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Saturday 2 October 2021

ऋणमोचक मंगल स्तोत्रं(Rina Mochaka mangal stotra)

                    



ऋणमोचक मंगल स्तोत्रं(Rina Mochaka mangal stotra):-ऋण मोचक मंगल स्तोत्रं का नियमित रूप से वांचन करने से मनुष्य को बहुत ही फायदा मिलता हैं, आधुनिक युग में मनुष्य की दैनिक जरूरते अधिक होती है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य अपने परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दूसरे मनुष्य से रुपये-पैसों को उधार लेता हैं, अपनी आवश्यकताओं को पूरा करता हैं, लेकिन मनुष्य की आमदनी तो बहुत ही कम होती हैं वह दूसरों के देखा-देखी में अपने ऊपर कर्ज को बढ़ा लेता हैं, जब उसके ऊपर कर्ज का बोझ बढ़ जाता है तब उसका मानसिक संतुलन बिगड़ने लगता है, जिसके फलस्वरूप उसके पारिवारिक जीवन में क्लेश का जन्म हो जाता है और घर का माहौल दुःख मय हो जाता हैं। इस तरह मनुष्य को अपनी चादर के हिसाब से ही पैर को फैलाने चाहिए। इस तरह से बढ़े हुए कर्ज को उतारने के लिए हमारे शास्त्रों में कुछ स्तोत्रं की रचना की गई हैं उनमें से एक ऋण मोचक मंगल स्तोत्रं एक हैं, क्योंकि मंगलदेव को कर्ज का स्वामी माना जाता हैं, इसलिए कर्ज के स्वामी के गुणों का उनके मन्त्रों से करने पर उनकी कृपा दृष्टि मनुष्य पर हो जाती हैं, जिससे मनुष्य की आमदनी में बढ़ोतरी होकर कर्ज धीरे-धीरे कम होता जाता हैं अंत में समस्त कर्ज से छुटकारा मिल जाता हैं। इसलिए ऋणमोचक मंगल स्तोत्रं का पाठ मनुष्य को हमेशा करते रहने पर निश्चित ही फायदा मिलता हैं। ऋण मोचक मंगल स्तोत्रं में मंगलदेवजी के बारे में बताया गया है।


    ।।अथ ऋण मोचक मंगल स्तोत्रं।।


मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।

स्थिरासनो महाकायः सर्वकर्मावरोधकः।।1।।


लोहितो लोहिताङ्गश्च सामगानां कृपाकरः।

धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः।।2।।


अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।

वृष्टे कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः।।3।।


एतानि कुजनामानि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।

ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्।।4।।


धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्ति-समप्रभम्।

कुमारं शक्तिहरतं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्।।5।।


स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत् पठनीयं सदा नृभिः।

न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्।।6।।


अङ्गारक! महाभान! भगवन्! भक्तवत्सल!

त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय।।7।।


ऋणरोगादि-दारिद्रयं ये चाऽन्ये ह्यपमृत्यवः।

भय-क्लेश-मनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा।।8।।


अतिवक्र! दुराराध्य! भोगमुक्तजितात्मनः।

तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।9।।


विरिञ्च-श्क्र-विष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।

तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः।।10।।


पुत्रान् देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गताः।

ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः।।11।।


एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्।

महतीं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा।।12।।


।।इति श्री ऋणमोचक मङ्गलस्तोत्रम् सम्पूर्णम्।।

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