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Monday 16 November 2020

सूर्यकृत योग की परिभाषा

सूर्यकृत योग की परिभाषा-:सूर्य से शुभाशुभ योगों का निर्माण होता हैं,उन् योगों को सूर्यकृत योग कहते हैं।


जातक ग्रन्थों में सूर्यकृत योग को विशेष रूप से तीन भागों में बाँटा गया हैं, जो की शुभ योग हैं। जो निम्नलिखित हैं:


1.वेशि सूर्यकृत योग।


2.वाशि सूर्यकृत योग।


3.उभयचरी सूर्यकृत योग।


1. सूर्यकृत वेशि योग की परिभाषा-: जन्म कुंडली में यदि मंगलादि पाँच ग्रहों अर्थात् मंगल, बुध, गुरु, शुक्र अथवा शनि में से  कोई एक या अधिक ग्रह सूर्य से द्वितीय भाव में स्थित होता है, तो उस योग को सूर्यकृत वेशि योग कहते हैं।


सूर्यकृत् वेशि योग के प्रकार-: को दो भागों में बाँटा गया हैं: 1.सूर्यकृत् शुभवेशियोग। 2.सूर्यकृत् पापवेशि योग।1.सूर्यकृत् शुभवेशियोग-:यदि सूर्य से द्वितीय भाव मे शुभ ग्रह हो ,तो सूर्यकृत् शुभवेशियोग का निर्माण होता हैं। 2.सूर्यकृत् पापवेशि योग-:यदि सूर्य से द्वितीय भाव मे पापग्रह हो ,तो सूर्यकृत् पापवेशियोग का निर्माण होता हैं।

 

 यदि सूर्य से द्वितीय भाव में केवल चंद्रमा राहु अथवा केतु स्थित हो, तो सूर्यकृत वेशि योग का निर्माण नहीं होता है।


 सूर्यकृत वेशि योग का फल-: निम्नलिखित शर्तों से भी प्रभावित होता है:


● योगकर्ता ग्रह यदि अपनी स्वराशि,अपने की मित्र राशि, अथवा अपनी उच्च राशि में स्थित हो, तो योग अधिक शुभ फल प्रदान करता है।


योगकर्ता ग्रह यदि शुभ ग्रह हैं,तो शुभ फल अधिक प्राप्त होते हैं।


यदि योग्यकर्ता पाप ग्रह है, तो फलों में भी पापतत्व का समावेश हो जाता है।


सूर्य एवं एवं योग निर्माता ग्रह के बल उनकी नवांशगत स्थिति और ग्रहयुति के आधार पर फल प्रवाहित होते हैं।  षड्बल में  निर्बल, नवांश कुंडली में नीच या शत्रु राशि में  तथा पापग्रहों के साथ स्थित सूर्य एवं योगनिर्माता ग्रह अत्यल्प शुभ फल प्रदान करेंगे।


सूर्यकृत वेशि योग का फल-:इस योग उत्पन्न जातक मध्यम  दृष्टि, सत्य बोलने वाला, लंबा, आलस करने वाला, सब प्रकार सुख भोगने वाला, कम धनवान, ज्यादा मेहनत करने वाला, धीमी गति से चलने वाला, मीठी वाणी से बोलने वाला, भाई बंधुओं से प्रेम रखने वाला, बुद्धिमान,आय और व्यय में समानता रखने वाला, भाग्यशाली, सुखी, गुणवान एवं प्रसिद्ध होता है।


शुभग्रह के आधार पर फल-:यदि शुभग्रहों से इस योग का निर्माण होने पर जातक सुशील,बोलने में चतुर,बिना डरने वाला एवं शत्रुओं को जीतने वाला होता हैं।


पापग्रह के आधार पर फल-:यदि पापग्रहों से इस योग का निर्माण होने पर जातक  बुरे लोगों के साथ रहने वाला,पाप कर्म करने वाला,धन सम्पदा आदि का उपयोग करने वालाहोता हैं।


2. सूर्यकृत वाशि योग की परिभाषा-: जन्म कुंडली में यदि मंगलादि पाँच ग्रहों अर्थात् मंगल, बुध, गुरु, शुक्र अथवा शनि में से  कोई एक या अधिक ग्रह सूर्य से द्वादश भाव में स्थित होता है, तो उस योग को सूर्यकृत वाशि योग कहते हैं।


सूर्यकृत् वाशि योग के प्रकार-: को दो भागों में बाँटा गया हैं: 1.सूर्यकृत् शुभवाशियोग। 2.सूर्यकृत् पापवाशि योग।1.सूर्यकृत् शुभवाशियोग-:यदि सूर्य से द्वादश भाव मे शुभ ग्रह हो ,तो सूर्यकृत् शुभवाशियोग का निर्माण होता हैं। 2.सूर्यकृत् पापवाशि योग-:यदि सूर्य से द्वादश भाव मे पापग्रह हो ,तो सूर्यकृत् पापवाशियोग का निर्माण होता हैं। 

 यदि सूर्य से द्वादश भाव में केवल चंद्रमा राहु अथवा केतु स्थित हो, तो सूर्यकृत वाशि योग का निर्माण नहीं होता है।

 सूर्यकृत वाशि योग का फल-: निम्नलिखित शर्तों से भी प्रभावित होता है:

