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Sunday 19 December 2021

धनतेरस क्यों मनाते हैं, जानें पूजा विधि, कथा और महत्त्व(Why celebrate Dhanteras, know puja vidhi, katha and importance)




धनतेरस क्यों मनाते हैं, जानें पूजा विधि, कथा और महत्त्व(Why celebrate Dhanteras, know puja vidhi, katha and importance):-पंच दिवसात्मक दीपावली पर्व का पहला दिन अर्थात् कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को 'धनत्रयोदशी' अथवा 'धनतेरस' के रूप में मनाया जाता है। धनतेरस दीपावली के दो दिन पूर्व का पर्व होने से तथा धन के देवता कुबेर एवं लक्ष्मी जी, स्वास्थ्य के देवता धन्वन्तरी जी और मृत्यु के स्वामी यमराज जी के पूजन का पर्व होता है। हिन्दुधर्म में कार्तिक मास के इस पर्व में धन की प्राप्ति करने में, शरीर की बीमारियों को दूर करने का और बिना समय मृत्यु पर विजय प्राप्त की जा सकती है, इसलिए इस पर्व का महत्त्व ज्यादा होता हैं।

धनतेरस कार्तिक कृष्णपक्ष की त्रयोदशी ही धनतेरस कहलाती हैं। इसे धनवंतरी त्रयोदशी भी कहते हैं। 

धनतेरस का अर्थ:-जिस तिथि को पूजन करने से धन अर्थात् रुपये-पैसों की प्राप्ति होती हैं, उसे धनतेरस कहा जाता है।

नवीन कार्य को प्रारम्भ भी धनतेरस के दिन करते है, क्योंकि यह एक अबूझ मुहूर्त होता हैं, इसमें किसी भी तरह के समय शुद्धि की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इस दिन मनुष्य स्वर्ण, रजत धातु की वस्तुओं एवं स्टील की बनी वस्तुओं को विशेष रुप से खरीदते हैं। इस दिन रजत धातु की बनी हाथी की प्रतिमा, उल्लू  एवं कमल के पुष्प को खरीद कर उसका विधिविधान से पूजन करके दीपावली की रात्रिकाल में पूजन विधि में रखने से उन वस्तुओं को अपने तिजोरी या अपने पूजा स्थल में रखने से धन-सम्पत्ति से सम्बंधित सभी तरह के आर्थिक विकारों से छुटकारा मिल जाता हैं। नवीन कार्य को प्रारम्भ भी धनतेरस के दिन करते है, क्योंकि यह एक अबूझ मुहूर्त होता हैं, इसमें किसी भी तरह के समय शुद्धि की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इस दिन मनुष्य स्वर्ण, रजत धातु की वस्तुओं एवं स्टील की बनी वस्तुओं को विशेष रुप से खरीदते हैं। इस दिन रजत धातु की बनी हाथी की प्रतिमा, उल्लू  एवं कमल के पुष्प को खरीद कर उसका विधिविधान से पूजन करके दीपावली की रात्रिकाल में पूजन विधि में रखने से उन वस्तुओं को अपने तिजोरी या अपने पूजा स्थल में रखने से धन-सम्पत्ति से सम्बंधित सभी तरह के आर्थिक विकारों से छुटकारा मिल जाता हैं।


धन्वन्तरी एवं लक्ष्मी जी उदय की कथा:-धनतेरस के दिन धनवंतरीजी के पूजन का बहुत महत्त्व बताया जाता है। अमृत कलश को पाने के लिए जब देवता व दैत्यों ने समुद्र मंथन किया था। तब चौदह रत्नों के साथ धनवंतरी वेद हाथ मे अमृत कलश लेकर समुद्र से प्रकट हुए थे। यह पर्व वैद्यों के लिए महत्त्व का हैं, क्योंकि धनवंतरी देव आयुर्वेद के जनक माने जाते है। इसलिए इस त्योहार का नाम धनवंतरी त्रयोदशी धनतेरस पड़ा। यह दिन अकाल मृत्यु से बचाव करने वाला होता हैं।


