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Tuesday 6 September 2022

अथ श्री शिव स्तुति स्तोत्रं(Ath Shri Shiva Stuti Stotram)


अथ श्री शिव स्तुति स्तोत्रं(Ath Shri Shiva Stuti Stotram):-भगवान शिवजी की खुश करना है उनसे उनका आशीर्वाद प्राप्त करना है तो मनुष्य को उनके शिव स्तुति का जाप हमेशा करना चाहिए। जो व्यक्ति नियमित रूप से ईश्वर की पूजा नहीं कर पाता हैं तो उनको अपनी इच्छानुसार जिस देव-देवी में श्रद्धा होती है उस देव-देवी के स्तुति स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। उस स्तुति स्तोत्रं से भी वह फल की प्राप्ति होती है जो कि उस देव की पूजा-अर्चना से मिलता है। सभी देवों में शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवों में शिवजी होते है जो कि अपने भक्त की थोड़ी सी पूजा से भी प्रसन्न हो जाते है और अपने भक्त का उद्धार कर देते है।





Ath Shri Shiva Stuti Stotram




         

अथ श्री शिव स्तुति स्तोत्रं अर्थ सहित(Atha Sri Shiva Stuti Stotram with meaning):-भगवान् शिवजी की श्री शिव स्तुति स्तोत्रं के वांचन करने से पूर्व उसके श्लोकों में वर्णित अर्थ को जानना बहुत जरूरी हैं, उन श्लोकों के अर्थ को जानने के बाद ही वांचन करने से फायदा मिलता हैं। श्री शिव स्तुति स्तोत्रं अर्थ सहित निम्नलिखित हैं।



धन्य धन्य भोलेनाथ बाँट दिए तीनो लोक पल भर में।


ऐसा दीन दयाल मेरे शम्भू भरो खजाना पलभर में।।


अर्थात्:-हे भोलेनाथ! आप दीनों पर दया करने वाले हो और आपने पृथ्वीलोक, स्वर्गलोक और पाताल लोक को अलग-अलग हिस्सों में कर दिया। इसलिए सभी आपके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं। हे शम्भू! मैं आपसे अरदास करता हूँ कि थोड़े समय में मेरे निवास स्थान में रुपयों-पैसों सहित ऐश्वर्य को भर दीजिए। 


प्रथम वेद तो ब्रह्मा को दे दिया बने वेद के अधिकारी।


विष्णु को दिया चक्र सुदर्शन लक्ष्मी सी सुन्दर नारी।।


अर्थात्:-हे शिवजी! आपने सबसे पहले आध्यत्मिक ज्ञान के चार धर्म ग्रन्थ ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अर्थववेद आदि चारों वेदों को ब्रह्माजी को देकर वेदों के स्वामी बना दिया।

विष्णु जी को सुदर्शन चक्र एवं शोभायमान लक्ष्मी जी रूपी पत्नी दे दी।



इन्द्र को दिया कामधेनु और ऐरावत सा बलकारी।


कुबेर को कर दिया आपने सारी सम्पत्ति का अधिकारी।।


अर्थात्:-हे शिवजी! आपने समुद्र मंथन से निकले चौदह रत्नों में से सभी की कामना की पूर्ति करने वाली कामधेनु गाय को एवं समस्त तरह की शक्तियों वाले ऐरावत हाथी स्वर्ग के देवता इन्द्र को दे दिया। धन-सम्पत्ति एवं हीरे-जवाहरात आदि का स्वामी कुबेर को बना दिया।



अपने पास पात्र नहीं रखा, मग्न रहे बाघाम्बर में।


अमृत तो देवताओं को दे दिया, आप हलाहल पान किया।


ब्रह्म ज्ञान दे दिया उसी को, जिसने शिव तेरा ध्यान किया।।


अर्थात्:-हे शिवजी! आप बाघ की रोयेंदार चर्म को वस्त्र के रूप में धारण करने वाले हो और अपने पास किसी भी तरह का पात्र नहीं रखते हो। आपने समस्त तीनों लोकों की भलाई के हलाहल विष को पी लिया और अमृत को देवताओं को दे दिया। जिसने भी शिवजी के प्रति विश्वास एवं श्रद्धा भाव रखते हुए उनके गुनगान का बखान किया उसी को ब्रह्म ज्ञान दे दिया।




भगीरथ को दे दी गंगा, सब जग ने स्नान किया।


बड़े-बड़े पापियों को तारा, पलभर में कल्याण किया।।


आप नशे में मस्त रो, पियो भंग नित खप्पर में।


अर्थात्:-हे शिवजी! आपने समस्त धर्म एवं नीति के विरुद्ध किये जाने वाले बुरे कर्मों से मुक्ति प्रदान करने वाली एवं जीवन-मरण के बन्धन से मुक्ति दिलवाने वाली गंगा को भागीरथ दे दिया जिससे सभी जगत के वासियों ने स्नान करके अपनी गति को प्राप्त किया। जिन्होंने बहुत बुरे कर्मों को किया उनका भी आपने थोड़े समय में उद्धार किया। हे शिवजी! आप भांग रूपी मादक द्रव्य को हमेशा खप्पर या खोपड़ी रूपी पात्र में पीकर अपनी धुन में रहो।



लंका तो रावण को दी, बीस भुजा दस शीश दिए।


रामचन्द्र को धनुष बाण और हनुमत् को जगदीश दिये।।


अर्थात्:-हे शिवजी! आपने सोने की बनी हुई लंका एवं बीस भुजा और दश सिर रावण को दे दिए। श्रीरामचन्द्र को धनुष एवं बाण और हनुमानजी को जगत के पालन हार को दे दिया।



