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Tuesday 12 October 2021

गोपाल सहस्त्रनाम स्तोत्रं(Gopal Sahasranama Stotram)

                      




गोपाल सहस्त्रनाम स्तोत्रं(Gopal Sahasranama Stotram):-गोपाल सहस्त्रनाम स्तोत्रं में भगवान कृष्णजी के समस्त नामों का उल्लेख मिलता है, जिससे एक जगह पर ही समस्त नामों का उच्चारण करके अपने जीवन को मोक्ष की ओर ले जा सकते है। इसलिए हमारे ऋषि-मुनियों के द्वारा ही गोपाल सहस्त्रनाम स्तोत्रं की रचना की थी। मनुष्य के जीवन में अलग-अलग अपने श्रीकृष्णजी के प्रति जो श्रद्धा भाव रखते है, उनको इस स्तोत्रं का वांचन नियमित रूप से करते रहने पर अच्छे फलों की प्राप्ति होती है। जो मनुष्य गोपाल सहस्त्रनाम स्तोत्रं का वांचन करते है तो उनको सन्तान सम्बन्धित समस्याओं, आर्थिक स्थिति में सुधार, समस्त तरह की बीमारियों से मुक्ति, समस्त तरह के कर्जो से मुक्ति और जीवन में आने वाली समस्त तरह के विघ्नों से मुक्ति मिल जाती हैं। इसलिए मनुष्य को इस स्तोत्रं का वांचन श्रीकृष्णजी के समस्त नामों का करने से फल की प्राप्ति होती हैं।





।।अथ श्री गोपाल सहस्त्र नाम स्तोत्रं।।

अथ ध्यानम:-जब गोपाल सहस्त्र नाम स्तोत्रं का वांचन शुरू करने से पूर्व श्रीगोपाल जी को मन ही मन में याद करते हुए उनका ध्यान करना चाहिए।

कस्तूरीतिलकं ललाटपटले वक्ष:स्थले कौस्तुभं

नासाग्रे वरमौत्तिकं करतले वेणुं करे कंकणम।

सर्वाड़्गे हरिचन्दनं सुललितं कण्ठे च मुक्तावलि 

र्गोपस्रीपरिवेष्टितो विजयते गोपालचूडामणि:।।१।।


फुल्लेन्दीवरकान्तिमिन्दुवदनं बर्हावतंसप्रियं।

श्रीवत्साड़्कमुदारकौस्तुभधरं पीताम्बरं सुन्दरम।।

गोपीनां नयनोत्पलार्चिततनुं गोगोपसंघावृतं स

गोविन्दं कलवेणुवादनपरं दिव्याड़्गभूषं भजे।।२।।


इति ध्यानम:-जब मनुष्य के द्वारा श्रीगोपाल जी का ध्यान करने के बाद उस ध्यान मुद्रा से मुक्त होकर स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए।


