जन्मराशि और नामराशि का महत्त्व क्या है?(What is the importance of birth sign and name sign?):-जब भी किसी बालक का जन्म होता हैं, तब उसके जन्म के समय पर उसका नामकरण संस्कार किया जाता हैं, उस बालक को जो नाम दिया जाता हैं, वह नाम उसके जन्मसमय के आधार पर होता हैं, लेकिन परिवार के सदस्य उस बालक को प्यार से अलग नाम से पुकारते हैं। इस तरह उसको दो नामों से जाना जाता हैं एवं इन दोनों नामों से उसका जीवनकाल चलता रहता हैं। लेकिन जन्मराशि और नामराशि का उपयोग भिन्न-भिन्न जगहों पर ज्योतिष के कार्यों में किया जाता हैं। सभी विषय में जन्मराशि की प्रमुखता नहीं रहती है तो सभी जगह नामराशि की भी प्रमुखता नहीं रहती हैं।
आर्ष प्रमाणों (शास्त्र प्रमाणों) के आधार पर:-वैवाहिक ग्रह मैत्री, अष्टकूट मिलान एवं गुणांक मिलान जन्म नाम राशि के अनुसार करना उत्तम रहता है।
इसलिए शास्त्रों के आधार पर:-
"विवाहे सर्वमांगल्येयात्रादौग्रहगोचरे।
जन्मराशे:प्रधानत्वं नाम राशिं न् चिनयेत्।।"
अर्थात्:-विवाहकार्य, सभी मांगलिक कार्यों में (उपनयनादि), यात्रा के संदर्भ में मुहूर्त-यात्रा विशेष मुहूर्त, दिन-मान ग्रह गोचर गणना दिनदशा गोचर पद्धति से वर्तमान में ग्रहों का फलित जानने के लिए जन्म राशि से विचार करना चाहिए, न् की नाम राशि से।
"देशेग्रामेगृहेयुद्धेसेवायांव्यवहारके।
नामराशे: प्रधानत्वंजन्मराशिं न् चिनयेत्।।"
अर्थात्:-देश, ग्रामवास, नगर, घर, युद्ध, सेना, न्यायालय, कोर्ट, रजिस्ट्रीकरण आदि में नाम राशि की ही प्रमुखता रहती हैं। बारे में बताया गया है।
यथा सूत्र पुनरपि:-बारे में बताया गया है।
काकिण्यां वर्गशुद्धौ च वादे द्युते स्वरोदये।
मंत्रे पूनर्भूवरणे नामं राशे:प्रधानता।।"
अर्थात्:-नाम राशि से विचार करना चाहिए।
षोड्श संस्कारों के:-बारे में बताया गया है।
"कुर्यात्षोडश कर्मांणि,जन्म राशे र्बलान्विते।
सर्वाष्यन्यानि कर्मांणि, नामराशे र्बलान्विते।।"
"आपदा-रोग-कष्टेषु विवाहे गृह. पूजने।
जन्मराशे:प्रधानत्वं नाम राशिं न् चिनयेत्।।"
अर्थात्:-मुसीबत के समय, बीमारी के समय, मानसिक दु:ख या परेशानी में एवं विवाह से सम्बन्धित मेलापन, वैवाहिक लग्न निर्धारण में और ग्रह शान्ति के उपाय के समय जन्मराशि से विचार करना चाहिए।
स्त्री-पुरूष राशि मान्यता हेतु विचार विशेष वचन:-इस हेतु शास्त्र वचन मुहूर्त चिन्तामणि अनुसार यह है कि
"स्त्रीणां विधोर्बलमुशन्ति विवाह गर्भ-
सन्स्कारयोरितर कर्मसु भर्तुरेव।"
अर्थात्:-विवाह गर्भाधान पुंसवन-आगरणी-सीमन्त-पुत्र कामना संस्कार में स्त्री की जन्म राशि से चंद्रमा बल गणना का निर्णय करना चाहिए। इसके अलावा अन्य सभी कार्यों में मूल रूपेण पति की जन्म राशि से ही विचार करना चाहिए।
