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Thursday 6 May 2021

वर तलाश के समय कुंडली कुयोग को जानें और सावधानी रखें(Know horoscope Illusion while looking for groom and be careful

             



वर तलाश के समय कुंडली कुयोग को जानें और सावधानी रखें(Know horoscope Illusion while looking for groom and be careful):-तलाश करें वर की तो सावधानी रखें,जिससे मनुष्य जन्मकुंडली के आधार से जान सकते है।मनुष्य का जन्मांग उसके जीवन मे होने वाले अच्छे और बुरे दोनों तरह के नतीजों को बताता है। हर कोई माता-पिता की और हर कोई लड़के-लड़की की इच्छा होती है कि उनका दाम्पत्य जीवन सुख-समृद्धि से बीतने वाला हो।

◆विवाह से पूर्व लड़के-लड़की की कुंडली मिलान के द्वारा निश्चित किया जाये तो वर-कन्या की कुंडली गत योगों योगों पर जरूर ध्यान देना चाहिए।

◆नक्षत्र मिलान के आधार पर भले ही सबसे अधिक गुण मिल जावे लेकिन कुंडली में दाम्पत्य सुख नाशक योग होने पर उन योगों से बचना चाहिए।



वर तलाश के कुंडली कुयोग को जानें और सावधानी बरतें:- वर कुंडली में इन दोषों को नजर अंदाज करने पर दाम्पत्य जीवन का सुख को मटियामेट कर सकते है-


द्विभार्या कुयोग या अवैध सम्बंध के योग:-मनुष्य को अपनी जन्मपत्रिका को मिलने से पूर्व दिखना चाहिए कि उसकी कुंडली में कितनी ओरतों या आदमियों से शादी होगी।

◆लग्न भाव का मालिक लग्नस्थ या आठवें भाव का मालिक लग्नस्थ या सप्तमस्थहोने पर या भौम ग्रह का लग्नस्थ तथा सप्तमेश छठे,आठवें या बारहवें घर में होने पर औए बुरे ग्रहों से जुड़े होने पर आदमी को दो ओरतों का योग होता है। जिससे मनुष्य को दो विवाह करने पड़ते है।

◆सातवें भाव में पाप ग्रह स्थित हो तथा सातवें भाव का मालिक अच्छे ग्रहों के साथ अपनी नीच राशि में हो या सातवें भाव का कारक ग्रह पाप ग्रहों के साथ हो या यह ग्रह नीच,शत्रु या अस्त ग्रह के नवांश में हो तो यह द्विभार्या कुयोग बनता है।इस योग के कारण या तो दूसरी शादी होती है या अवैध सम्बन्ध बनते है।

◆सातवें भाव में पाप ग्रह हो या सप्तम में भृगु वृषभ,तुला या मीन राशि का हो और उसके साथ सेंहिकीय या शिखी ग्रह हो अथवा भौम ग्रह मेष,सिंह,वृश्चिक,मकर या कुंभ राशि में हो तो मनुष्य को दो पत्नी के योग होता है।



अनेक शादी के योग:-मनुष्य को जब लड़के या लड़की की कुंडली मिलान से पूर्व देखना जरूरी है कि कुंडली में कितनी शादियां लिखी है

◆दूसरे भाव के मालिक के द्वारा नहीं देखा जाए और दुजे घर में कई पाप ग्रह हो।

◆सातवें घर में कई पाप ग्रह हो और सातवें भाव के द्वारा नहीं देखा जाए।

◆लग्नेश आठवें भाव में हो तथा सातवें भाव में भौम, भृगु,मन्द हो।

◆आठवें भाव के स्वामी पांचवे भाव में हो और भृगु से सोम सातवे और सोम से सौम्य ग्रह सातवे होने पर मनुष्य के अनेक विवाह होने की संभावना रहती है।



द्विभार्या योग:-जन्मकुंडली में कितनी ओरतों या आदमियों के योग बन रहा है उसको भी जानना जरूरी है।