ऊँ क्लीं देव: कामदेव: कामबीजशिरोमणि:।

श्रीगोपालको महीपाल: सर्वव्र्दान्तपरग:।।१।।


धरणीपालको धन्य: पुण्डरीक: सनातन:।

गोपतिर्भूपति: शास्ता प्रहर्ता विश्वतोमुख:।।२।।


आदिकर्ता महाकर्ता महाकाल: प्रतापवान।

जगज्जीवो जगद्धाता जगद्भर्ता जगद्वसु:।।३।।


मत्स्यो भीम: कुहूभर्ता हर्ता वाराहमूर्तिमान।

नारायणो ह्रषीकेशो गोविन्दो गरुडध्वज:।।४।।


गोकुलेन्द्रो महाचन्द्र: शर्वरीप्रियकारक:।

कमलामुखलोलाक्ष: पुण्डरीक शुभावह:।।५।।


दुर्वासा: कपीलो भौम: सिन्धुसागरसड़्गम:।

गोविन्दो गोपतिर्गोत्र: कालिन्दीप्रेमपूरक:।।६।।


गोपस्वामी गोकुलेन्द्रो गोवर्धनवरप्रद:।

नन्दादिगोकुलत्राता दाता दारिद्रयभंजन:।।७।।


सर्वमंगलदाता च सर्वकामप्रदायक:।

आदिकर्ता महीभर्ता सर्वसागरसिन्धुज:।।८।।


गजगामी गजोद्धारी कामी कामकलानिधि:।

कलंकरहितश्चन्द्रो बिम्बास्यो बिम्बसत्तम:।।९।।


मालाकार: कृपाकार: कोकिलास्वरभूषण:।

रामो नीलाम्बरो देवो हली दुर्दममर्दन:।।१०।।


सहस्राक्षपुरीभेत्ता महामारीविनाशन:।

शिव: शिवतमो भेत्ता बलारातिप्रपूजक:।।११।।


कुमारीवरदायी च वरेण्यो मीनकेतन:।

नरो नारायणो धीरो राधापतिरुदारधी:।।१२।।


श्रीपति: श्रीनिधि: श्रीमान मापति: प्रतिराजहा।

वृन्दापति: कुलग्रामी धामी ब्रह्मसनातन:।।१३।।


रेवतीरमणो रामाश्चंचलश्चारुलोचन:।

रामायणशरीरोsयं रामी राम: श्रिय:पति:।।१४।।


शर्वर: शर्वरी शर्व: सर्वत्रशुभदायक:।

राधाराधायितो राधी राधाचित्तप्रमोदक:।।१५।।


राधारतिसुखोपेतो राधामोहनतत्पर:।

राधावशीकरो राधाह्रदयांभोजषट्पद:।।१६।।


राधालिंगनसंमोहो राधानर्तनकौतुक:।

राधासंजातसम्प्रीती राधाकामफलप्रद:।।१७।।


वृन्दापति: कोशनिधिर्लोकशोकविनाशक:।

चन्द्रापतिश्चन्द्रपतिश्चण्डकोदण्दभंजन:।।१८।।


रामो दाशरथी रामो भृगुवंशसमुदभव:।

आत्मारामो जितक्रोधो मोहो मोहान्धभंजन।।१९।।


वृषभानुर्भवो भाव: काश्यपि: करुणानिधि:।

कोलाहलो हली हाली हेली हलधरप्रिय:।।२०।।


राधामुखाब्जमार्तण्डो भास्करो विरजो विधु:।

विधिर्विधाता वरुणो वारुणो वारुणीप्रिय:।।२१।।


रोहिणीह्रदयानन्दी वसुदेवात्मजो बलि:।

नीलाम्बरो रौहिणेयो जरासन्धवधोsमल:।।२२।।


नागो नवाम्भोविरुदो वीरहा वरदो बली।

गोपथो विजयी विद्वान शिपिविष्ट: सनातन:।।२३।।


पर्शुरामवचोग्राही वरग्राही श्रृगालहा।

दमघोषोपदेष्टा च रथग्राही सुदर्शन:।।२४।।


वीरपत्नीयशस्राता जराव्याधिविघातक:।

द्वारकावासतत्त्वज्ञो हुताशनवरप्रद:।।२५।।


