आरती गिरधारी जी की(Aarti Girdhari ji ki):-भगवान श्रीकृष्णजी के द्वारा अपने बाल्यकाल में बहुत सी लीलाएँ की थी। इस तरह जब इंद्रदेव के बढ़े हुए अभिमान को भी उन्होंने तोड़ा। जब भारी बारिश करके इंद्रदेव अपनी पूजा कराने के लिए गोकुलवासियों को बाध्य करना चाहते थे, तब श्रीकृष्णजी ने अपनी सबसे छोटी उँगली से भारी-भरकम एवं विशाल गोर्वधन पहाड़ को उठाकर भारी मूसलाधर बारिश से गोकुलवासियों की रक्षा करते है और इंद्रदेव के अभिमान को तोड़ते है, तबसे उनका नाम गिरिधारी पड़ता है। गोकुलवासियों को गोर्वधन पर्वत की पूजा करने का कहना और जो कि आज के युग में गोर्वधन पूजा हो रही है।
भगवान गिरधारी की आरती को हमेशा करके अपने जीवन की नैया को इस भवसागर से पार करवा सकते है, क्योंकि जिनके नाम मात्र के उच्चारण से पापियों का उद्धार हो जाता है तो उनकी आरती के द्वारा नियमित गुणगान करने से निश्चित ही मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।
।।अथ आरती श्री गिरधारी जी की।।
जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय जय गिरधारी।
दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हित कारी।।
जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय जय गिरधारी।
दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हित कारी।।
जय गोविन्द दयानिधि, गोवर्धन धारी।
वंशीधर बनवारी, ब्रज जन प्रियकारी।।
जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय जय गिरधारी।
दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हित कारी।।
गणिका गोध अजामिल गणपति भयहारी।
आरत-आरति हारी, जय मंगल कारी।।
जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय जय गिरधारी।
दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हित कारी।।
गोपालक गोपेश्वर, द्रौपदी दुखहारी।
शबर-सुता सुखकारी, गौतम-तिय तारी।।
जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय जय गिरधारी।
दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हित कारी।।
जन प्रहलाद प्रमोडक, नरहरि तनु धारी।
जन मन रंजनकारी, दिति-सुत संहारी।।
जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय जय गिरधारी।
दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हित कारी।।
टिट्टिभ-सुत संरक्षक, रक्षक मंझारी।
पाण्डु सुवन शुभकारी, कौरव मद हारी।।
जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय जय गिरधारी।
दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हित कारी।।
मन्मथ-मन्मथ मोहन, मुरली-रव कारी।
वृन्दाविपिन बिहारी, यमुना तट चारी।।
जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय जय गिरधारी।
दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हित कारी।।
अघ-बक-बकी उधारक, तृणावर्त तारी।
बिधि-सुरपति मदहारी, कंस मुक्तिकारी।।
जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय जय गिरधारी।
दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हित कारी।।
शेष, महेश, सरस्वती, गुन गावत हारी।
कल कीरति विस्तारी, भक्त भीति हारी।।
जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय जय गिरधारी।
दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हित कारी।।
'नारायण' शरणागत, अति अघ अघहारी।
पद-रज पावनकारी, चाहत चितहारी।।
जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय जय गिरधारी।
दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हित कारी।।
।।इति आरती श्री गिरधारी जी की।।
।।जय बोलो गिरधारी गोपाल की जय हो।।
।।जय बोलो माधवजी की जय हो।।
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