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Sunday 25 April 2021

भाई दूज व्रत विधि, कथा और महत्त्व(Bhai Dooj fast, story and importance)

            


भाई दूज व्रत विधि, कथा और महत्त्व(Bhai Dooj fast, story and importance):- दीपावली के तीसरे दिन अर्थात कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भाई दूज के नाम से जाना जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया "यमद्वितीया" भैया दूज कहलाती है। इस दिन बहिन के घर भाई को जाना चाहिए।

भाई दूज व्रत की विधि:-बहिन को चाहिए कि घर आए भाई को एक शुभ आसन पर बैठाकर हाथ-पैर धुलाये। 

इस दिन भाई अपनी बहिन के हाथों रोली-अक्षत लगवाकर मिठाई खाता है और अपनी बहिन को दक्षिणा के रूप में रुपयों-पैसों व वस्त्रों को देता है।

विभिन्न प्रकार के उत्तम तरह के व्यंजन परोस कर उसका अभिनंदन करें।

भाई बहिन को श्रद्धानुसार उपहार देते हैं।

भाई दूज के दिन भाई को अपनी बहिन के घर पर भोजन करना भी शास्त्र के अनुसार जरूरी बताया गया है।

परंतु कहीं-कहीं जिनके भाई-बहिन के घर नहीं पहुंच पाते उनकी बहिनें भाई के घर पर जाकर उन्हें टिका लगाकर मिठाइयाँ खिलाती हैं।


भाई दूज के विषय में पौराणिक कथा:-भगवान सूर्यदेव और छाया को यम, यमुना और शनिदेवजी के रूप में सन्तान हुई थी। यम और यमुना दोनों भाई बहिन में बहुत ही प्रेम था। परन्तु यमराज यमलोक की शासन व्यवस्था में इतने व्यस्त रहते थे कि यमुनाजी के घर ही न जा पाते थे। पुराणों में बताया जाता है कि एक बार यम यमुनाजी से मिलने घर आए। भाई यम को अपने घर आया देखकर बहिन यमुनाजी बहुत ही खुश हुई और भाई का बहुत ही आदर व सम्मान किया। 

एक बार यमुना (नदी) अपने भाई यमराज को मांगलिक द्रव्यों से टिका लगाकर उन्हें भोजन कराया था। जिस दिन यमुना ने अपने भाई से निवेदन कर भोजन आदि से संतुष्ट किया था।

बहिन की सेवा से संतुष्ट होकर यमुना से वरदान माँगने के लिए कहा- तब बहिन यमुना ने उत्तर दिया कि आज की पवित्र तिथि के दिन जो भाई-बहिन एक साथ मेरे जल में स्नान करें, उन्हें अन्तकाल में यमलोक में न जाना पड़े व यम-यातना न भोगना पड़े, वह जीवनकाल में सभी तरह के सुख-समृद्धि को प्राप्त होवें और बल्कि सीधे स्वर्गलोक (बैकुण्ठ) में ही जाए। आज के दिन आप हर वर्ष मेरे घर आकर आतिथ्य स्वीकार करें। यमराज ने कहा- बहिन! ऐसा ही होगा। बहिन को वरदान देकर यमराज अपने यमपुरीलोक में चले गए। 

उस दिन कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि थी। इसलिए इस दिन यमुना स्नान का विशेष महत्त्व है।तभी से भाई दूज को माना जाने लगा। 

यदि अपनी सगी बहिन न हो तो काका-बाबा, मामा, मौसी, भुआ की बेटी यह भी बहिन के समान है। इनके हाथ का भोजन करें। उस भाई को धन, यश, आयुष्य, धर्म, अर्थ और अपरिमित सुख की प्राप्ति होती है।अतः हम सभी लोगों का कर्त्तव्य है कि, इस पावन पवित्र पर्व को विधिवत मनाना चाहिए।


भैया दूज(यम द्वितीया) की दूसरी व्रत कथा:-एक बहिन के सात भाई वठे। वह उन्हें बहुत प्यारी थी। उसका पति अपने माँ-बाप का इकलौता बेटा था। जिसके होने पर की गई मनौतियों को पूरा न करने से देवता अप्रसन्न थे। इसी कारण देवताओं ने क्रुद्ध होकर पुत्र तथा पुत्रवधु को मार का निर्णय किया। उसकी बहिन को किसी तरह इसका पता चल गया। उसने भावी जीवन में आने वाले दुःखों की कल्पना करके उनके उपचार के तरीके सोचे और अपने भाइयों से कहा कि उसे उसकी ससुराल भेज दिया जाए। 