यमुनावेगसंहारी नीलाम्बरधर: प्रभु:।

विभु: शरासनो धन्वी गणेशो गणनायक:।।२६।।


लक्ष्मणो लक्षणो लक्ष्यो रक्षोवंशविनशन:।

वामनो वामनीभूतो बलिजिद्विक्रमत्रय:।।२७।।


यशोदानन्दन: कर्ता यमलार्जुनमुक्तिद:।

उलूखली महामानी दामबद्धाह्वयी शमी।।२८।।


भक्तानुकारी भगवान केशवोsचलधारक:।

केशिहा मधुहा मोही वृषासुरविघातक:।।२९।।


अघासुरविनाशी च पूतनामोक्षदायक:।

कुब्जाविनोदी भगवान कंसमृत्युर्महामखी।।३०।।


अश्वमेधो वाजपेयो गोमेधो नरमेधवान।

कन्दर्पकोटिलावण्यश्चन्द्रकोटिसुशीतल:।।३१।।


रविकोटिप्रतीकाशो वायुकोटिमहाबल:।

ब्रह्मा ब्रह्माण्डकर्ता च कमलावांछितप्रद:।।३२।।


कमली कमलाक्षश्च कमलामुखलोलुप:।

कमलाव्रतधारी च कमलाभ: पुरन्दर:।।३३।।


सौभाग्याधिकचित्तोsयं महामायी महोत्कट:।

तारकारि: सुरत्राता मारीचक्षोभकारक:।।३४।।


विश्वामित्रप्रियो दान्तो रामो राजीवलोचन:।

लंकाधिपकुलध्वंसी विभिषणवरप्रद:।।३५।।


सीतानन्दकरो रामो वीरो वारिधिबन्धन:।

खरदूषणसंहारी साकेतपुरवासन:।।३६।।


चन्द्रावलीपति: कूल: केशी कंसवधोsमर:।

माधवी मधुहा माध्वी माध्वीको माधवो मधु:।।३७।।


मुंजाटवीगाहमानो धेनुकारिर्धरात्मज:।

वंशी वटबिहारी च गोवर्धनवनाश्रय:।।३८।।


तथा तालवनोद्देशी भाण्डीरवनशंखहा।

तृणावर्तकथाकारी वृषभनुसुतापति:।।३९।।


राधाप्राणसमो राधावदनाब्जमधुव्रत:।

गोपीरंजनदैवज्ञो लीलाकमलपूजित:।।४०।।


क्रीडाकमलसन्दोहो गोपिकाप्रीतिरंजन:।

रंजको रंजनो रड़्गो रड़्गी रंगमहीरुह।।४१।।


काम: कामारिभक्तोsयं पुराणपुरुष: कवि:।

नारदो देवलो भीमो बालो बालमुखाम्बुज:।।४२।।


अम्बुजो ब्रह्मसाक्षी च योगीदत्तवरो मुनि:।

ऋषभ: पर्वतो ग्रामो नदीपवनवल्लभ:।।४३।।


पद्मनाभ: सुरज्येष्ठो ब्रह्मा रुद्रोsहिभूषित:।

गणानां त्राणकर्ता च गणेशो ग्रहिलो ग्रही।।४४।।


गणाश्रयो गणाध्यक्ष: क्रोडीकृतजगत्रय:।

यादवेन्द्रो द्वारकेन्द्रो मथुरावल्लभो धुरी।।४५।।


भ्रमर: कुन्तली कुन्तीसुतरक्षी महामखी।

यमुनावरदाता च कश्यपस्य वरप्रद:।।४६।।


शड़्खचूडवधोद्दामो गोपीरक्षणतत्पर:।

पांचजन्यकरो रामी त्रिरामी वनजो जय:।।४७।।


फाल्गुन: फाल्गुनसखो विराधवधकारक:।

रुक्मिणीप्राणनाथश्च सत्यभामाप्रियंकर:।।४८।।


कल्पवृक्षो महावृक्षो दानवृक्षो महाफल:।

अंकुशो भूसुरो भामो भामको भ्रामको हरि:।।४९।।


सरल: शाश्वत: वीरो यदुवंशी शिवात्मक:।

प्रद्युम्नबलकर्ता च प्रहर्ता दैत्यहा प्रभु:।।५०।।


महाधनो महावीरो वनमालाविभूषण:।

तुलसीदामशोभाढयो जालन्धरविनाशन:।।५१।।


