाल, तांबे का लोटा, अबीर, गुलाल, सिंदूर, अगरबती, दिया व बाती, पांच जात के फल, पीली चीजो का विशेष बेशन से बनी हुई वस्तुए जिनमें लड्डू और पंचमेवा आदि लेनी चाहिए।

◆सबसे पूर्व सभी वरुणदेव जी की पूजा करनी चाहिए।

◆उसके बाद में नव ग्रहों की पूजा करनी चाहिए।

◆माता पार्वती जी की पूजा भी इस दिन करने से अच्छे फल की प्राप्ति होती हैं।

◆सबसे अंत में गणेश जी का पंचामृत से अभिषेक करके षोडशोपचार विधि पूजन करके उनसे अरदास करनी चाहिए।

◆इक्कीस मोदकों का भोग लगाया जाना चाहिए।

◆हरी दूर्वा के इक्कीस अंकुर लेकर गणेशजी के दस नामों को बोलते हुए चढ़ाने चाहिए।

◆चतुर्दशी तिथि के समय तक उनका पूजन किया जाता है।

◆दस दिन तक रात्रिकाल में जागरण और भगवान गणेशजी के गुणों का गुणगान होता हैं।

◆उसके बाद चतुर्दशी तिथि को गणेशजी की प्रतिमा या मूर्ति को किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान कराकर उनका विसर्जन कर देते हैं।

◆गणेश जी पूजा अर्चना करने के बाद उनकी आरती को पढ़ना चाहिए।

◆भगवान गणेश जी की पूजा के साथ ही साथ बाल चन्द्र देव की भी पूजा करनी चाहिए।



।।अथ श्री गणपति भगवान जी आरती की।।

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।

धूप चढ़े खील चढ़े और चढ़े मेवा।

लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा।।

जय गणेश,जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।

एकदन्त दयावन्त,चार भुजा धारी।

मस्तक सिन्दूर सोहे, मूसे की सवारी।।

जय गणेश,जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।

अन्धन को आँख देत, कोढ़िन को काया।

बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।।

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।

पान चढ़े,फूल चढ़े और चढ़े मेवा।

सूर श्याम शरण आये सुफल कीजे सेवा।।

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।

दीनन की लाज राखो शम्भु-सुत वारी।

कामना को पूरा करो जग बलिहारी।।

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।

।।इति श्री गणपति जी की आरती।।

।।जय बोलो गणपति बापा की जय हो।।

              ।।श्री गणेशाय नमः।


No comments:

Post a Comment