धनतेरस की पूजा विधि:-धनत्रयोदशी के दिन भगवान धनवंतरी एवं धनाध्यक्ष कुबेर की पूजा होती हैं, वहीं यमराज के नाम पर दीपदान भी किया जाता है।

◆व्यापारी मनुष्य अपने हिसाब-किताब को देखकर समाप्त करते है और बही-खाता तथा रोकड़ को इकट्ठा करके पूजन करते हैं। दीपमाला भी इसी दिन जलाने का प्रावधान होता हैं और पांच दिन तक हमेशा जलाई जाती हैं।


◆इस दिन पुराने बर्तनों को बदलना चाहिए एवं नये बर्तनों को खरीदना अच्छा माना जाता है। इस दिन धातु के बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है।


◆इस दिन चांदी की वस्तुओं की खरीदारी करना बहुत ही पुण्यदायक माना जाता हैं।


◆स्टील के नए बर्तन खरीदना अत्यंत ही शुभ माना जाता है। यह यमराज से सम्बन्ध रखने वाला त्यौहार हैं।


◆सबसे पहले धनतेरस के दिन सवेरे जल्दी उठकर अपनी दैनिकचर्या स्नानादि से निवृत होना चाहिए।


◆फिर स्वच्छ वस्त्रों को धारण करना चाहिए।


◆फिर अपने घर के पूजा स्थल की जगह को साफ-सफाई करनी चाहिए।


◆उस पूजा स्थल की जगह पर भगवान धनाध्यक्ष कुबेर, भगवान धन्वंतरि जी, गणपति जी, लक्ष्मी की प्रतिमा को एवं मिट्टी या धातु की बनी प्रतिमा को विराजमान करना चाहिए।


◆पूजा को शुरू करने के लिए तांबे या रजत धातु की आचमनी लेकर जल से आचमन करना चाहिए।


◆फिर भगवान गणपति जी को पूजा में आने के लिए उनको मन ही मन में याद करते हुए उनको पधारने का निमंत्रण देना चाहिए।


षोडशोपचारैंः पूजा कर्म:-इस तरह भगवान धनाध्यक्ष कुबेर, भगवान धन्वंतरि जी, गणपति जी एवं लक्ष्मी जी का षोडशोपचारैंः पूजा कर्म  से पूजन करना चाहिए, जो इस तरह हैं:

पादयो र्पाद्य समर्पयामि, हस्तयोः अर्ध्य समर्पयामि,

आचमनीयं समर्पयामि, पञ्चामृतं स्नानं समर्पयामि

शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि, वस्त्रं समर्पयामि,

यज्ञोपवीतं समर्पयामि, गन्धं समर्पयामि,

अक्षातन् समर्पयामि, अबीरं गुलालं च समर्पयामि,

पुष्पाणि समर्पयामि, दूर्वाड़्कुरान् समर्पयामि,

धूपं आघ्रापयामि, दीपं दर्शयामि, नैवेद्यं निवेदयामि, 

ऋतुफलं समर्पयामि, आचमनं समर्पयामि,

ताम्बूलं पूगीफलं दक्षिणांं च समर्पयामि।।


आह्वान:आवाहनार्थे पुष्पाजंलि समर्पयामि। आह्वान के लिए पुष्प को छोड़ना चाहिए।

आसन:आसनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि। पुष्प को छोड़ना चाहिए।

पाद:पाद्यर्यो:पाद्यं समर्पयामि। जल को चढ़ावें।

अर्ध्य:हस्तयो:अर्ध्य स्नानः। चन्दन पुष्प से युक्त अर्ध्य देवें।

आचमन:आचमनं समर्पयामि। जल छोड़े।


धन्वन्तरी देव का ध्यान मन्त्र:-उसके बाद में हाथ में पुष्प और चावल लेकर मन ही मन में भगवान धन्वन्तरी जो को याद करना चाहिए।

देवान कृशान सुरसंघनि पीडितांगान दृष्ट्वा दयालुर मृतं विपरीतु कामः पायोधि मंथन विधौ प्रकटौ भवधो धन्वन्तरिः स भगवानवतात सदा नःऊँ धन्वन्तरि देवाय नमः। 