शूर: सूर्यो मृकण्डश्च भास्करो विश्वपूजित:।

रविस्तमोहा वह्निश्च वाडवो वडवानल:।।५२।।


दैत्यदर्पविनाशी च गरुड़ो गरुडाग्रज:।

गोपीनाथो महीनाथो वृन्दानाथोsवरोधक:।।५३।।


प्रपंची पंचरूपश्च लतागुल्मश्च गोपति:।

गंगा च यमुनारूपो गोदा वेत्रवती तथा।।५४।।


कावेरी नर्मदा तापी गण्दकी सरयूस्तथा।

राजसस्तामस: सत्त्वी सर्वांगी सर्वलोचन:।।५५।।


सुधामयोsमृतमयो योगिनीवल्लभ: शिव:।

बुद्धो बुद्धिमतां श्रेष्ठोविष्णुर्जिष्णु: शचीपति:।।५६।।


वंशी वंशधरो लोको विलोको मोहनाशन:।

रवरावो रवो रावो बालो बालबलाहक:।।५७।।


शिवो रुद्रो नलो नीलो लांगुली लांगुलाश्रय:।

पारद: पावनो हंसो हंसारूढ़ो जगत्पति:।।५८।।


मोहिनीमोहनो मायी महामायो महामखी।

वृषो वृषाकपि: काल: कालीदमनकारक:।।५९।।


कुब्जभाग्यप्रदो वीरो रजकक्षयकारक:।

कोमलो वारुणो राज जलदो जलधारक:।।६०।।


हारक: सर्वपापघ्न: परमेष्ठी पितामह:।

खड्गधारी कृपाकारी राधारमणसुन्दर:।।६१।।


द्वादशारण्यसम्भोगी शेषनागफणालय:।

कामश्याम: सुख: श्रीद: श्रीपति: श्रीनिधि: कृति:।।६२।।


हरिर्हरो नरो नारो नरोत्तम इषुप्रिय:।

गोपालो चित्तहर्ता च कर्ता संसारतारक:।।६३।।


आदिदेवो महादेवो गौरीगुरुरनाश्रय:।

साधुर्मधुर्विधुर्धाता भ्राताsक्रूरपरायण:।।६४।।


रोलम्बी च हयग्रीवो वानरारिर्वनाश्रय:।

वनं वनी वनाध्यक्षो महाबंधो महामुनि:।।६५।।


स्यमन्तकमणिप्राज्ञो विज्ञो विघ्नविघातक:।

गोवर्धनो वर्धनीयो वर्धनी वर्धनप्रिय:।।६६।।


वर्धन्यो वर्धनो वर्धी वार्धिन्य: सुमुखप्रिय:।

वर्धितो वृद्धको वृद्धो वृन्दारकजनप्रिय:।।६७।।


गोपालरमणीभर्ता साम्बुकुष्ठविनाशन:।

रुक्मिणीहरण: प्रेमप्रेमी चन्द्रावलीपति:।।६८।।


श्रीकर्ता विश्वभर्ता च नारायणनरो बली।

गणो गणपतिश्चैव दत्तात्रेयो महामुनि:।।६९।।


व्यासो नारायणो दिव्यो भव्यो भावुकधारक:।

श्व: श्रेयसं शिवं भद्रं भावुकं भविकं शुभम।।७०।।


शुभात्मक: शुभ: शास्ता प्रशस्ता मेघनादहा।

ब्रह्मण्यदेवो दीनानामुद्धारकरणक्षम:।।७१।।


कृष्ण: कमलपत्राक्ष: कृष्ण: कमललोचन:।

कृष्ण: कामी सदा कृष्ण: समस्तप्रियकारक:।।७२।।


नन्दो नन्दी महानन्दी मादी मादनक: किली।

मिली हिली गिली गोली गोलो गोलालयी गुली।।७३।।


गुग्गुली मारकी शाखी वट: पिप्पलक: कृती।

म्लेक्षहा कालहर्ता च यशोदायश एव च।।७४।।


अच्युत: केशवो विष्णुर्हरि: सत्यो जनार्दन:।

हंसो नारायणो लीलो नीलो भक्तिपरायण:।।७५।।


जानकीवल्लभो रामो विरामो विघ्ननाशन:।

