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Friday 28 January 2022

प्राण रक्षक या मुक्ति प्राप्ति या शिव सायुज्य कवच स्तोत्रं (Pran Rakshak or Mukti Prapti or Shiva Sayujya Kavach Stotram)




प्राण रक्षक या मुक्ति प्राप्ति या शिव सायुज्य कवच स्तोत्रं (Pran Rakshak or Mukti Prapti or Shiva Sayujya Kavach Stotram):-मनुष्य के जीवन की रक्षा करने एवं जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति के लिए ऋषि-मुनियों ने अपनी साधना शक्ति के द्वारा भगवान शिवजी को खुश करके उनसे आशीर्वाद स्वरूप प्राण रक्षक कवच या मुक्ति प्राप्ति कवच या शिव सायुज्य कवच को प्राप्त किया था। जिससे मनुष्य के जन्म लेने व मृत्यु से मुक्ति मिल सके और मोक्षगति प्राप्त हो जावे।


प्राण रक्षक या मुक्ति प्राप्ति या शिव सायुज्य कवच का अर्थ:-मनुष्य के जीवन की रक्षा करके जन्म लेने व मरण से मुक्ति देकर मोक्षगति देने वाले कवच को प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं या मुक्ति प्राप्ति कवच या शिव सायुज्य कवच कहते हैं।

दूसरों के सामने प्रकट न करने योग्य होने वाला हैं, जो कि जीवन की रक्षा करने वाला होने से उपयोगी भी होता हैं, इसलिए मनुष्य को अपने जीवन की रक्षा करने के लिए इस स्तोत्रं का वांचन नियमित रूप से करना चाहिए।


श्रावण मास प्राणरक्षक एवं मुक्ति प्राप्ति कवच के लिए पूजा सामग्री:-कुमकुम, अबीर, गुलाल, धूपबत्ती, केशर, अक्षत, दीपक, फूल, नैवेद्य, फल, अगरबत्ती, पारद शिवलिंग और मोक्षदा माला आदि उपयोग में ली जाती हैं।


श्रावण मास प्राणरक्षक एवं मुक्ति प्राप्ति कवच के वांचन करने की विधि:-योगी जो तपस्या करने वाले साधना में लीन रहने वाले होते हैं, उनके साथ ही जो मनुष्य साधना में रुचि रखते है, वे सभी प्राण रक्षक और मुक्ति प्राप्ति के लिए प्राण रक्षक कवच का वांचन कर सकते हैं।

◆जो मनुष्य प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं के वांचन को शुरू करना चाहते हैं, उनको श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं का वांचन शुरू करना चाहिए।

◆श्रावण मास की शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि को प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं का वांचन पूर्ण होकर निष्पादन करना चाहिए।

◆मनुष्य जिस दिन को प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं के वांचन को शुरू करना होता हैं उस दिन ब्रह्ममुहूर्त की वेला में उठना चाहिए।

◆मनुष्य को दैनिक चर्या को पूर्ण करना चाहिए।

◆साफ एवं धुले हुए कपड़ों को पहनना चाहिए।

◆प्राण रक्षक कवच के वांचन की जगह को स्वच्छ करना चाहिए।

◆उसके बाद में भगवान शिवजी की प्रतिमा या चित्र को, रजत या ताम्र धातु की तश्तरी में पारद शिवलिंग के साथ मोक्षदा माला के साथ स्थापित करना चाहिए।

◆कुश की बिछावन या ऊनि बिछावन को बिछाकर पूर्व दिशा में मुहं करके बैठना चाहिए।

◆फिर पंचोपचार कर्म जैसे-स्नान, केसर, अक्षत, पुष्प, गन्ध, सुंगधित इत्र, यज्ञोपवीत, बिल्व, धूप, दिप और फल व नैवेद्य को अर्पण करते समय "ऊँ नमः शिवायः" "केसर समर्पयामि" बोलते हैं।  