ध्यानार्थे अक्षत पुष्पाणि समर्पयामि।


पुष्प को अर्पण करते हुए जल से आचमन करना चाहिए।


फिर जल से तीन बार छींटे देते हुए मन्त्र का उच्चारण करते हुए पाद्यं अर्ध्यं आचमनीयं समर्पयामि कहना चाहिए।


स्नानः स्नानार्थ जलं समर्पयामि। जल से स्नान करावें।

स्नानांग-आचमन:स्नानान्ते पुनराचमनीयं जलं समर्पयामि जल चढ़ावे।

उसके बाद में मन्त्र बोलते हुए 

ऊँ धन्वन्तरायै नमः स्नानार्थे जलं समर्पयामि। 


स्नान के लिए जल को अर्पण करना चाहिए


फिर पंचामृत स्नान:-फिर पंचामृत से स्नान कराते समय यह मंत्र का उच्चारण करना चाहिए

ऊँ धन्वन्तरायै नमः पंचामृत स्नानार्थे पंचामृत समर्पयामि।

गंधोदक स्नानं:-गंधोदक स्नानं समर्पयामि। चन्दन एवं इत्र से सुवासिते जल का स्नान करना चाहिए ।

शुद्धोदक स्नानं:-फिर से जल के छींटे लगाकर शुद्ध जल से स्नान कराते समय यह मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।

ऊँ धन्वन्तरायै नमः पंचामृत स्नानान्ते शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि।

आचमनः आचमनीयं जल समर्पयामि। फिर जल से स्नान करना चाहिए।

यज्ञोपवीतं: यज्ञोपवीतं समर्पयामि। जनेऊ को अर्पण करें।

वस्त्र अर्पण करना:-उसके बाद में वस्त्रों के रूप में मौली को छोटे टुकड़ों को अर्पण करते समय यह मंत्र का उच्चारण करना चाहिए

ऊँ धन्वन्तरायै नमः वस्त्रं समर्पयामि। 

उपवस्त्रं को अर्पण:-करें। ऊँ धन्वन्तरायै नमः उपवस्त्रं समर्पयामि। उसके बाद में उपवस्त्रों के रूप में मौली को छोटे टुकड़ों को अर्पण करते समय यह मंत्र का उच्चारण करना चाहिए

अब भगवान पर खुशबु से युक्त इत्र को छिड़कते समय  सुवासितं इत्र समर्पयामि मन्त्र का उच्चारण करते हुए ही करना चाहिए।

गन्धं समर्पयामि, इत्र को छिड़कते हुए बोलना चाहिए।


अक्षातन् समर्पयामि। अक्षत को अर्पण करें।


पुष्पमाला:पुष्पमालां समर्पयामि। पुष्पमाला को चढ़ावें।


नानापरिमल द्रव्ययःनानापरिमल द्रव्यामि समर्पयामि। 

अबीर, गुलाल आदि को चढ़ाना चाहिए।

अबीरं गुलालं च समर्पयामि,


लाल चंदन से रोली या कुमकुम से भगवान का तिलक करना चाहिए।


पुष्पाणि समर्पयामि। पुष्प को अर्पण करें।

दूर्वाड़्कुरान् समर्पयामि। दूर्वा आदि को अर्पण करें।


धूपं को दुखाना:धूपं आघ्रापयामि। अगरबती के धुएं को चारों ओर घुमाते हुए।


दीपं को दिखाना:दीपं दर्शयामि। प्रज्वलित दीपक की लौ दिखाना चाहिए।


नैवेद्य को प्रसाद के रूप में भोग अर्पण करना:अब भगवान को भोग के जो मिठाई ली हैं, उस प्रसाद को भोग के रूप में भगवान को अर्पण करना चाहिए और प्रसाद के भोग के चारों ओर जल को लेकर घुमाना चाहिए।

नैवेद्यं निवेदयामि, नैवेद्य को निवेदित करना चाहिए।


आचमनीयं जलं:पूजा करने वाले मनुष्य को अपने बैठने की जगह पर जहां पर बैठकर पूजा की शुरुआत की हैं, उस स्थान पर जल को छिटकते समय आचमनीयं जलं समर्पयामि मन्त्र का उच्चारण करना चाहिए।