◆सातवें भाव का मालिक नीच राशि, दुश्मन राशि में हो।

◆सातवें भाव का मालिक अस्त होकर लग्न भाव में हो।

◆पहले,दुजे और सातवें घर पर बुरे असर हों।

◆बारहवें घर में भौम ग्रह तथा सातवें व आठवें घर में बुरे ग्रह होने पर द्विभार्या योग होता है।



व्यभिचारी या चरित्रहीन योग:-मनुष्य के चरित्र कैसा है उसको जानकर ही शादी की हामी भरनी चाहिए।

◆सातवें भाव में रवि-सेंहिकीय ग्रह की युति या सातवें या दशवें में सातवें,दशवें भाव में हो।

◆सोम ग्रह से रवि ग्रह सातवी जगह पर हो तथा दशवें घर में भृगु होने पर व्यभिचारी योग बनता है जिससे मनुष्य चरित्रहीन होता है।

◆दशवें घर वृषभ या तुला राशि उसमें सौम्य, भृगु,मन्द ग्रह स्थित हो।

◆छठे भाव का मालिक छठे,आठवें, बारहवें में कहीं भी हो।

◆सातवें घर के मालिक की युति सेंहिकीय ग्रह या शिखी ग्रह से हो और उन पर बुरे ग्रहों के द्वारा देखे जाने पर मनुष्य का चरित्र बहुत ही खराब होता है।

◆दुजे घर का मालिक तीजे भाव में या चौथे भाव में हो।

◆सातवें भाव के मालिक दुजे या बारहवें भाव में हो।

◆रवि,सोम,भौम सातवें भाव में हो।

◆सोम-मन्द की युति होने पर या आठवें भाव के स्वामी नवमे भाव के स्वामी के साथ-साथ हो

◆सातवें घर में अकेला सौम्य ग्रह हो,भृगु और जीव ग्रह पाप ग्रह के साथ दुजे घर,छठे घर या सातवें घर में हो तो कुयोग व्यक्ति को व्यभिचारी बनाते है। 



अधिक पत्नी के योग:-जन्मकुंडली से जान सकते है कि कितनी शादी होगी।

◆भृगु-सोम ग्रह की युति या दोनों का दृष्टि सम्बन्ध हो।

◆लग्न में कोई भी अकेला ग्रह हो अपनी उच्च राशि में हो।

◆मजबूत भृगु लग्न भाव में होकर सातवें ग्रह को देखे और यदि दुजे घर का स्वामी या सातवें घर का स्वामी मन्द ग्रह हो तथा बुरे ग्रहों के असर में हो अथवा सोम सातवें घर के स्वामी से तीजा हो तो अधिक पत्नी का योग बनता है।



बहुत औरतों की ओर गमन करने का योग:-जन्मपत्रिका के योगों से जान सकते है कि कितनी ओरतों के साथ गमन होगा।

◆तीजे घर स्थिति दूसरे भाव का स्वामी एवं बारहवें घर का स्वामी नवमे भाव का मालिक या जीव ग्रह से देखा जाए।

◆ग्यारहवें भाव के स्वामी और सातवें घर के स्वामी की युति या दोनों एक दूसरे को देखे या दोनों मजबूत होकर त्रिकोण में स्थित हो या लग्न के मालिक-सातवें घर के मालिक की युति हो या दोनों का परस्पर एक दूसरे को देखने का सम्बंध हो तो मनुष्य बहुत अधिक ओरतों के साथ सम्बन्ध बनाता है।



तलाक के योग:-जन्मपत्रिका के योगों से देखना चाहिए कि ग्रहस्थी जीवन में तलाक के योग तो नहीं बन रहे है। 

◆यदि जन्मकुंडली के लग्न के घर में मन्द ग्रह के होने से और लग्न भाव का मालिक एवं बारहवें घर का मालिक आठवें भाव और आठवें घर का मालिक एवं सातवें घर का मालिक में पूर्व दृष्टि का सम्बंध हो या सातवा भाव अच्छे ग्रहों से न देखा जाए तथा सातवें घर के स्वामी पर मन्द ग्रह के द्वारा पूरी तरह देखा जा तो मनुष्य का वैवाहिक जीवन में अनेक बार मुश्किलों से बीतता है और अलगाव से कष्टमय रहता है।