◆उस मोक्षदा माला एवं भगवान शिवजी का पूजन करना चाहिए।

◆फिर अपनी आंखें बन्ध करके शिवजी का ध्यान करके प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं के वांचन की दृढ़ प्रतिज्ञा करनी चाहिए। 

◆मोक्षदा माला के द्वारा वांचन करना चाहिए।

◆फिर प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए। 

◆इस तरह से मनुष्य को हमेशा पांच बार प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए।

◆अपने गले में  मोक्षदा माला को पहनना  चाहिए।

◆इस तरह से नियमित रूप से साधना कर्म को तीस दिन तक करना चाहिए।

◆पारद शिवलिंग को अपने निवास स्थान में पूजा की जगह पर रख देना चाहिए।


श्रावण मास प्राणरक्षक एवं मुक्ति प्राप्ति कवच स्तोत्रं पाठ करने के लिए विनियोग:-विनियोग श्रावण मास में प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं पाठ के वांचन से पूर्व विनियोग को एक ही बार वांचन करना चाहिए।

विनियोग का अर्थ:-वैदिक कार्यों में या फल को पाने हेतु मंत्रों का उपयोग करने के लिए दृढ़ इरदा करने को विनियोग कहते हैं।

भैरव उवाच:-भैरवजी कहते है, हे साधक मनुष्य! प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं पाठ करने से पूर्व दृढ़ इरदा रखते हुए मन में देव को धारण करना चाहिए।

वक्ष्यामिदेव कवचं मंगलं प्राणरक्षकम् अहोरात्रं महादेवरक्षार्थ देवमण्डितम् अस्य श्री महादेवकवचस्य वामदेव ऋषिः पंक्तिछन्दः सौः बीजं रुद्रो देवता सर्वाथसाधने विनियोगः।।

अर्थात्:-भैरवजी समझाते हुए, कहते हैं जो साधक मनुष्य अहोरात्र में महादेवजी को स्थापित करके कवच स्तोत्रं का वांचन करते हैं, तब यह कवच अपने प्रभाव से जीवन की रक्षा करते हुए आनन्द को देने वाला होता हैं। श्री प्राण रक्षक कवच स्तोत्रम् श्लोकों में मंत्रों की रचना वामदेव ऋषिवर ने की थी, जिसमें पंक्ति छंद हैं, सौः बीजं रूप में हैं और रुद्र देवता के रूप में हैं, जो कोई प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं के श्लोकों में वर्णित मंत्रों के द्वारा इनके देवता को याद करते हुए वांचन का संकल्प करता हैं, उसको सभी जगहों पर जीत, सभी तरह की सिद्धि, ज्ञान के क्षेत्र में सिद्धि और आने वाले विघ्नों से मुक्ति आदि देने वाला माध्यम हैं।


प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं का पाठ:-प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं पाठ को हमेशा पांच बार वांचन करना चाहिए।

रुद्रो मामग्रतः पातु पृष्ठत्ः पातु शंकरः।

कपर्दी दक्षिणे पातु वामपार्श्वे तथा हरः।।१।।

शिवः शिरसि मां पातु ललाटे नीललोहितः।

नेत्रं मे त्र्यंम्बकः पातु बाहुयुग्मं महेश्वरः।।२।।

हृदये च महादेव ईश्वरश्च तथेदरे।

नाभौ कुक्षौ कटिस्थानने पदौ पातु महेश्वरः।।३।।

सर्व रक्षतु भूतेशः सर्वगात्राणि मे हरः।

पाशं शूलञ्च दिव्यास्त्रं खड्गंवज्र तथैव च।।४।।

नमस्कारोमि भूतेश रक्ष मां जगदीश्वर।

पापेभ्यो नरकेभ्यश्च त्राहि मां भक्तवत्सल।।५।।

जन्म मृत्यंजरा व्याधिकामक्रोधादपि प्रभो।

लाभमहान्महादेव रक्ष मां त्रिदेश्वर।।६।।

त्वं गतिस्त्वं मतिश्चैव त्वं भूमिस्त्वं परायणः।

कायेन मनसा वाचा त्वयि भक्तिर्दृढास्तु में।।७।।


फलश्रुति का अर्थ:-जिसमें पूर्ण स्तोत्र के वांचन से एवं सुनने से मिलने वाले लाभ या फायदे के बारे गुणगान होता हैं, उसे फलश्रुति कहते हैं।