ऋतुफलं अर्पण करने:ऋतुफलं समर्पयामि। फिर भगवान ऋतु में जो भी फल उपलब्ध होता है, वह फल अर्पण करते समय ऋतुफलं समर्पयामि मंत्र को बोलते हुए फल को अर्पण करके चारों और जल को घुमाते हुए जल को छिड़कें।


आचमनं को अर्पण करना:आचमनं समर्पयामि।

नैवेधान्तेध्यानमाचमनीयं जलमुत्तरापोSशनं हस्तप्रक्षालनपार्थ मुखप्रक्षालनार्थ च जलं समर्पयामि। जल को छोड़ना चाहिए।


ताम्बूलं पूगीफलं को अर्पण करना:ताम्बूलं पुंगीफल पान का बीड़ा जिसमें लौंग, इलायची, सुपारी सूक्त पंचमेवा से युक्त होता हैं, उसको भगवान को अर्पण करते समय ताम्बूलं पूगीफलं समर्पयामि मंत्र का उच्चारण करते हुए उनको मुखवास के लिए अर्पण करना चाहिए।


दक्षिणा अर्पण करना:दक्षिणांं च समर्पयामि।।फिर भगवान को दक्षिणा को अर्पण करते समय दक्षिणा समर्पयामि मंत्र को बोलते हुए अर्पण करना चाहिए।


वस्तु की पूजा:जो धनतेरस के दिन बर्तन या धातु की वस्तु जिसमें स्वर्ण या रजत धातु की वस्तु को खरीदा हैं, उस वस्तु का पूजन करके उस वस्तु को भगवान के चरणों में समर्पित करना चाहिए और दक्षिणा के रूप में रुपये-पैसों को भी अर्पण करना चाहिए।


आरती करना:जब कपूर को अग्नि की ज्वाला से प्रज्वलित करते समय कर्पूर निराजंन दर्शयामि बोलते हुए दर्शन करना चाहिए।


धन्वन्तरी देवता से प्रार्थना:-भगवान धन्वन्तरी देवता से इस तरह बोले-हे स्वास्थ्य रक्षक देव! आप से अरदास करता हूँ कि आप समस्त तरह की व्याधियों के निवारण के स्वामी हैं। आप समस्त प्राणी की व्याधियों का हरण करके उनको आरोग्यता प्रदान करें।


यमराज जी का पूजन एवं दीपदान की विधि:-यमराज जी का पूजन एवं दीपदान की विधि इस तरह से करे:

फिर सायंकाल के समय आटे से बनाकर दो दियो को बनाये और उनमें सरसो का तेल भरकर चारमुखी बात्ति को रखकर, फिर अपने निवास स्थान के मुख्य दरवाजे के बाहर की तरफ गेंहू की ढेरी करके उन दियों की बात्ति का मुख दक्षिण दिशा की तरफ रखकर प्रज्वलित करना चाहिए। यमराज जी का पूजन विधिपूर्वक करना चाहिए। 


यमराज से प्रार्थना:-हे मृत्यु के रक्षक स्वामी! आप समस्त जगत के प्राणियों के जीव का हरण करने वाले हो। आपसे अरदास करता हूँ, हे स्वामी! आप मनुष्य के प्राणों का हरण अकाल नहीं करे और अकाल मृत्यु के डर से मुक्त करें।


फिर धनाध्यक्ष कुबेर को स्मरण करते हुए उनके मन्त्र का उच्चारण:-

ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधि पतये धनधान्य समृद्धि में देहि दापय दापय स्वाहा।


◆ततपश्चात में लक्ष्मीजी, कुबेर भगवान, गणपति जी, हस्ती और भगवान धन्वन्तरी जी की पूजा करनी चाहिए।


◆उसके बाद में आरती को करने से निश्चित रूप से उचित फल मिलता हैं।


◆फिर प्रसाद को समस्त परिवार के सदस्यों को देकर स्वयं भी प्रसाद को ग्रहण करना चाहिए।


◆इस तरह से पूजा करने से निश्चित रुप से ईश्वर की अनुकृपा प्राप्त होती हैं।


◆धनतेरस के रूप में इस दिन धनाध्यक्ष कुबेर की पूजा होती हैं।इस दिन व्यक्ति सतैल स्नान करना चाहिए।


