राशियों की चरादि एवं बही-:गर्भ-द्वार संज्ञादि--को तीन भागों में बांटा गया हैं:
1.चर संज्ञक राशियाँ-की लग्न में चलायमान प्रकृति के कार्य करने चाहिऐ।
2.स्थिर संज्ञक राशियाँ- की लग्न में स्थिर प्रकृति के कार्य करने चाहिऐ।
3.द्विस्वभाव संज्ञक राशियाँ-में चर एवं स्थिर दोनों ही स्वभाव के कार्यों को द्विस्वभाव लग्न में करना चाहिए।
चरादि संज्ञक | राशियाँ |
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1.चर संज्ञा | मेष,कर्क,तुला,मकर |
2.स्थिर संज्ञा | वृषभ,सिंह,वृश्चिक,कुम्भ |
3.द्विस्वभाव संज्ञा | मिथुन, कन्या,धनु,मीन |
राशियों की चरादि एवं बही-:गर्भ-द्वार संज्ञादि का उपयोग एवं गुण निम्नलिखित हैं:
*यदि जातक जिस स्वभाव की राशि में जन्म लेता है ,उसी प्रकार का उसका स्वभाव होता है।
*जिस जातक की जन्म लग्न या जन्म राशि चर संज्ञक हैं और लग्नेश , नवांश एवं राशि चर राशियों में स्थित है, तो जातक चंचल प्रकृति और यात्रा करने का शौकीन होता हैं।
* स्थिर राशि की लग्न है और लग्नेश भी स्थिर राशि में स्थित हो,तो जातक की आदतें स्थिर प्रकृति की होती है और वह एक अक्रियाशील होता है।
*लाभेश या कर्मेश की यह स्थिति हो,तो जातक को चलायमान प्रकृति के यथा ;यात्रा सम्बन्धी कार्यों से लाभ अथवा आजीविका प्राप्त होती हैं।
*केवल जन्म लग्न से विचार करना पर्याप्त नहीं है।चन्द्रमा आदि ग्रह चर, स्थिर आदि जिस प्रकार की राशि में बाहुल्य से होते हैं, उसका प्रभाव भी पड़ता है। फलतः चर राशि में अधिक ग्रह हों,तो विचारशील कम ,क्रियाशील अधिक। स्थिर राशि में अधिक ग्रह हों, तो विचारशील अधिक ,क्रियाशील कम ।
*चर का स्वभाव है शीघ्र क्रोध हो ,शीघ्र प्रसाद हो ।किंतु स्थायी न हो।
*स्थिर का स्वभाव हो तो देर से क्रोध ,विलंब से प्रसाद हो ;परंतु चिरस्थायी हो।
*द्वन्द्व का मिश्र स्वभाव है।
राशियों की बही:-गर्भ-द्वार संज्ञादि-का अर्थ--बही:का अर्थ होता है बाहर, गर्भ का अर्थ है अंदर और द्वार का अर्थ है दरवाजे पर।इस प्रकार से राशियों को तीन भागों में बाँटा गया है:
बही:-गर्भ-द्वार संज्ञक | राशियाँ |
---|---|
1.बही: संज्ञक | मेष,कर्क,तुला,मकर |
2.गर्भ संज्ञक | वृषभ,सिंह,वृश्चिक,कुम्भ |
3.द्वार संज्ञक | मिथुन, कन्या,धनु,मीन |
राशियों की बही:-गर्भ-द्वार संज्ञादि का उपयोग-:खोई हुई वस्तु आदि के प्रश्न के संबंध में प्रश्न कुंडली के अंतर्गत इन संज्ञाओ का उपयोग होता है।
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