सहस्रांशुर्महाभानुर्वीरबाहुर्महोदधि:।।७६।।


समुद्रोsब्धिरकूपार: पारावार: सरित्पति:।

गोकुलानन्दकारी च प्रतिज्ञापरिपालक:।।७७।।


सदाराम: कृपारामो महारामो धनुर्धर:।

पर्वत: पर्वताकारो गयो गेयो द्विजप्रिय:।।७८।।


कमलाश्वतरो रामो रामायणप्रवर्तक:।

द्यौदिवौ दिवसो दिव्यो भव्यो भाविभयापह:।।७९।।


पार्वतीभाग्यसहितो भ्राता लक्ष्मीविलासवान।

विलासी साहसी सर्वी गर्वी गर्वितलोचन:।।८०।।


मुरारिर्लोकधर्मज्ञो जीवनो जीवनान्तक:।

यमो यमादिर्यमनो यामी यामविधायक:।।८१।।


वसुली पांसुली पांसुपाण्डुरर्जुनवल्लभ:।

ललिताचन्द्रिकामाली माली मालाम्बुजाश्रय:।।८२।।


अम्बुजाक्षो महायज्ञो दक्षश्चिन्तामणिप्रभु:।

मणिर्दिनमणिश्चैव केदारो बदरीश्रय:।।८३।।


बदरीवनसम्प्रीतो व्यास: सत्यवतीसुत:।

अमरारिनिहन्ता च सुधासिन्धुर्विधूदय:।।८४।।


चन्द्रो रवि: शिव: शूली चक्री चैव गदाधर:।

श्रीकर्ता श्रीपति: श्रीद: श्रीदेवो देवकीसुत:।।८५।।


श्रीपति: पुण्डरीकाक्ष: पद्मनाभो जगत्पति:।

वासुदेवोsप्रमेयात्मा केशवो गरुडध्वज:।।८६।।


नारायण: परं धाम देवदेवो महेश्वर:।

चक्रपाणि: कलापूर्णो वेदवेद्यो दयानिधि:।।८७।।


भगवान सर्वभूतेशो गोपाल: सर्वपालक:।

अनन्तो निर्गुणोsनन्तो निर्विकल्पो निरंजन:।।८८।।


निराधारो निराकारो निराभासो निराश्रय:।

पुरुष: प्रणवातीतो मुकुन्द: परमेश्वर:।।८९।।


क्षणावनि: सर्वभौमो वैकुण्ठो भक्तवत्सल:।

विष्णुर्दामोदर: कृष्णो माधवो मथुरापति:।।९०।।


देवकीगर्भसम्भूतयशोदावत्सलो हरि:।

शिव: संकर्षण: शंभुर्भूतनाथो दिवस्पति:।।९१।।


अव्यय: सर्वधर्मज्ञो निर्मलो निरुपद्रव:।

निर्वाणनायको नित्योsनिलजीमूतसन्निभ:।।९२।।


कालाक्षयश्च सर्वज्ञ: कमलारूपतत्पर:।

ह्रषीकेश: पीतवासा वासुदेवप्रियात्मज:।।९३।।


नन्दगोपकुमारार्यो नवनीताशन: प्रभु:।

पुराणपुरुष: श्रेष् शड़्खपाणि: सुविक्रम:।।९४।।


अनिरुद्धश्वक्ररथ: शार्ड़्गपाणिश्चतुर्भुज:।

गदाधर: सुरार्तिघ्नो गोविन्दो नन्दकायुध:।।९५।।


वृन्दावनचर: सौरिर्वेणुवाद्यविशारद:।

तृणावर्तान्तको भीमसाहसो बहुविक्रम:।।९६।।


सकटासुरसंहारी बकासुरविनाशन:।

धेनुकासुरसड़्घात: पूतनारिर्नृकेसरी।।९७।।


पितामहो गुरु: साक्षी प्रत्यगात्मा सदाशिव:।

अप्रमेय: प्रभु: प्राज्ञोsप्रतर्क्य: स्वप्नवर्धन:।।९८।।


धन्यो मान्यो भवो भावो धीर: शान्तो जगदगुरु:।

अन्तर्यामीश्वरो दिव्यो दैवज्ञो देवता गुरु:।।९९।।


क्षीराब्धिशयनो धाता लक्ष्मीवाँल्लक्ष्मणाग्रज:

धात्रीपतिरमेयात्मा चन्द्रशेखरपूजित:।।१००।।


लोकसाक्षी जगच्चक्षु: पुण्य़चारित्रकीर्तन:।

कोटिमन्मथसौन्दर्यो जगन्मोहनविग्रह:।।१०१।।


मन्दस्मिततमो गोपो गोपिका परिवेष्टित:।

फुल्लारविन्दनयनश्चाणूरान्ध्रनिषूदन:।।१०२।।


इन्दीवरदलश्यामो बर्हिबर्हावतंसक:।

मुरलीनिनदाह्लादो दिव्यमाल्यो वराश्रय:।।१०३।।


सुकपोलयुग: सुभ्रूयुगल: सुललाटक:।

कम्बुग्रीवो विशालाक्षो लक्ष्मीवान शुभलक्षण:।।१०४।।


पीनवक्षाश्चतुर्बाहुश्चतुर्मूर्तीस्त्रिविक्रम:।

कलंकरहित: शुद्धो दुष्टशत्रुनिबर्हण:।।१०५।।


किरीटकुण्डलधर: कटकाड़्गदमण्डित:

मुद्रिकाभरणोपेत: कटिसूत्रविराजित:।।१०६।।


मंजीररंजितपद: सर्वाभरणभूषित:।

विन्यस्तपादयुगलो दिव्यमंगलविग्रह:।।१०७।।


गोपिकानयनानन्द: पूर्णश्चन्द्रनिभानन:।

समस्तजगदानन्दसुन्दरो लोकनन्दन:।।१०८।।


यमुनातीरसंचारी राधामन्मथवैभव:।

गोपनारीप्रियो दान्तो गोपिवस्त्रापहारक:।।१०९।।


श्रृंगारमूर्ति: श्रीधामा तारको मूलकारणम।

सृष्टिसंरक्षणोपाय: क्रूरासुरविभंजन।।११०।।


नरकासुरहारी च मुरारिर्वैरिमर्दन:।

आदितेयप्रियो दैत्यभीकरश्चेन्दुशेखर:।।१११।।


जरासन्धकुलध्वंसी कंसाराति: सुविक्रम:।

पुण्यश्लोक: कीर्तनीयो यादवेन्द्रो जगन्नुत:।।११२।।


रुक्मिणीरमण: सत्यभामाजाम्बवतीप्रिय:।

मित्रविन्दानाग्नजितीलक्ष्मणासमुपासित:।।११३।।


सुधाकरकुले जातोsनन्तप्रबलविक्रम:।

सर्वसौभाग्यसम्पन्नो द्वारकायामुपस्थित:।।११४।।


भद्रसूर्यसुतानाथो लीलामानुषविग्रह:।

सहस्रषोडशस्त्रीशो भोगमोक्षैकदायक:।।११५।।


वेदान्तवेद्य: संवेद्यो वैधब्रह्माण्डनयक:।

गोवर्धनधरो नाथ: सर्वजीवदयापर:।।११६।।


मूर्तिमान सर्वभूतात्मा आर्तत्राणपरायण:।

सर्वज्ञ: सर्वसुलभ: सर्वशास्त्रविशारद:।।११७।।


षडगुणैश्चर्यसम्पन्न: पूर्णकामो धुरन्धर:।

महानुभाव: कैवल्यदायको लोकनायक:।।११८।।


आदिमध्यान्तरहित: शुद्धसात्त्विकविग्रह:।

आसमानसमस्तात्मा शरणागतवत्सल:।।११९।।


उत्पत्तिस्थितिसंहारकारणं सर्वकारणम।

गंभीर: सर्वभावज्ञ: सच्चिदानन्दविग्रह:।।१२०।।


विष्वक्सेन: सत्यसन्ध: सत्यवान्सत्यविक्रम:।

सत्यव्रत: सत्यसंज्ञ सर्वधर्मपरायण:।।१२१।।


आपन्नार्तिप्रशमनो द्रौपदीमानरक्षक:।

कन्दर्पजनक: प्राज्ञो जगन्नाटकवैभव:।।१२२।।


भक्तिवश्यो गुणातीत: सर्वैश्वर्यप्रदायक:।

दमघोषसुतद्वेषी बाण्बाहुविखण्डन:।।१२३।।


भीष्मभक्तिप्रदो दिव्य: कौरवान्वयनाशन:।