◆हल जूती मिट्टी को दूध में भिगोकर उसमें सेमर की शाखा डालकर तीन बार अपने शरीर पर फेरना चाहिए।


◆फिर कुमकुम लगाना चाहिए।


◆कार्तिक स्नान करके प्रदोष के सायंकाल में घाट, गौशाला, बावड़ी, कुंआ, मन्दिर आदि स्थानों पर तीन दिन तक दीपक जलाना चाहिए।


◆तुला राशि के सूर्य में चतुर्दशी एवं अमावस्या की संध्या को जलती लकड़ी की मशाल से पितरों का रास्ता प्रशस्त करना चाहिए।


धनतेरस की कथा:-एक बार यमराज ने अपने दूतों से कहा कि तुम लोग मेरी आज्ञा से मृत्युलोक के प्राणियों के प्राण हरण करते हों। क्या तुम्हें ऐसा करते समय दुःख हुआ या कभी दया भी आई है? इस पर यमदूतों संकोच में पड़कर कहा-'नहीं महाराज! हम तो आपके आदेश का पालन करते हैं और हमें दया भाव से क्या प्रयोजन?' तब यमराज ने विचार किया कि शायद ये संकोचवश इस तरह की बात कह रहे हैं। तब यमराज ने कहा कि-आप सब बिना डर के मुझे बताओं  एवं किसी भी तरह की असमंजस में पड़ने की जरूरत नहीं हैं। यदि कभी किसी के भी प्राण को हरते समय तुमको दया आई हो या किसी के प्राण को लेते समय मन में दुःख हुआ हो तो बताओ। तब यमदूतों ने डरते हुए कहा-हे महाराज! हम लोगों का कर्म अत्यन्त क्रूर हैं, परन्तु किसी युवा प्राणी की अकाल मृत्यु पर उसका प्राण हरण करते समय वहां का करुण रुदन सुनकर हम लोगों का पासण हृदय भी विचलित हो जाता हैं। तब यमदूतों ने बताया कि एक बार हम लोगों को एक राजकुमार के प्राण उसके विवाह के चौथे दिन ही हरण करने पड़े। 

उस समय वहां का करुण रुदन चित्कार व हाहाकार देख सुनकर हमें अपने कर्त्तव्य से घृणा हो गयी। उस मंगलमय उत्सव के बीच हम लोगों का ये कृत्य अत्यन्त घृणित था। जिससे हम लोगों का हृदय अत्यंत दुःखी हो गया। तब यमराज ने पूछा कि-हे यमदूतों! मुझे इस विषय में पूर्ण बात बताओं। तब यमदूत कहते-हे स्वामिन्! 

बहुत समय की बात हैं, एक हंस नाम का राजा राज्य किया करता था। वह एक दिन जंगल में शिकार करने के लिए गया। तब वह शिकार की खोज के चक्कर में अपने साथ सैनिकों एवं अपने साथियों से बिछुड़ गया और दूसरे राज्य की सीमा में प्रवेश कर जाता हैं। यमराज ने पूछा-फिर क्या हुआ? तब यमदूतों ने बताया कि उस राज्य का राजा हेमा था। जब राजा हेमा की मुलाकात हंस राजा से होती है, तब हंस राजा की बहुत ही आवगवत-सत्कार करता हैं। उसी दिन ही हेमा राजा की पत्नी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म देती हैं। ज्योतिषियों के द्वारा नक्षत्रों की गणना करके बताते है, की यह बालक विवाह के चार दिन के बाद मर जायेगा।

राजा हंस काफी सोच-विचार करके अपने उस बालक को अपने अधिकारियों की सलाह के द्वारा उसे यमुना के किनारे पर स्थित एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रहने के लिए भेज दिया। किन्तु समय का खेल निराला होता है। जैसे-जैसे समय बीतता गया वह बालक बड़ा हुआ। एक दिन सयोंग से राजा हंस की जवान पुत्री यमुना के किनारे पर आती हैं और दोनों की मुलाकात हो जाती है। एक-दूसरे को देखकर मोहित हो जाते है और वह ब्रह्मचारी उस जवान कन्या से गंर्धव विवाह कर लेता हैं। इस तरह तीन दिन तक ठीक चलता है और चौथा दिन आ जाता हैं, उस चौथे दिन ही उस राजकुमार की मृत्यु हो जाती हैं।