भाई उसे लेने के लिए आए बिना बहनोई के भेजना नहीं चाहते थे। लेकिन बहिन जिद्द पर अड़ींग रही कि कुछ भी हो वह तो आज ही अपनी ससुराल जाएगी। जब वह नहीं मानी तो भाइयों को मजबूरी में उसे ससुराल भेजने की तैयारियां करनी पड़ी। डोली में बैठने से पहले बहिन ने अपने पास दूध, मांस तथा ओढ़नी रख ली। थोड़ी दूर जानेपर देवताओं के प्रकोप से एक सांप ने उसकी डोली का रास्ता रोक लिया। उसने तुरन्त सांप के सामने दूध रख दिया और आगे बढ़ गई। थोड़ा और आगे जाने पर उस पर शेर झपटा तो उसने मांस फेंक दिया। 

शेर का ध्यान मांस की ओर चला गया और कहार डोली लेकर आगे बढ़ गए।अब रास्ते में यमुनाजी थी। ज्यों ही कहार डोली को यमुना से पार करने लगे। यमुना ऊंची लहरें उठाकर डोली की आत्मसात करने लगी। तब बहिन ने ओढ़नी समर्पित करके यमुना की लहरों को शांत किया। नव वधू को बिना बुलाए घर आया देखकर ससुराल वाले आश्चर्य में पड़ गए। 

बहिन ने आदेश दिया कि उसके गृह प्रवेश के लिए घर के पिछवाड़े फूलों का दरवाजा बनवाया जाए। दरवाजा बना लेकिन ज्यों ही वह उसे पार करने लगी। द्वार उस पर गिर पड़ा। फूलों का दरवाजा होने के कारण उसे बिल्कुल भी चोट नहीं आई। घर में प्रवेश करके उसने सबसे पहले स्वयं खाना खाने लगी तो उसे खाने में सुच्चा कांटा मिला। जिसे उसने एक डिबिया में रख लिया।

शाम को घूमने का समय आया तो सबसे पहले उसने ही जूता पहना। जूते में काला बिच्छू था। उसने वह भी उसी डिबिया में सहेजकर रख लिया। रात हुई तो उसने फिर जिद्द की शैय्या पर पहले मैं ही सोऊंगी। बहू का हर काम के लिए पहल करना यद्यपि किसी को अच्छा नहीं लग रहा था। लेकिन परिस्थिति वश सब हो रहा था। 

सोने के कमरे में उसे काला नाग मिला। उसने उसे भी मारकर सहेज लिया। फिर पति को शैय्या पर सुलाया। इतना सब करने के पश्चात उसने अपनी सास को डिबिया खोलकर सुच्चा कांटा, बिच्छू तथा सांप दिखते हुए कहा- मैनें तुम्हें पुत्रवती किया हैं। स्वयं कष्ट सहनकर तुम्हारे पुत्र की रक्षा करके अपने सुहाग को नया जीवन दिया हैं। ये सब कष्ट देवताओं के रुष्ट हो जाने के कारण उठाने पड़े। 

भविष्य में कभी भी मनौती मानकर उन्हें पूरा करना न भूलना। इतना कहकर सात भाइयों की परम प्यारी बहिन पीहर लौट गई। तब सास ने देवी-देवताओं का पूजन करके भाई-बहिनों के प्रेम की प्रशंसा तथा उनके सुखी होने की आशीष दी।

भाई दूज व्रत का महत्त्व:-भाई दूज का त्यौहार बहिन के द्वारा अपने भाई की उम्र की बढ़ोतरी के लिए करती है, जिससे भाई के ऊपर किसी भी तरह संकष्टो से मुक्ति मिल जावे।

बहिन के द्वारा भाई के भगवान यमराज से अरदास करती है हे यमराजजी आप मेरे भाई की काल से रक्षा करना।

भाई के द्वारा बहिन के घर पर अपना व्रत छोड़ने पर बहिन को सुख-सौभाग्य की प्राप्ति का वरदान मिलता है।

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