स्पष्ट शास्त्र वचनमेतद।
मुहूर्त शास्त्रीय नियामक से एक सूत्र वचन यह भी है कि यदि जन्म नक्षत्र, राशि आदि मालूम नहीं हो तो नाम राशि से विवाह आदि अन्य कार्यों का और लग्न बल से देख लेना चाहिए।
अतः आवश्यक रूप से जन्म नक्षत्र जन्म राशि एवं जन्म कुंडली से वर-वधु मेलापन करना चाहिए तथा विवाह लग्न निर्धारण में त्रिबल शुद्धि का विचार करने के लिए भी वर-वधु दोनों ही की जन्म राशि को आधार बनाया जाना चाहिए। यदि जन्म नाम ज्ञात ना हो तो क्या करना चाहिए ऐसी स्थिति में शास्त्रों में बताया गया है-
"यथा विवाहघटनं चैव लग्नजं ग्रहजं बलम्।
नामभादविचिन्तयेत् सर्व जन्म न ज्ञायते यदा।।"
अर्थात्:-वैवाहिक कार्यक्रम की योजना जन्मकालिक ग्रह स्थिति के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। जब जन्म राशि नक्षत्रादि ज्ञात नहीं हो तो उपरोक्त विचार नामराशि से मुहूर्त लग्न बलादि का ज्ञान करना चाहिए।
1.जन्म राशि से मेलापन एवं वैवाहिक त्रिबल शुद्धि का विचार केवल कन्या के प्रथम विवाह के संदर्भ में ही करना चाहिए। यदि कन्या का दूसरा विवाह या पुनर्विवाह या नाता, नातरा (पूनर्भूवरण) हो तो जन्म राशि से विचार करने की आवश्यकता नहीं होती है। केवल दोनों के नामों के आधार पर नक्षत्र निर्धारण करके मैत्री देखना चाहिए।
2.जुआ या द्यूत खेलने तथा बुखारादि की स्थिति में नाम राशि से विचार करना चाहिए।
3.जहां कुण्डली मिलान और वैवाहिक लग्न निर्धारण के लिए वर एवं कन्या की जन्म राशि से विचार करना चाहिए।
4.जन्मराशि का जन्मराशि से व नामराशि से नामराशि का मेलापन करना चाहिए।
सूर्य सिद्धांत में नामकरण की विधाओं:-का निम्न प्रकार से किया गया है
1.कृष्ण पक्ष में दिन के समय जन्म होने पर सूर्य जिस नक्षत्र एवं चरण में हो उसके वर्ण के अनुसार नामकरण करना चाहिए।
2.यदि शुक्ल पक्ष में और रात्रि के समय जन्म होने पर चंद्रमा की राशि नक्षत्र एवं नक्षत्र चरण के अक्षर के अनुसार नामकरण करना चाहिए।
3.जब एक का कृष्ण पक्ष रात्रि में जन्म हुआ दूसरे का शुक्ल पक्ष में दिन के समय जन्म हो तो जन्म कुंडली में सबसे बलवान ग्रह की राशि, नक्षत्र एक नक्षत्र चरण पर उसकी तत्कालीन स्थिति के आधार पर वर्ण के अनुसार नामकरण करना चाहिए।
4.चंद्रमा पृथ्वी के अधिक निकट एवं तेज गति से चलने वाला ग्रह होने से मनुष्य पर चंद्रमा का विशेष प्रभाव पड़ने से परिवर्तन भी जल्दी होता है, इसलिए यह परंपरा बन गई है कि चंद्रमा के नक्षत्र के आधार पर नामकरण किया जाता है।
5.इसके अतिरिक्त विंशोत्तरी महादशा इत्यादि दशाओं का निर्णय भी चंद्रमा के नक्षत्र से ही किया जाता है। अतः स्पष्ट होता है कि अन्य ग्रहों की तुलना में चंद्रमा का प्रभाव मानव पर अधिक पड़ता है।