इस तरह नव परिणीता का करुण विलाप को सुनकर हमारा हृदय कांप गया था। ऐसी सुन्दर जोड़ी हमने कभी नहीं देखी थी। वे कामदेव तथा रति की तरह सुंदर थे। उस युवक को कलग्रस्त करते समय हमारे भी अश्रु नहीं रुक पा रहे थे। तब यमराज ने द्रवित होकर पूछा-हे यमदूतों! फिर क्या किया जाए। विधि के विधान को मैं नहीं रोक सकता हूँ। मुझे तो मेरे कार्यों को करना पड़ता हैं। 


तब यमदूतों ने पूछा- हे स्वामिन्! कृपा करके कोई ऐसी युक्ति बताइये, जिससे ऐसी अकाल मृत्यु न हो। तब यमराज ने बताया कि धनतेरस के दिन पूजन करने से और दीपदान को विधि के अनुसार करने से अकाल मृत्यु से बचा जा सकता हैं।इस पर यमराज ने कहा कि जो धनतेरस के पर्व पर सायंकाल घर के बाहर मुख्य दरवाजे पर एक पात्र में अन्न रखकर उसके ऊपर यमराज के निमित्त दक्षिणाभिमुख होकर दीपदान करना चाहिए तथा उसका गन्ध आदि से पूजन करना चाहिए। 


जिस जगह पर धनतेरस को पूजन एवं दीपदान किया जाएगा। वहां पर किसी भी मनुष्य की अकाल मृत्यु नहीं होगा। इस तरह से धनतेरस के दिन धन्वन्तरी पूजन के साथ कुबेर पूजन एवं यम दीपदान की शुरुआत हुई थी, जो कि समय के साथ आज के युग में भी चल रही हैं। इस तरह धनतेरस के दिन दीपदान करने से यमराज की अनुकृपा प्राप्त हो जाती है और उनका आशीर्वाद प्राप्त हो जाता हैं, जिससे अकाल मृत्यु के डर का भय खत्म हो जाता हैं।


एक दन्तकथा के अनुसार धनतेरस के स्वर्ण, रजत एवं धातु के वस्तुओं की खरीदने के पीछे की दन्तकथा:-प्राचीन समय में एक राजा अपने राज्य में राज करता था। उसके राज में समस्त प्रजा खुश एवं समृद्धिपूर्वक जी रही थी। उस राजा के एक सन्तान के रूप में पुत्र हुआ, तब ज्योतिषीयों ने नक्षत्र की गति के आधार पर राजा को कहा कि-हे राजन! इस बालक का जीवन काल में यदि लग्न होता हैं, तब यह लग्न के चार दिवस के बाद कालकवलित हो जाएगा। 


इस तरह के वचन को सुनकर राजा ने विचार विमर्श करके अपने सन्तान को किसी ऐसी जगह पर भेज दिया, जहां पर किसी स्त्री की छाया भी नहीं पड़ सके, भाग्यवश बालक युवावस्था में प्रवेश करता हैं, तब उस युवराजकुमार की मुलाकात एक राजकुमारी से होती है और दोनों ही एक-दूसरे के प्रति आकर्षित हो जाते है और गन्धर्व विवाह कर लेते है। जब वह राजकुमारी अपने राज्य में अपने पति को ले जाती है, तब उसके पिता उसका सत्कार करते है और अपनी पुत्री के भाग्य को जानने हेतु ज्योतिषी से पूछते है, तब ज्योतिषी बताते है, की आपके पुत्री के लग्न के चार दिन बाद उसके पति की मृत्यु हो जाएगी। इस तरह जब राजकुमारी को इस तरह की बात मालूम पड़ती है, तब वह अपने पति का बहुत खयाल रखते हुए दिन को गिनने लगती है और चौथे दिन उसने अपने पति से अरदास करते हुए कहती है, की स्वामी आप आज की रात आपको जागना होगा, इसलिए वह रातभर अपने पति को सोने से रोकने के लिए उसको कई तरह की बातें करते हुए नयी-नयी कहानियों को सुनाती हैं और संगीत भी गाती हैं। 