मनमोहन को दे दी मोहनी और मुकुट बख्शीश दिए।।


मुक्त हुए काशी के वासी, भक्ति में जगदीश दिए।


वीणा तो नारद को दे दी, हरि भजन को राग दिया।


अर्थात्:-हे शिवजी! आपने मन को लुभाने वाली मोहिनी रूप को एवं सिर पर शिरोभूषण के रूप में मुकुट श्रीकृष्ण को उपहार स्वरूप दे दिया, काशी में निवास करने वाले मुक्त एवं आराधना करने से जगत के स्वामी को दे दिया, वीणा वाद्य यंत्र नारद को दे दिया और विष्णु की स्तुति करने वाले को प्रेम दिया।



ब्राह्मण को कर्मकाण्ड और सन्यासी को त्याग दिया।


जिस पर तुमरी कृपा भई, उसी को अनगन राग दिया।


जिसने ध्याया उसी ने पाया महादेव तेरे वर में।।


अर्थात्:-हे शिवजी! आपने ब्राह्मण को यज्ञ, संस्कार जो नित्य-नैमित्तिक आदि कर्मों के विधान एवं संन्यास आश्रम में रहने वाले को सांसारिक विषयों और व्यवहारों को छोड़ने का भाव दे दिया।

हे शिव भाई! आप उदरतापूर्वक दूसरों की भलाई करने वृत्ति की मेहरबानी कर देते हो और उस पर बहुत अनुराग रखते हुए हरक्षण अपनी छत्रछाया में रखते हो। जिस किसी ने आपकी श्रद्धसपूर्वक एवं विश्वास से भक्ति पूजा-अर्चना की उसी को आपने दर्शन देकर मनवांछित आशीर्वाद प्रदान कर देते हो।



           ।।इति श्री शिव स्तुति स्तोत्रं।।


        ।।जय बोलो शिव शंकरजी जय।।


   ।।जय बोलो उमापति शिवजी की जय।।


              ।।अथ श्री शिव स्तुति।।


धन्य धन्य भोलेनाथ बाँट दिए तीनो लोक पल भर में।


ऐसा दीन दयाल मेरे शम्भू भरो खजाना पलभर में।।


प्रथम वेद तो ब्रह्मा को दे दिया बने वेद के अधिकारी।


विष्णु को दिया चक्र सुदर्शन लक्ष्मी सी सुन्दर नारी।।


धन्य धन्य भोलेनाथ बाँट दिए तीनो लोक पल भर में।


ऐसा दीन दयाल मेरे शम्भू भरो खजाना पलभर में।।


इन्द्र को दिया कामधेनु और ऐरावत सा बलकारी।


कुबेर को कर दिया आपने सारी सम्पत्ति का अधिकारी।।


धन्य धन्य भोलेनाथ बाँट दिए तीनो लोक पल भर में।


ऐसा दीन दयाल मेरे शम्भू भरो खजाना पलभर में।।


अपने पास पात्र नहीं रखा, मग्न रहे बाघाम्बर में।


ऐसे दीनदयाल मेरे शम्भू भरो खजाना पल भर में।।


धन्य धन्य भोलेनाथ बाँट दिए तीनो लोक पल भर में।


ऐसा दीन दयाल मेरे शम्भू भरो खजाना पलभर में।।


अमृत तो देवताओं को दे दिया, आप हलाहल पान किया।


ब्रह्म ज्ञान दे दिया उसी को, जिसने शिव तेरा ध्यान किया।।


धन्य धन्य भोलेनाथ बाँट दिए तीनो लोक पल भर में।


ऐसा दीन दयाल मेरे शम्भू भरो खजाना पलभर में।।


भगीरथ को दे दी गंगा, सब जग ने स्नान किया।


बड़े-बड़े पापियों को तारा, पलभर में कल्याण किया।।


आप नशे में मस्त रो, पियो भंग नित खप्पर में।


ऐसे दीन दयाल मेरे शम्भू, भरो खजाना पल भर में।।


धन्य धन्य भोलेनाथ बाँट दिए तीनो लोक पल भर में।


ऐसा दीन दयाल मेरे शम्भू भरो खजाना पलभर में।।


लंका तो रावण को दी, बीस भुजा दस शीश दिए।


रामचन्द्र को धनुष बाण और हनुमत् को जगदीश दिये।।


धन्य धन्य भोलेनाथ बाँट दिए तीनो लोक पल भर में।


ऐसा दीन दयाल मेरे शम्भू भरो खजाना पलभर में।।


मनमोहन को दे दी मोहनी और मुकुट बख्शीश दिए।।


मुक्त हुए काशी के वासी, भक्ति में जगदीश दिए।


वीणा तो नारद को दे दी, हरि भजन को राग दिया।


धन्य धन्य भोलेनाथ बाँट दिए तीनो लोक पल भर में।


ऐसा दीन दयाल मेरे शम्भू भरो खजाना पलभर में।।


ब्राह्मण को कर्मकाण्ड और सन्यासी को त्याग दिया।


जिस पर तुमरी कृपा भई, उसी को अनगन राग दिया।


जिसने ध्याया उसी ने पाया महादेव तेरे वर में।।


धन्य धन्य भोलेनाथ बाँट दिए तीनो लोक पल भर में।


ऐसा दीन दयाल मेरे शम्भू भरो खजाना पलभर में।।



           ।।इति श्री शिव स्तुति स्तोत्रं।।


        ।।जय बोलो शिव शंकरजी जय।।


   ।।जय बोलो उमापति शिवजी की जय।।

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