◆छठे घर में छठे घर के मालिक सातवें घर के मालिक की युति तथा लग्न का स्वामी मन्द ग्रह से देखा जाय या मन्द ग्रह या भौम ग्रह की पूरी दृष्टि छठे भाव तथा आठवें भाव के स्वामी पर हो या बुरे ग्रह पहले,चौथे,सातवें, आठवें या बारहवें घर में हो या सातवें घर में रवि हो तथा बुरे ग्रहों से देखा जाय तो तलाक की नौबत आ जाती है।



पति-पत्नी के बीच हमेशा क्लेश का योग:-जन्मकुंडली के योगों में देखना होता है कि दाम्पत्य जीवन में क्लेश के योग तो नहीं बन रहे है।

◆सातवें घर का मालिक बुरे ग्रह के नवमांश में हो या क्रूर के षष्ठयांश में हो या मन्द या रवि सातवे घर में हो तो पति-पत्नी के बीच हमेशा क्लेश रहता है।


कम उम्र का पति के होने का योग:-जन्मपत्रिका के योगों को देखना होगा कि कम उम्र की जिंदगी तो नहीं लिखी है।◆दुजे और बारहवें घर में बुरे ग्रहों का होना उन पर अच्छे ग्रहों के द्वारा नहीं देखा जाना।केंद्र भाव में बुरे ग्रह अच्छे ग्रहों या सोम से नहीं देखा जाना।

◆आठवें घर के स्वामी या मन्द पाप ग्रहों के साथ क्रूर षष्ठयांश में हो या त्रिक भावों में बुरे ग्रहों,लग्न का स्वामी कमजोर होकर अच्छे ग्रहों से युत या देखा नहीं जाने पर मनुष्य की उम्र कम होने योग बनते है।

◆कर्क लग्नस्थ रवि,जीव तथा केन्द्रस्थ आठवें भाव के स्वामी,कमजोर सोम हो तथा मन्द से सम्बन्ध हो,रवि आठवें भाव में हो तो कम उम्र का योग बनता है।

◆दुश्मन राशि स्थिति मन्द,आपोक्लिम भावों में अच्छे ग्रह हो आठवें भाव का स्वामी पाप ग्रह जीव से दृष्ट हो जन्म राशि का स्वामी आठवें भाव में हो बुरे ग्रहों से देखा जाए या मन्द कर्क के नवांश में हो जीव से देखा जाए  या मिथुन नवांश स्थित मन्द लग्न भाव के स्वामी से देखा जाए तो मनुष्य की उम्र कम होती है।

◆लग्न का स्वामी और आठवें भाव का स्वामी बुरे ग्रहों होकर राशि का बदलाव करें और वे छठे या बारहवें भाव में हो लेकिन जीव उनके साथ न हो या जीव के नवांश में स्थित मन्द सेंहिकीय ग्रह से देखा जाए और लग्न का स्वामी अपनी उच्च राशि मे हो लेकिन जीव के साथ नहीं हो तो मनुष्य की कम उम्र होती है।



पागल होने का योग:- जन्मपत्रिका में देख सकते है कि पागलपन के योग नहीं है।

◆लग्न के भाव या सातवे भाव में स्थित जीव व बारहवें घर में कमजोर सोम ग्रह एवं मन्द ग्रह दोनों हो तो मनुष्य को पागल बना देते है।



वीर्य सम्बन्धित बिना इलाज बीमारियों का योग:-जन्मपत्रिका से पुरुष के बारे में जान सकते है कि उसको वीर्य सम्बन्धी कोई विकार तो नहीं है।

◆आठवें घर में मन्द छठे भाव भौम, दुजे घर में रवि और सोम ग्रह बारहवें भाव में वीर्य से सम्बंधित बिना इलाज की बीमारियाँ देता है।



