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Tuesday 12 October 2021

शनि कवच स्तोत्रं(Shani Kavach Stotra)

                        




शनि कवच स्तोत्रं(Shani Kavach Stotra):-शनि कवच स्तोत्रं भगवान शनि देव के द्वारा उनकी दशा या महादशा, शनि देव की साढ़े सात की बड़ी पनोती, ढाई साल की छोटी पनोती, जीवन में किये गए गलत कार्यों से मुक्त होने, शरीर से सम्बंधित बीमारियों, मन के अन्दर की चिंताओं और रुपये-पैसों से सम्बंधित परेशानियों से मुक्त होने का सबसे अच्छा रास्ता है। जो मनुष्य नियमित रुप से श्री शनिदेव जी के शनि कवच स्तोत्रं का वांचन करते है, वे मनुष्य अपने जीवनकाल की सभी बाधाओं से मुक्ति को पाते हैं।



        ।।अथ श्री शनिकवचम् स्तोत्रं।।


अस्य श्री शनैश्चरकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः! 

अनुष्टुप् छन्दः! शनैश्चरो देवता! शीं शक्तिः! 

शूं कीलकम्! शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः।।

अर्थात्:-श्री शनि कवच स्तोत्रं मन्त्र की रचना श्री कश्यप ऋषि वर ने की थी और शनिदेवजी देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं, शीं शक्ति स्वरूप हैं, शूं कीलक हैं तथा श्रीशनिदेव जी की प्रसन्नता के लिए शनि कवच स्त्रोतं के जप में विनियोग किया जाता हैं।

निलांबरो नीलवपुः किरीटी गृध्रस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान्।

चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रसन्नः सदा मम स्याद्वरदः प्रशान्तः।।


ब्रह्मोवाच:-ब्रह्म देव बोलते है-की समस्त मनुष्यों आप अपने मन का ध्यान एक जगह पर स्थिर करके सुनिए:

श्रुणूध्वमृषयः सर्वे शनिपीडाहरं महत्।

कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम्।।

अर्थात्:-शनि कवच स्त्रोतं समस्त तरह के कष्टों को हरण करने वाला होता है और शनिदेवजी कि अनुकृपा पाने का सबसे बढ़िया रास्ता है, इसलिए समस्त मनुष्यों ध्यान से सुनिए इस कवच स्त्रोतं का महत्त्व को एवं समस्त दुःखो से मुक्ति पावे।


कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम्।

शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम्।।


ॐ श्रीशनैश्चरः पातु भालं मे सूर्यनंदनः।

नेत्रे छायात्मजः पातु पातु कर्णौ यमानुजः।।


नासां वैवस्वतः पातु मुखं मे भास्करः सदा।

स्निग्धकंठःश्च मे कंठं भुजौ पातु महाभुजः।।


स्कंधौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रदः।

वक्षः पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितत्सथा।।


नाभिं ग्रहपतिः पातु मंदः पातु कटिं तथा।

ऊरू ममांतकः पातु यमो जानुयुगं तथा।।


पादौ मंदगतिः पातु सर्वांगं पातु पिप्पलः।

अङ्गोपाङ्गानि सर्वाणि रक्षेन्मे सूर्यनंदन:।।


इत्येतत्कवचं दिव्यं पठेत्सूर्यसुतस्य यः।

न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवति सूर्यजः।।


व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा।

कलत्रस्थो गतो वापि सुप्रीतस्तु सदा शनिः।।


अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे।

कवचं पठतो नित्यं न पीडा जायते क्वचित्।।


इत्येतत्कवचं दिव्यं सौरेर्यनिर्मितं पुरा।

द्वादशाष्टमजन्मस्थदोषान्नाशायते सदा।

जन्मलग्नास्थितान्दोषान्सर्वान्नाशयते प्रभुः।।12।।


 ।।इति श्रीब्रह्मांडपुराणे ब्रह्म-नारदसंवादे शनैश्चरकवचं संपूर्णं।।






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