अपने शयनकक्ष के चारो तरफ सोने, चांदी की वस्तुओं एवं आभूषणों, तरह-तरह के धातुओं के बर्तन और हीरे-जेवरातों को रखवा देती हैं और चारों तरफ तेल से भरे हुए बहुत सारे दीपकों को प्रज्वलित करवा देती हैं। उस रात्रिकाल में यमराजजी अपने यमदूतों के साथ सर्प के रुप में उसके प्राण को हरने आते है, लेकिन उस शयनकक्ष में उन सभी तरह के धातुओं की चमक एवं दीपक की रोशनी से प्रवेश नही कर पाते है और उनके आंखों की रोशनी कम होकर अंधे हो जाते है। वे रात भर उसके प्राणों का हरण करने की कोशिश करते हैं, लेकिन उस राजकुमार के प्राण को हर नहीं पाते है और उस राजकुमारी के संगीत एवं कहानियों को सुनने में मग्न हो जाते है। इस तरह समय बीतने पर सुबह हो जाती है, तब यमराजजी को वहां से प्रस्थान करना पड़ता हैं। क्योंकि मृत्यु का समय व्यतीत हो जाता है। राजकुमारी अपने पति के प्राणों को इस तरह बचा लेती है।


यमराज की पूजा-विधि एवं दीपदान विधि:-धनतेरस के दिन यमराज की पूजा एवं दीपदान की विधि इस तरह हैं:

◆कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को वैदिक देवता यमराज का पूजन किया जाता हैं। इस दिन यमराज के निमित्त यम के लिए आटे का चौमुखा दीपक बनाकर घर के मुख्य द्वार पर रखा जाता हैं।

◆रात को घर की औरतें दीपक में तेल डालकर चार बत्तियां जलाती है। 

◆जल, रोली, चावल, गुड़, फूल, नैवेद्य आदि अर्पित कर दीपक जलाकर दक्षिण दिशा की ओर मुख कर निम्न मंत्र का जप कर यम का पूजन करती हैं।


◆दीपदान करते समय प्रार्थना:-दीपदान करते समय निम्नलिखित प्रार्थना करनी चाहिए, जो इस तरह है:

मंत्र:-

मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह।

योदश्यां दीपदानात्सुर्यजः प्रियतामिति।।


मंत्र:-मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन श्यामया सह।

त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजःप्रियतां मम।।

अर्थात्:-त्रयोदशी के दिन दीपदान से पाश एवं दण्ड लिए मृत्यु के देवता तथा देवी श्यामा सहित यमराज मुझ पर खुश हों।

धनतेरस के पर्व पर यमराज के निमित्त दीपदान करेगा, उसकी अकाल मृत्यु नहीं होगी।


धनतेरस की पूजा करने का महत्त्व:-धनतेरस के दिन यमराज, धनाध्यक्ष कुबेर जी एवं धन्वन्तरी जी की पूजा करने का बहुत ही महत्व हैं, जो इस तरह है:

◆धनतेरस के दिन धनाध्यक्ष कुबेर की पूजा करने से मनुष्य को धन-सम्पत्ति की प्राप्ति होती है, उस मनुष्य के घर पर कुबेरजी के द्वारा धन का भण्डार भरा रहता हैं।

◆धनतेरस के पर्व को मनाने से मनुष्य के घर में सुख-समृद्धि बनी रहती हैं।

◆धनतेरस के दिन मनुष्य किसी भी व्यक्ति को धन उधार नहीं देना चाहिए और धन का अपव्यय भी नहीं करना चाहिए।

◆धनतेरस के दिन ही यमराज जी की पूजा एवं दीपदान करने से अकाल मृत्यु से छुटकारा मिलता है।

◆इस दिन ही धन्वन्तरी जी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, जो कि औषधियों के स्वामी होते है और समस्त तरह की व्याधियों को निवारण करने वाले होते है। इसलिए उनके प्रकट होने के कारण भी यह पर्व मनाया जाता है। 
















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