कौन्तेयप्रियबन्धुश्च पार्थस्यन्दनसारथि:।।१२४।।


नारसिंहो महावीरस्तम्भजातो महाबल:।

प्रह्लादवरद: सत्यो देवपूज्यो भयंकर:।।१२५।।


उपेन्द्र: इन्द्रावरजो वामनो बलिबन्धन:।

गजेन्द्रवरद: स्वामी सर्वदेवनमस्कृत:।।१२६।।


शेषपर्यड़्कशयनो वैनतेयरथो जयी।

अव्याहतबलैश्वर्यसम्पन्न: पूर्णमानस:।।१२७।।


योगेश्वरेश्वर: साक्षी क्षेत्रज्ञो ज्ञानदायक:।

योगिह्रत्पड़्कजावासो योगमायासमन्वित:।।१२८।।


नादबिन्दुकलातीतश्चतुर्वर्गफलप्रद:।

सुषुम्नामार्गसंचारी सन्देहस्यान्तरस्थित:।।१२९।।


देहेन्द्रियमन: प्राणसाक्षी चेत:प्रसादक:।

सूक्ष्म: सर्वगतो देहीज्ञानदर्पणगोचर:।।१३०।।


तत्त्वत्रयात्मकोsव्यक्त: कुण्डलीसमुपाश्रित:।

ब्रह्मण्य: सर्वधर्मज्ञ: शान्तो दान्तो गतक्लम:।।१३१।।


श्रीनिवास: सदानन्दी विश्वमूर्तिर्महाप्रभु:।

सहस्त्रशीर्षा पुरुष: सहस्त्राक्ष: सहस्त्रपात:।।१३२।।


समस्तभुवनाधार: समस्तप्राणरक्षक:।

समस्तसर्वभावज्ञो गोपिकाप्राणरक्षक:।।१३३।।


नित्योत्सवो नित्यसौख्यो नित्यश्रीर्नित्यमंगल:।

व्यूहार्चितो जगन्नाथ: श्रीवैकुण्ठपुराधिप:।।१३४।।


पूर्णानन्दघनीभूतो गोपवेषधरो हरि:।

कलापकुसुमश्याम: कोमल: शान्तविग्रह:।।१३५।।


गोपाड़्गनावृतोsनन्तो वृन्दावनसमाश्रय:।

वेणुवादरत: श्रेष्ठो देवानां हितकारक:।।१३६।।


बालक्रीडासमासक्तो नवनीतस्यं तस्कर:।

गोपालकामिनीजारश्चोरजारशिखामणि:।।१३७।।


परंज्योति: पराकाश: परावास: परिस्फुट:।

अष्टादशाक्षरो मन्त्रो व्यापको लोकपावन:।।१३८।।


सप्तकोटिमहामन्त्रशेखरो देवशेखर:।

विज्ञानज्ञानसन्धानस्तेजोराशिर्जगत्पति:।।१३९।।


भक्तलोकप्रसन्नात्मा भक्तमन्दारविग्रह:।

भक्तदारिद्रयदमनो भक्तानां प्रीतिदायक:।।१४०।।


भक्ताधीनमना: पूज्यो भक्तलोकशिवंकर:।

भक्ताभीष्टप्रद: सर्वभक्ताघौघनिकृन्तन:।।१४१।।


अपारकरुणासिन्धुर्भगवान भक्ततत्पर:।।१४२।।


इति श्रीराधिकानाथसहस्त्रं नाम कीर्तितम।

स्मरणात्पापराशीनां खण्डनं मृत्युनाशनम।।१४३।।


वैष्णवानां प्रियकरं महारोगनिवारणम।

ब्रह्महत्यासुरापानं परस्त्रीगमनं तथा।।१४४।।


परद्रव्यापहरणं परद्वेषसमन्वितम।

मानसं वाचिकं कायं यत्पापं पापसम्भवम।।१४५।।


सहस्त्रनामपठनात्सर्व नश्यति तत्क्षणात।

महादारिद्र्ययुक्तो यो वैष्णवो विष्णुभक्तिमान।।१४६।।


कार्तिक्यां सम्पठेद्रात्रौ शतमष्टोत्तर क्रमात।

पीताम्बरधरो धीमासुगन्धिपुष्पचन्दनै:।।१४७।।


पुस्तकं पूजयित्वा तु नैवेद्यादिभिरेव च।