● योगकर्ता ग्रह यदि अपनी स्वराशि,अपने की मित्र राशि, अथवा अपनी उच्च राशि में स्थित हो, तो योग अधिक शुभ फल प्रदान करता है।

 योगकर्ता ग्रह यदि शुभ ग्रह हैं,तो शुभ फल अधिक प्राप्त होते हैं।

 यदि योग्यकर्ता पाप ग्रह है, तो फलों में भी पापतत्व का समावेश हो जाता है।

 सूर्य एवं एवं योग निर्माता ग्रह के बल उनकी नवांशगत स्थिति और ग्रहयुति के आधार पर फल प्रवाहित होते हैं।  षड्बल में  निर्बल, नवांश कुंडली में नीच या शत्रु राशि में  तथा पापग्रहों के साथ स्थित सूर्य एवं योगनिर्माता ग्रह अत्यल्प शुभ फल प्रदान करेंगे।

सूर्यकृत वाशि योग का फल-:इस योग उत्पन्न जातक कार्य करने में चतुर,दान करने वाला,यशवान्,विद्या एवं बल से युक्त, अच्छी बोली बोलने वाला,याद शक्ति से युक्त,मेहनती,कमजोर शरीर वाला,सुखी,उदार एवं अच्छी जिंदगी बिताने वाला होता हैं।

शुभग्रह के आधार पर फल-:यदि शुभग्रहों से इस योग का निर्माण होने पर जातक दानवान,विद्यावान,मजाक करने वाला, पैसे वाला,बल से युक्त,यशवान एवं सभी प्रकार के सुखों को भोगने वाला होता हैं।

पापग्रह के आधार पर फल-:यदि पापग्रहों से इस योग का निर्माण होने पर जातक विदेश में रहने वाला,कामक्रीड़ा में रुचि वाला,पाप बुद्धि वाला,विकलांग,अधिक नींद लेने वाला,आलस्य से युत और ज्यादा मूर्ख होता हैं।

3. सूर्यकृत उभयचरी योग की परिभाषा-: जन्म कुंडली में यदि सूर्य से द्वितीय और द्वादश भाव मे मंगलादि पाँच ग्रहों अर्थात् मंगल, बुध, गुरु, शुक्र अथवा शनि में से  कोई एक या अधिक ग्रह स्थित होता है, तो उस योग को सूर्यकृत उभयचरी योग कहते हैं।

सूर्यकृत् उभयचरी योग के प्रकार-: को दो भागों में बाँटा गया हैं: 1.सूर्यकृत् शुभउभयचरीयोग। 2.सूर्यकृत् पापउभयचरी योग।1.सूर्यकृत् शुभउभयचरीयोग-:यदि सूर्य से द्वितीय और द्वादश भाव मे शुभ ग्रह हो ,तो सूर्यकृत् शुभउभयचरीयोग का निर्माण होता हैं। 2.सूर्यकृत् पापउभयचरी योग-:यदि सूर्य से द्वितीय और द्वादश भाव मे पापग्रह हो ,तो सूर्यकृत् पापउभयचरी योग का निर्माण होता हैं। 

 यदि सूर्य से द्वितीय और द्वादश भाव में केवल चंद्रमा राहु अथवा केतु स्थित हो, तो सूर्यकृत उभयचरी योग का निर्माण नहीं होता है।

 सूर्यकृत उभयचरी योग का फल-: निम्नलिखित शर्तों से भी प्रभावित होता है:

● योगकर्ता ग्रह यदि अपनी स्वराशि,अपने की मित्र राशि, अथवा अपनी उच्च राशि में स्थित हो, तो योग अधिक शुभ फल प्रदान करता है।

 योगकर्ता ग्रह यदि शुभ ग्रह हैं,तो शुभ फल अधिक प्राप्त होते हैं।

 यदि योग्यकर्ता पाप ग्रह है, तो फलों में भी पापतत्व का समावेश हो जाता है।

 सूर्य एवं एवं योग निर्माता ग्रह के बल उनकी नवांशगत स्थिति और ग्रहयुति के आधार पर फल प्रवाहित होते हैं।  षड्बल में  निर्बल, नवांश कुंडली में नीच या शत्रु राशि में  तथा पापग्रहों के साथ स्थित सूर्य एवं योगनिर्माता ग्रह अत्यल्प शुभ फल प्रदान करेंगे।

सूर्यकृत उभयचरी योग का फल-:इस योग उत्पन्न जातक राजकीय सुख भोगने वाला, अधिक सहनशील एवं भला मानस,स्थिर बुद्धि वाला,कद ठीक,विद्यावान,सभी प्रकार के सुखों एवं धन से युक्त,उत्साह वाला,अच्छा बोलने वाला,सभी को अच्छा लगने वाला, भाइयो मदद करने वाला एवं प्रसिद्ध होता हैं।

शुभग्रह के आधार पर फल-:यदि शुभग्रहों से इस योग का निर्माण होने पर जातक धनवान, सुखी,सुशील,राजकीय कार्य मे सलंग्न और दयावान होता हैं।

पापग्रह के आधार पर फल-:यदि पापग्रहों से इस योग का निर्माण होने पर जातक पपकार्य करने वाला,बीमारियों से पीड़ित, दूसरों के कार्य करने वाला एवं गरीब होता हैं।




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