वेद में कहा गया है कि:-
"चंद्रमा मनसो अजायत"
अर्थात्:-परम पुरुष परमात्मा के मन से चंद्रमा उत्पन्न हुआ है अतः चंद्रमा का सम्बन्ध मन से ही हैं। अतः मन के कारण चन्द्रमा के आधार पर नामकरण करना अधिक तार्किकदृष्टि से भी औचित्यपूर्ण है।
मन्तव्यता गोचर गणना विषये:-
"उच्चराशिगतो भानुरूच्च राशिगतो गुरु:।
रिष्फा१२अष्ट८तुर्यगो४अपीष्टो निचारिस्थ शुभोप्यसत्।।"
अर्थात्:-उच्च राशि मेष का सूर्य तथा कर्क राशि का गुरु 4-8-12वी शुभ माने गए हैं तथा सूर्य 4-8-12 का होना भी शुभ राशि रहते 13 अंश बाद शुभ ही मान्य है यथा
"अनिष्ठ स्थानगेषु त्रयोदशदिनं
त्यक्त्वा शेषस्थं शुभमादिशेत्।।"
अर्थात्:-इसी प्रकार चंद्रमा शुभ व मित्र ग्रह के नवांश तथा बृहस्पति से देखा जावे तो अशुभ होने पर शुभ मान्य है। सूत्र
"शुभांशेगुरुद्द्ष्टोअशुभोपि सन्।"
एवमेव 4-8-12 गणना का गुरु भी शुभ होता है यदि गुरु अपनी उच्च राशि-कर्क,स्वगृही-धनु-मीन एवं मित्र राशि तथा किसी भी राशि में अपने नवमांश में रहते 4-8-12 वां बृहस्पति शुभ मान्य। विशेष यह की गुरु अपनी नीच-मकर राशि व शत्रु ग्रह की राशि में हो तो शुभ भी अशुभ मान्य होगा। यथा प्रमाण
"स्वोच्चे स्वभे स्वमैत्रे वा स्वांशे वर्गोत्तमे गुरू:।
रिष्फा १२अष्ट ८ तुर्यगो ४ अपीष्टो
निचारिस्थ: शुभोप्यसन।।"
अष्टकवर्गरेखाष्टक शुद्धि विधान:-गोचर गणना से अशुभ 4-8-12 गणना के सूर्य-चंद्रमा-बृहस्पति आते हों तो रेखाष्टक गणना बल से अशुद्ध गोचर में भी शुभ कार्य संपन्न कर सकते हैं।
यथा शास्त्र वचन:-
"अष्टकवर्गविशुद्धेषु गुरूशीतांशुभानुषु।
व्रतोद्वाहौ च कर्त्तव्यौ गोचरे न कदाचन।।"
ग्रन्थान्तरे अपिराजमार्त्तण्डेतु-
"अष्टवर्गेण ये शुद्धास्ते शुद्धा: सर्वकर्मसु।
सुक्ष्माअष्ठ वर्ग संशुद्धि:स्थूला शुद्धिस्तु गोचरे।।"
अर्थात्:-लग्न समय पर सूर्य, चंद्रमा, गुरु का अपना-अपना रेखाष्टक बल प्राप्त करें यदि 1 से 3 रेखा ग्रह की आवे तो ग्रह का बल प्राप्त नहीं,नेष्ट समझें।
2.यदि 4 या अधिक 8 तक रेखा बल प्राप्त होने पर 4-8-12 गणना के सूर्य चंद्रमा गुरु गोचर में रहते भी मांगलिक कार्य का विधान शास्त्र सम्मत कहा गया है
द्वादश 12 चन्द्रमा की शास्त्रीय मान्यता:-
"अभिषेके निषेके च प्राशने व्रत बन्धने तीर्थ
यात्रा विवाहे च चन्द्रो द्वादशग:१२शुभ:।।"
परन्तु:-"सर्वेषु शुभ कर्मेषु चन्द्रो द्वादशग:शुभ:।
नारीणां द्वादशश्च्ंद्र:मृत्यु हानिकरस्तदा।।"
अर्थात्:-स्त्रीयों के लिए बारहवाँ चन्द्रमा वर्जित और पुरुषों के लिए बारहवाँ चन्द्रमा शुभ माना गया है।
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