राधाध्यानाड़िकतो धीरो वनमालाविभूषित:।।१४८।।


शतमष्टोत्तरं देवि पठेन्नामसहस्त्रकम।

चैत्रशुक्ले च कृष्णे च कुहूसंक्रान्तिवासरे।।१४९।।


पठितव्यं प्रयत्नेन त्रौलोक्यं मोहयेत्क्षणात।

तुलसीमालया युक्तो वैष्णवो भक्तित्पर:।।१५०।।


रविवारे च शुक्रे च द्वादश्यां श्राद्धवासरे।

ब्राह्मणं पूजयित्वा च भोजयित्वा विधानत:।।१५१।।


पठेन्नामसहस्त्रं च तत: सिद्धि: प्रजायते।

महानिशायां सततं वैष्णवो य: पठेत्सदा।।१५२।।


देशान्तरगता लक्ष्मी: समायातिं न संशय:।

त्रैलोक्ये च महादेवि सुन्दर्य: काममोहिता:।।१५३।।


मुग्धा: स्वयं समायान्ति वैष्णवं च भजन्ति ता:।

रोगी रोगात्प्रमुच्येत बद्धो मुच्येत बन्धनात।।१५४।।


गुर्विणी जनयेत्पुत्रं कन्या विन्दति सत्पतिम्।

राजानो वश्यतां यान्ति किं पुन: क्षुद्रमानवा:।।१५५।।


सहस्त्रनामश्रवणात्पठनात्पूजनात्प्रिये।

धारणात्सर्वमाप्नोति वैष्णवो नात्र संशय:।।१५६।।


वंशीतटे चान्यवटे तथा पिप्पलकेsथवा।

कदम्बपादपतले गोपालमूर्तिसन्निधौ।।१५७।।


य: पठेद्वैष्णवो नित्यं स याति हरिमन्दिरम।

कृष्णेनोक्तं राधिकायै मया प्रोक्तं पुरा शिवे।।१५८।।


नारदाय मया प्रोक्तं नारदेन प्रकाशितम्।

मया त्वयि वरारोहे प्रोक्तमेतत्सुदुर्लभम्।।१५९।।


गोपनीयं प्रयत्नेन् न प्रकाश्यं कथंचन।

शठाय पापिने चैव लम्पटाय विशेषत:।।१६०।।


न दातव्यं न दातव्यं न दात्व्यं कदाचन।

देयं शिष्याय शान्ताय विष्णुभक्तिरताय च।।१६१।।


गोदानब्रह्मयज्ञादेर्वाजपेयशस्य च।

अश्वमेधसहस्त्रस्य फलं पाठे भवेदध्रुवम्।।१६२।।


मोहनं स्तम्भनं चैव मारणोच्चाटनादिकम।

यद्यद्वांछति चित्तेन तत्तत्प्राप्नोति वैष्णव:।।१६३।।


एकादश्यां नर: स्नात्वा सुगन्धिद्रव्यतैलकै:।

आहारं ब्राह्मणे दत्त्वा दक्षिणां स्वर्णभूषणम्।।१६४।।


तत आरम्भकर्ताsसौ सर्व प्राप्नोति मानव:

शतावृत्तं सहस्त्रं च य: पठेद्वैष्णवो जन:।।१६५।।


श्रीवृंदावनचन्द्रस्य प्रासादात्सर्वमाप्नुयात।

यदगृहे पुस्तकं देवि पूजितं चैव तिष्ठति।।१६६।।


न मारी न च दुर्भिक्षं नोपसर्गभयं क्वचित।

सर्पादि भूतयक्षाद्या नश्यन्ति नात्र संशय:।।१६७।।


श्रीगोपालो महादेवि वसेत्तस्य गृहे सदा।

गृहे यत्र सहस्त्रं च नाम्नां तिष्ठति पूजितम्।।१६८।।


    ।।इति श्री गोपाल सहस्त्र नाम स्तोत्रं।।

      ।।जय बोलो गोपाल जी की जय हो।।



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