मिर्गी से सम्बंधित बीमारी का योग:-मनुष्य को मिर्गी का दौरा तो नहीं पड़ता है उसको योगों से जान सकते हैं।◆मन्द-सोम ग्रह की युति भौम ग्रह से देखा जाने पर मनुष्य को मिर्गी रोग से पीड़ा होती है।

◆त्रिक भावगत लग्न का स्वामी के साथ बुरे ग्रह हो तो जातक रोगी बना रहता है।



टी.बी. रोग के योग:-मनुष्य को टी.बी.की बीमारी तो नहीं है,यह जन्मकुंडली के योग से जानकर ही शादी के लिए हामी भरनी चाहिए।

◆त्रिक भावगत लग्न के मालिक के साथ भृगु भी हो तो टी.बी. रोग होता है। आठवें भाव मे भौम रवि या मन्द ग्रह हो उन पर बुरे ग्रह जो दुश्मन राशि या नीच राशि में स्थित हो उसकी दृष्टि हो तो मनुष्य को गुप्त रोगों से पीड़ित रहता है आठवें भाव में स्थित बुरे ग्रह बुरे ग्रहों से देखे जाए तो मनुष्य को गुप्त रोगों की बीमारी होती है।



कुष्ठ रोग के योग:-मनुष्य की कुंडली को देखकर जान सकते है कि मनुष्य को कुष्ठ रोग है या नहीं है।

◆चौथे घर में स्थित रवि,जीव,मन्द ह्रदय रोग का कारण है।

◆कारकांश लग्न से चौथे घर में सोम होने पर तथा उस पर भृगु ग्रह के द्वारा पूरी तरह देखा जाए तो मनुष्य को कुष्ठ रोग होता है।

◆पांचवे भाव में रवि,भृगु ,मन्द ग्रह होने पर ओरतों को प्रमेह रोग देते है।



नपुंसकता का योग:-मनुष्य की जन्मकुंडली का विश्लेषण करने पर देखना होता है कि उसमें पुरुष्टत्व की कमी तो नहीं है।

◆सम राशि में सोम ग्रह और विषम राशि में रवि ग्रह हो और दोनों एक दूसरे को परस्पर देखे।

◆मन्द ग्रह विषम एवं सौम्य ग्रह सम राशि में एक दूसरे से परस्पर देखे।

◆विषम राशि का भौम ग्रह सम राशि स्थित रवि से देखा जाए।

◆जन्म लग्न और सोम लग्न दोनों ही विषम राशि का होने पर उन पर सम राशि स्थित भौम ग्रह के द्वारा देखा जाए।

◆भौम ग्रह की दृष्टि में विषम राशि में स्थित सोम ग्रह तथा सम राशि मे स्थित सौम्य ग्रह दोनों ही हो तो व्यक्ति को नपुंसकता होती है।

◆मन्द ग्रह भृगु ग्रह से छठे या आठवें भाव में हो या दोनों ही आठवें भाव में हो तथा विषम राशि के ही नवमांश में हो तो मनुष्य नपुंसक होता है।



बवासीर रोग के योग:-मनुष्य की जन्मकुंडली को देखकर पता लगाना चाहिए कि मनुष्य को बवासीर रोग तो नहीं है।

◆लग्न भाव में स्थित मन्द ग्रह व सातवें भाव में भौम ग्रह होने पर बवासीर रोग देते है।



वर की कुंडली में थोड़े मुख्य कुयोग:-बताये गये है। इन कुयोगों के अलावा कुछ दूसरे कुयोग जैसे-भाग्य को देखना,सुख कैसा रहेगा,रुपये-पैसे के बारे में जानकारी,सन्तान होगी या नहीं होगी आदि इनकी भी जानकारी करनी चाहिए।इसी तरह लड़की की जन्मकुंडली में भी जीवन के सभी बातों के बारे में बनने वाले योगों को देखना चाहिए तब ही विवाह के लिए रजामंदी देंनी चाहिए।




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