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Sunday 26 September 2021

चन्द्र कवच स्तोत्रं(Chandra Kavach Stotram)

                    



चन्द्र कवच स्तोत्रं(Chandra Kavach Stotram):-नवग्रहों में चन्द्रमा ग्रह को मन का प्रतीक माना गया है, इसलिए कहा गया है, जिसने भी अपने पर काबू पा लिया उसने समस्त लोकों को जीत लिया। इसलिए अपने मन पर काबू पाने के लिए एवं मन एक जगह पर स्थिर रहे। इसलिए मनुष्य या कोई भी चन्द्रदेव जी की आराधना करनी चाहिए, जिससे चन्द्रमादेव जी की अनुकृपा बनी रहे और मन पर काबू बना रहा। जिससे शरीर भी स्वस्थ रहे और रोगप्रतिरोधक क्षमता बनी रही।



श्री चन्द्र कवच स्तोत्रं:-गौतम ऋषि के द्वारा समस्त मनुष्य एवं समस्त देवों के चन्द्र कवच स्तोत्रं का निर्माण किया था। जिससे इस स्तोत्रं के द्वारा मन के कारक चन्द्रमा को खुश रखा जा सके और मन कहीं पर नहीं भटके।


            ।।श्री चन्द्र कवचम् स्तोत्रं।।


अस्य:-श्री चंद्र कवच स्तोत्र महा मंत्रस्य। गौतम ऋषिः।

अनुष्टुप् छंदः।श्री चंद्रो देवता। चन्द्रःप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः।



ध्यानम्:-श्री चन्द्र कवच स्तोत्रं का पाठ करते समय अपने मन को एकाग्रचित करना चाहिए। चन्द्रदेव से अरदास करनी चाहिए। चन्द्रदेव आप मेरे कृपा करें और मन में समस्त विकारों को दूर करे।

 

समं चतुर्भुजं वन्दे केयूर मुकुटोज्ज्वलम्। 

वासुदेवस्य नयनं शंकरस्य च भूषणम्।।

एवं ध्यात्वा जपेन्नित्यं शशिनः कवचं शुभम्।।



श्री चन्द्र कवच स्तोत्रं:-गौतम ऋषि ने श्री चन्द्र कवच स्तोत्रं का निर्माण समस्त के लिए किया है जिससे इसके वांचन करने मस्तिष्क एक जगह पर स्थिर रहे और मन में बुरे विचारों का समावेश नहीं होवे।


शशी पातु शिरो देशं फालं पातु कलानिधिः।

चक्षुषिः चन्द्रमाः पातु श्रुती पातु निशापतिः।।1।।


प्राणं क्षपाकरः पातु मुखं कुमुदबांधवः।

पातु कण्ठं च मे सोमः स्कंधौ जैवा तृकस्तथा।।2।।


करौ सुधाकरः पातु वक्षः पातु निशाकरः।

हृदयं पातु मे चंद्रो नाभिं शंकरभूषणः।।3।।


मध्यं पातु सुरश्रेष्ठः कटिं पातु सुधाकरः।

ऊरू तारापतिः पातु मृगांको जानुनी सदा।।4।।


अब्धिजः पातु मे जंघे पातु पादौ विधुः सदा।

सर्वाण्यन्यानि चांगानि पातु चन्द्रोsखिलं वपुः।।5।।



फलश्रुति:-श्री चन्द्र कवच स्तोत्रं का जो भी वांचन करता है उसको सभी तरह के बुरे विचारों से मुक्ति मिल जाती है वह सब जगह पर अपनी जीत की पताका लहराता हैं।

एतद्धि कवचं दिव्यं भुक्ति मुक्ति प्रदायकम्।

यः पठेतच्छुणुयाद्वापि सर्वत्र विजयी भवेत्।।


      ।।इति श्रीब्रह्मयामले चंद्रकवचं संपूर्णम्।।

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