इत्येतद्रुद्रकवचं पाठनात्पाप नाशनम्।

महादेवप्रसादेन भैंरवेन च कीर्तितम्।

न तस्य पापं देहेषु न भयं तस्य विद्यते।।

प्राप्नोति सुखरारोग्यं पुत्रमायुःवर्द्धनम्।

पुत्रार्थी लाभते पुत्रन्धनार्थी धनमाप्नुयात्।।

विद्यार्थी लाभते विद्यां मोक्षार्थी मोक्षमेव च।

व्याधितो मुच्यते रोगाद्र्बंधौ मुच्यते बंधनात्।।

ब्रह्महत्यादि पापं च पठनादेव नश्यति।।

इत्येतद्रुद्रकवचं पाठनात्पाप नाशनमँ।

महादेवप्रसादेन भैंरवेन च कीर्तितम्।

अर्थात्:-प्राण रक्षक कवच या मुक्ति प्राप्ति कवच या शिव सायुज्य कवच का पाठ करने से महादेवजी पाप को हरण करके डर से मुक्ति प्रदान करते हैं, सुख, आरोग्य, पुत्र, आयु को बढ़ाते हैं, पुत्रवान को पुत्र, धनवान को धन, विद्यार्थी को विद्या और मोक्ष की चाहत रखने वाले को मोक्ष प्रदान करते हैं। व्याधि से मुक्त करके बंधन पड़े को बन्धन से मुक्त करवाते हैं। ब्रह्महत्या जनित पाप को नष्ट करते हैं।


क्रियोड्डीश तंत्र के अनुसार:-क्रियोड्डीश तंत्र में वर्णित पाठ के विषय बताया गया है, की यह पाठ बहुत ही दुसरो के सामने प्रकट करने वाला नहीं होता हैं, जिससे किसी भी कार्य में पूर्ण रूप से कामयाबी प्रदान करवाने वाला है। 


प्राण रक्षक एवं मुक्ति कवच स्तोत्रम् का लाभ(Benefit of Prana Rakshak and Mukti Kavach Stotram):-मनुष्य "प्राण रक्षक एवं मुक्ति कवच स्तोत्रं" का वांचन नियमित रूप से करते रहने पर निम्नलिखित फायदे मिलते हैं, जो इस तरह हैं- 

◆प्राण रक्षक कवच के वांचन से बुरे व गलत कार्यों से मुक्ति प्राप्त होती हैं।

◆शिवजी का आशीर्वाद दिलवाने में सहायक होता हैं।

◆बिना मतलब के डर से मुक्ति प्रदान करता हैं।

◆जीवनकाल में जरूरत की सुख-सुविधाओं को प्रदान करता हैं। 

◆शारीरिक एवं मानसिक बीमारियों से मुक्ति प्रदान करता हैं।

◆पुत्र सन्तान सुख एवं पुत्र सन्तान में बढ़ोतरी करता हैं।

◆मोक्षगति प्रदान करता हैं।

◆जीवन में आने समस्त तरह की मुश्किलों से राहत प्रदान करता हैं।

◆उम्र में वृद्धि करने वाला होता हैं।

◆गरीबी को दूर करके धनवान बनाता हैं।

◆विद्यार्थी को विद्या प्रदान करता हैं।

◆ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति प्रदान करवाता हैं।

◆असामयिक मृत्यु को दूर करके उम्र में बढ़ोतरी प्रदान करता हैं।

◆बन्धन से मुक्ति प्रदान करता हैं।



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